मन रूपी घोड़े की लगाम को ढीला न छोड़ें…

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परमात्मा को जानना भी आवश्यक है। परमात्मा ज्योति स्वरूप निराकार शिव जो सर्व गुणों का सागर है कि मैं आत्मा हूँ… इस देह से न्यारी हूँ और साथ-साथ परम आत्मा भी ज्योति स्वरूप है, जबकि हमने बुद्धि का योग परमात्मा से इस प्रकार से जोड़ के रखा तो परमात्मा के गुणों का तुरंत ही हमें अनुभव होने लगता, वो शक्ति, वो शांति, वो प्यार, वो पवित्रता, वो खुशी सब कुछ आत्मा के पास आने लगता है।

मन मेरा क्या है, मन मेरा इस तरह से क्यों भाग रहा है? बिल्कुल इधर से उधर, उधर से इधर। कितना फास्ट स्पीड से मन चलता। और फिर ये भी कहते हैं कि मन 17 डिफ्रेंट चैनल पर चल रहा। कितने प्रकार के हमारे एक-एक घड़ी संकल्प चलते हैं। ये भी सोचो, ये भी सोचो, ये भी सोचो परन्तु नहीं, अभी हमको क्या करना है? हमको अपने मन को समझकर बिल्कुल जिस चैनल पर हम चलाने चाहते हैं उस अनुसार हम अपनी बुद्धि को इतना मजबूत बनायें कि जैसे कि बुद्धि हमारी लगाम है, तो ये जो मन रूपी घोड़ा है, मन भागता रहता। तो अपनी बुद्धि से, बुद्धि की लगाम से हम अपने मन रूपी घोड़े को भी कंट्रोल कर सकते। कंट्रोल करने का मतलब, जिस तरफ हम जाने चाहते हैं, जिस तरफ से हम अपनी डेस्टिनी पर पहुंच सकते हैं, हमें उस तरफ ही चलना है। यहाँ-वहाँ भागने में हमें टाइम वेस्ट नहीं करना है। यहाँ-वहाँ की फालतू बातें सोच के अपने आपको कन्फ्यूज़न में नहीं लाना है। मन को समझने के लिए मुझे थोड़ा समय निकालना पड़ेगा। हाँ, थ्योरी की बात है कि मन-बुद्धि-संस्कार। संस्कार जो हमारे अन्दर हैं उसी अनुसार ही हमारे मन के संकल्पों की उत्पत्ति होती। और फिर जो हमारी बुद्धि की आदत होगी, बुद्धि या तो मन को कंट्रोल करेगी या बुद्धि भी घबरा कर बैठ जायेगी। अलग होकर देखेगी कि मन इधर-उधर भाग रहा। परन्तु बुद्धि को ये पहचान है कि मैं हूँ मालिक। बुद्धि को ये समझ आई कि मुझे अब इन घोड़ों को कंट्रोल करने की ज़रूरत है। तो जितना बुद्धि अपने कत्र्तव्य को याद रखेगी और बुद्धि अपनी इस प्रकार से स्थिति बनाकर रखेगी तो फिर बुद्धि अपने मन को अच्छी तरह से सम्भाल सकेगी। जैसे माँ छोटे बच्चे को सम्भालती है प्यार से, जोश से नहीं, क्रोध से नहीं, स्ट्रॉन्ग डिसिप्लिन से नहीं, प्यार से। जब प्यार से बच्चे को सम्भाल सकते तो फिर प्यार से वो बच्चा बड़ा होकर माँ को दुआएं देता कि माँ ने मुझे बचपन से ही बहुत कुछ सिखाया। इसी तरह से मन को हमने बेलगाम घोड़ा बना दिया है, लगाम को छोड़ दिया है फिर घोड़े को तो आदत पड़ गई है यहाँ-वहाँ भागने की। बहुत ही आवश्यक है, अभी बुद्धि अपनी स्थिति में स्थित होकर मन को काबू में रखे। तो सबसे अच्छा समय है सवेरे-सवेरे। आपका परिवार जिस समय भी उठता है, आप कम से कम आधा घंटा या चाहो तो एक घंटा पहले भी उठ जाओ और ये मत फिक्र करना कि नींद कम हो गई है तो कोई तकलीफ होगी, नहीं। वेस्ट थॉट्स, वेस्ट संकल्पों में ज्य़ादा एनर्जी जाती है। और यदि हम व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर लेते हैं तो फिर हमारी एनर्जी बच जाती है। तो जो आपने 1 घंटे का योग अभ्यास किया वो तो तीन घंटे के नींद के बराबर आपको एनर्जी बन गई। तो उसका कोई फिक्र नहीं। तो अभी हमें क्या करना है, हमें सवेरे उठकर परमात्मा की याद में अपने मन को लगाना है। परमात्मा को जानना भी आवश्यक है। परमात्मा ज्योति स्वरूप निराकार शिव जो सर्व गुणों का सागर है कि मैं आत्मा हूँ… इस देह से न्यारी हूँ और साथ-साथ परम आत्मा भी ज्योति स्वरूप है, जबकि हमने बुद्धि का योग परमात्मा से इस प्रकार से जोड़ के रखा तो परमात्मा के गुणों का तुरंत ही हमें अनुभव होने लगता, वो शक्ति, वो शांति, वो प्यार, वो पवित्रता, वो खुशी सब कुछ आत्मा के पास आने लगता है। और जब से न सिर्फ योग के समय ही ये बहुत ही सुन्दर अनुभव होगा परंतु आधा घंटा योग किया उसका इम्पैक्ट(प्रभाव) मैं समझती कम से कम आधा घंटा तो चलेगा ही। जो प्यार, शक्ति, पवित्रता का अनुभव आपने किया दिनभर आपका व्यवहार उस अनुसार रहेगा। और यदि हमने एक घंटा योग किया, मुझे तो लगता है कि दिनभर फिर आपकी वो स्थिति बनकर रहेगी जो आपकी सब जो भी घर वाले हैं, बच्चे हैं, जो भी पार्टनर हैं, जो भी हैं, वो आपको कहेंगे आज तो आपकी बहुत अच्छी खुशमिजाज, शांतमय स्थिति नज़र आई। तो आपकी स्थिति देखने वाले अनेक हैं और बनाने वाले आप हो। एक अकेला आपको ही मेहनत करके बनाना होगा। वो आपको मदद नहीं करेंगे स्थिति को बनाने के लिए। तो मुझे अब क्या करना चाहिए? सवेरे उठकर आधा घंटा, एक घंटा परमात्मा की याद में परमात्मा के गुणों को याद करें। परमात्मा के साथ जो मेरे सम्बन्ध हैं वो याद करें, परमात्मा से शक्ति लेकर बुद्धि को इतना शक्तिशाली बनायें कि जो मन को कंट्रोल कर सके और मन को सही रास्ते पर चलाये। मन तो दिनभर चलता, दिनभर तो क्या रात्रि को भी चलता, ये तो आप जानते हैं। परंतु दिनभर में मुझे क्या करना है, जो कार्य सामने आता है शांति से, पहले तो मैं आत्मा शांत स्वरूप हूँ… ये याद रखें। शांति से जिसकी जो बात है मैं सुनूं, धीरज से और फिर उस बात का मुझे जो फैसला करना है उसका फैसला करके औरों से बातचीत करनी है वो ठीक है, मुझे अकेला फैसला लेना है वो भी ठीक है। मुझे उस फैसले को एग्जीक्यूट(पालन) करना है, पै्रक्टिकल कुछ एक्शन लेना है, उसके लिए भी मुझे तैयार रहना होगा, परंतु जो मैंने शांति से, जो मैंने धीरज से कुछ निर्णय किया है उसका ही फायदा होगा।

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