कहावत भी है ना सहज मिले सो दूध बराबर…

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हम विश्व की सेवा पर उपस्थित हैं। भक्त कहेंगे- हे भगवान मेरी तकदीर अच्छी करना, हम कहते अच्छे से अच्छी, महान से महान, सृष्टि को रोशन करने वाली तकदीर बाबा ने हमारी जगा दी है

प्यारे बाबा के हम सभी कल्प के बिछुड़े हुए बच्चे अपने घर में बैठे हैं। कहा जाता – दिन का सोया रात को वापस आ जाए तो उसको खोया हुआ नहीं कहेंगे। यह कहावत भी हमारी ही है। हम बाप को भूले तो आधाकल्प खो गये। माया की गोदी में पहुंच गये। माया ने हमें गले तक पकड़ रखा है। जैसे कहते हैं सोने में खाद पड़ती, ऐसे मुझ सोने में तमोप्रधानता की खाद पड़ गई थी। बाबा ने आकर के हमें फिर से ज्ञान-योग की भट्ठी में डाला है और खाद निकाल सच्चा सोना बनाया है। हम जो माया के पास खो गये थे, बाबा ने अब इस संगम पर हम खोये हुए बच्चों को फिर से गोदी में बिठाया है और वापस अपने घर ले चल रहा है, इसलिए बाबा हमें मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे कहता। हम बाबा के बहुत प्यारे बच्चे हैं, जिन्हें स्वयं बाप ने पाला है। वैसे भी कोई गुणवान आत्मा होती है तो सभी को प्यारी होती, उसके लिए कहते इसे तो स्वयं भगवान ने बैठकर बनाया है। गुणों की सुन्दरता को देख कहते हैं इसे तो भगवान ने खास बनाया है। तो हम सभी को स्वयं भगवान ने खास बनाया है। कैसे बनाया, हमारा भाग्य विधाता हमारे तकदीर की लकीरें खींच रहा है इसलिए हमें अपने भाग्य का गुणगान करना है। भाग्य विधाता की महिमा गानी है। स्वयं भगवान ने स्पेशल हमारे ललाट पर भाग्य की लकीरें खींची हैं, तब तो हम कहते स्वयं भाग्य-विधाता हमारी तकदीर की लकीरें खींच रहा है इसलिए हमें अपने भाग्य का गुणगान करना है। भाग्य विधाता की महिमा गानी है। भाग्य विधाता ने घृत डाल हमारा दीवा जगाया है इसलिए जब कोई पूछते क्या तुम्हें निश्चय है कि हमको भगवान पढ़ाते हैं? तो हम कहते क्या इसमें भी कोई संशय की बात है। अगर कोई पूछते हैं तो माना संशय है। उनके तकदीर की लकीरें अभी तक खींची हुई नहीं हैं।
हम तकदीर जगाकर आये हैं, जगाने की मेहनत नहीं करते। हमारी तकदीर जगी हुई है। हम विश्व की सेवा पर उपस्थित हैं। भक्त कहेंगे- हे भगवान मेरी तकदीर अच्छी करना, हम कहते अच्छे से अच्छी, महान से महान, सृष्टि को रोशन करने वाली तकदीर बाबा ने हमारी जगा दी है। ब्राह्मण अगर कहें बाबा हमारी तकदीर जगाकर रखना तो यह संशय है। बाबा हमें मदद करते रहना, क्या बाबा हमें देता नहीं जो मैं मांगती। कहावत भी है सहज मिले सो दूध बराबर… बाबा ने हमारी दूध बराबर तकदीर बनाई। हम मांगकर उस दूध को पानी क्यों बनाते! दृढ़ निश्चय वाले कभी कुछ मांग नहीं सकते। वह तो ओहो! बाबा वाह बाबा के गीत गायेंगे।
बाबा कहते मैं रोज़ अमृतवेले बच्चों के नाज़ों का खेल देखता हूँ क्योंकि बच्चे अभी तक बहुत नाज़-नखरे करते हैं, स्वयं को नीचे बिठाते और बाबा को बहुत ऊंचाई पर देखते हैं तभी दूरी का अनुभव होता है। मैं तो बाबा को अपने साथ बिठाती हूँ, मैं बाबा के समान बनकर साथ में बैठ जाती। ऐसे नहीं बाबा आप तो अर्श पर हैं, मैं फर्श पर हूँ। यह इतनी दूरी भी क्यों। दूर रहेंगे तो धरनी की धूल आकर्षण करेगी। जब बाबा ने हमें पवन पूत बनाकर उडऩा सिखाया फिर हम धूल में क्यों खेलते! इतनी दूरी क्यों? समान बनकर बाबा के साथ क्यों नहीं बैठ जाते!
हम हैं बाबा की सच्ची-सच्ची परियां। हमारी बुद्धि धरनी पर क्यों। हम तो धरनी के सितारे हैं, हम जग को रोशन करने वाले हैं। ऐसे रोज़ अमृतवेले अपनी मस्ती की छाप लगाओ फिर कभी नहीं कहना पड़ेगा कि बाबा हमारी तकदीर जगा दो। बाबा ने हमें चोटी से पकड़कर निकाला और अपने साथ गद्दी पर बिठाया।

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