कहाँ है परमपिता परमात्मा शिव का निवास स्थान

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आज लोगों ने अज्ञानता के कारण मनुष्यों, देवताओं और परमात्मा के निवास स्थान को एक मान लिया है। जो मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है। परमात्मा के बारे में जानने के बाद यह स्पष्ट रूप से हमें जानने की आवश्यकता है कि परमात्मा और हम सभी मनुष्य आत्मायें कहाँ से इस सृष्टि पर आती हैं? इस सृष्टि चक्र में तीन लोक होते हैं। स्थूल वतन, सूक्ष्म वतन और मूल वतन अर्थात् परमधाम।

स्थूल लोक : आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। इन पाँचों तत्वों से मिलकर बना है स्थूल लोक, मनुष्य सृष्टि, जिसमें हम निवास करते हैं। इसे कर्म क्षेत्र भी कहते हैं। क्योंकि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल भोगता है। इसी लोक में ही जन्म-मरण है। अत: सृष्टि को विराट नाटकशाला, लीलाधाम भी कहा जाता है। इस सृष्टि में संकल्प, वचन और कर्म तीनों हैं। यह सृष्टि चक्र आकाश तत्व में अंशमात्र में है। स्थापना, विनाश और पालना परमात्मा के दिव्य कत्र्तव्य भी इसी लोक से सम्बंधित हैं। सृष्टि की हर पाँच हज़ार वर्ष बाद हूबहू पुनरावृत्ति होती है और आत्मायें नियत समय पर अपना-अपना पार्ट बजाने इस सृष्टि रंगमंच पर आती हैं।

सूक्ष्म लोक : सूर्य, चांद से भी पार एक अति सूक्ष्म(अव्यक्त) लोक है। उस लोक में फैले सफेद रंग के प्रकाश तत्व में ब्रह्मापुरी, उसके ऊपर सुनहरे लाल प्रकाश में विष्णुपुरी और उसके भी पार महादेव शंकरपुरी है। इन तीनों देवताओं के पुरियों को संयुक्त रूप से सूक्ष्म लोक कहते हैं। क्योंकि इन देवताओं के शरीर, वस्त्र व आभूषण आदि मनुष्यों के स्थूल शरीर और वस्त्र आदि की तरह नहीं हैं। दिव्य चक्षुओं द्वारा ही इनका साक्षात्कार हो सकता है। इन पुरियों में संकल्प और गति तो है लेकिन वाणी अथवा ध्वनि नहीं है। इसमें मृत्यु, दु:ख अथवा विकारों का नाम-निशान नहीं होता। इन तीनों देवताओं द्वारा ही परमात्मा सृष्टि की स्थापना, विनाश और पालना कराते हैं।

परमधाम : सूक्ष्म लोक से ऊपर एक असीमित रूप से फैले हुए तेज सुनहरे लाल रंग का प्रकाश है, इसे अखंड ज्योति, ब्रह्मतत्व कहते हैं। यह तत्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से भी अति सूक्ष्म है। इसका साक्षात्कार दिव्य चक्षु द्वारा ही हो सकता है। ज्योतिर्बिंदु त्रिमूर्ति परमपिता परमात्मा शिव और सभी धर्मों की आत्मायें अव्यक्त वंशावली में इसी लोक में निवास करती हैं। इसे ब्रह्म लोक, परमधाम, शांति धाम, निर्वाण धाम, मोक्ष धाम अथवा शिवपुरी कहा जाता है। इस लोक में न संकल्प है, न कर्म है। अत: वहां न सुख है, न दु:ख है। बल्कि एक न्यारी अवस्था है। इस लोक में अपवित्र अथवा कर्म बंधन वाला शरीर नहीं होता है।

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