जीवन का निश्चित लक्ष्य निर्धारित कर, परमात्मा द्वारा दी हुई तमाम शक्तियों का उसमें प्रयोजन कर, उस ध्येय को सिद्ध करना, ये उत्तम मार्ग है
एक युवा को जि़ंदगी में क्या करना, उसी उलझन में था। लक्ष्य सिद्धि के लिए जैसे-जैसे पढ़ता गया, वैसे-वैसे उसकी दुविधा बढ़ती गई। जि़ंदगी आखिर में है क्या? एक लक्ष्य निर्धारित करके उसके प्रति तन-मन-धन से समर्पित होना। ज्य़ादातर लोग क्या करना, और क्या नहीं करना, उसी उलझन में उलझे रहते हैं। जीवन, ये कोई समस्या नहीं, समस्या का निराकरण खोज, लक्ष्य सिद्धि से परितुष्ट होने का अवसर है। गहरे पानी में बिना जाये न तो तैराक ही बन सकता, न ही मोती का सोधकार। ‘जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठञ्ज। ये बात तीरे खड़े रह तमाशा देखने से समझ आये। गहरी नदी या गहरे सागर की लहरें देख डरने वाले कभी किनारे नहीं पहुंच सकते। कवि हरिवंश राय बच्चन ने ठीक ही कहा है कि क्रतीर पर कैसे रुकूं मैं, आज लहरों में नियंत्रण’। बिना चुनौतिपूर्ण जीवन, ये तो मलाले लोगों को ही भाता है, मर्द को नहीं। जीवन का एक निश्चित लक्ष्य निर्धारित कर, परमात्मा द्वारा दी हुई तमाम शक्तियों का उसमें प्रयोजन करना, यह ध्येय सिद्ध करने का उत्तम मार्ग है।
उस युवा को ध्येय सिद्ध करना है तो ध्येय सिद्धि के लिए चार स्तंभ क्रमबद्ध उसके लिये यत्न और प्रयत्न करना होगा। जीवन में गति और प्रगति का चार स्तंभ इस तरह है: 1. कंसिव, 2. पर्सिव, 3. रिसीव, 4. अचीव।
- कंसिव: कंसिव, यानी कि नये विचार को धारण करना। बासी मन नये विचार को धारण नहीं कर सकता। इसलिए मन को तरोताज़ा रख, नया-नया चिंतन करते रहो। इस चिंतन में से ही नये विचार प्रस्फुटित होंगे। उन्हें समझने का प्रयत्न करें। साथ ही उनके प्रति मजबूत मनोबल गढ़ें। उन्हें आत्मसात करने का दृढ़ संकल्प करें। ये ध्येय प्राप्ति और लक्ष्य सिद्धि का प्रथम सोपान है। कंसिव, यानी इन विचारों में तन्मय रहें, एकाग्र रहें, प्रसन्न मन से नये विचार को अपनाएं।
- लक्ष्य सिद्धि या ध्येय सिद्धि का दूसरा सोपान ‘पर्सिव’: जिसका अर्थ है, आये हुए नये विचार को अच्छी तरह से समझना, उसके प्रति जानना, उसकी सत्यता की प्रतीति करना।
मनुष्य के मन में प्रति मिनट तीस से चालीस विचार आते हैं। उनमें से सिर्फ एक या दो विचार ही श्रेष्ठता के लिए होते हैं। उन्हें नव-पल्लिवत करें तो जीवन में खुशहाली, हरियाली आ जायेगी। जिससे मन पसंद जि़ंदगी पाने की सक्यता बढ़ जाती है।
विचार करना, ये ऊपरछल्ले प्रयत्न नहीं लेकिन गम्भीर मानसिक कसरत है। क्योंकि अपनी जि़ंदगी का नक्शा उससे ही बनता है। जीवन, ये एक कोरी स्लेट है, वो सिर्फ लकीरें खींचने के लिए नहीं, पर स्वर्णिम अक्षरों से व श्रद्धा से लेख लिखने का साधन है। श्रद्धा, सत्य की ओर, श्रेष्ठ की तरफ गति कराती है। और श्रद्धा के साथ सुमेल साधकर, मन में आये हुए विचार की तरफ जाग्रत रहकर गढ़ें तो आप अपने सपनों को आगे दिशा दे सकते हैं। - रिसीव : रिसीव यानी कि प्राप्त करना। मनुष्य को जो प्राप्त है, उसका मूल्यांकन करना पड़े, उसको एनालाइज़ करना पड़े। जो मिला है, वो हितकारक, सर्व जन के लिए कल्याण कारक और शुद्ध इरादे से प्राप्त हुआ है। उसका मूल्यांकन करना पड़े। रिसीव का मतलब संतुष्ट होकर बैठ जाना, आराम करना नहीं है। लेकिन जो कुछ मिला है, उसके प्रति वैचारिक सजगता से साथ गढ़ते हुए उसका दिशा-दर्शन है। जो कुछ मिला है, उसे चेक करें, कसौटी करें, रुकें और उसके बाद सफलता के लिए आगे बढ़ें। महात्मा गांधी का क्रक्विट इंडियाञ्ज का सूत्र अंग्रेजों को ललकारने के प्रबल सूत्र पर आधारित था। जो कि मिले हुए शुद्ध विचार व साधन के प्रयोग का परिणाम था। इस तरह आत्म-दर्शन करना, ये रिसीव हमें सलाह देती है।
- अचीव: अचीव यानी कि सफलता पूर्वक प्राप्त करना। जो मिला है, वो आपकी सोच के अनुरूप है या उसके विरुद्ध है उसपर सोचना। जो सफलता आपको मिली है उसपर चिंतन करना और देखना कि कोई अर्धसफलता है या पूर्णसफलता है। और फिर आगे प्रयत्न चालू रखना। सिद्धि, ये एक फ्लैग-स्टेशन है और महासिद्धि, ये एक जंक्शन है। फ्लैग-स्टेशन पर सब गाडिय़ां रुकती नहीं, लेकिन जंक्शन पर अनेक गाडिय़ों का संगम होता है। और आप अपेक्षित गाड़ी में सवार होकर ज़रूरी स्थान तक पहुंच सकते हैं। जीवन, ये निरंतर यात्रा है। जो कि किसी को पड़े रहने नहीं देती। पड़े रहना यानी कि पतन के मार्ग को निमंत्रण देना है। इस तरह लक्ष्य सिद्धि के चार सोपान हैं।
कंसिव यानी कि नया विचार मन में धारण करना। पर्सिव यानी कि मन में धारण किये हुए विचार की समझ, उसकी अवेयरनेस रखना और उसका स्वरूप आत्मसात करने के लिए सावधानी रखना। रिसीव यानी जो मिला हुआ है, उसका विश्लेषण करना और उसकी शुद्धता की जांच करना। अचीव यानी कि सफलता पूर्वक प्राप्त करना।