कोई बात अति में जाती है तो उसको तूफान कहा जाता है। एक गुण तूफान मिसल हो, दूसरा मर्ज हो तो अच्छा लगेगा? नहीं। तो ऐसे अपने में पॉवरफुल धारणा करनी है। जैसे चाहो वहाँ अपने को टिका सको। ऐसे नहीं कि बुद्धि रूपी पांव टिक ना सके। बैलेन्स ठीक ना होने कारण टिक नहीं सकते। कब कहां, कब कहां गिर जाते व हिलते-जुलते रहते हैं। यह बुद्धि की हलचल होने का कारण समानता नहीं है अर्थात् सम्पन्न नहीं है। कोई भी चीज़ अगर फुल हो तो उसके बीच में कब हलचल नहीं हो सकती। हलचल तब होती है जब कमी होती है, सम्पन्न नहीं होता है। तो यह बुद्धि में व्यर्थ संकल्पों की व माया की हलचल तब मचती है जब फुल नहीं हो, सम्पन्न नहीं हो। दोनों में सम्पन्न व समानता हो तो हलचल हो ही नहीं सकती। तो अपने आपको किसी भी हलचल से बचाने के लिए सम्पन्न बनते जाओ तो सम्पूर्ण हो जाएंगे।
सम्पूर्ण स्थिति व सम्पूर्ण स्टेज अर्थात् सम्पूर्ण वस्तु का प्रभाव ना निकले- यह तो हो ही नहीं सकता। चन्द्रमा भी जब 16 कला सम्पूर्ण हो जाता है तो ना चाहते हुए भी हरेक को अपनी तरफ आकर्षित करता है। कोई भी वस्तु सम्पन्न होती है तो अपने आप आकर्षण करती है। तो सम्पूर्णता की कमी के कारण विश्व की सर्व आत्माओं को आकर्षण नहीं कर पाते हो। जितनी अपने में कमी है उतना आत्माओं को अपनी तरफ कम आकर्षित कर पाते हो। चन्द्रमा की कला कम होती है तो किसका अटेन्शन नहीं जाता है। जब सम्पूर्ण हो जाता है तो ना चाहते हुए भी सभी का अटेन्शन जाता है। कोई देखे ना देखे, लेकिन ज़रूर देखने में आता ही है। सम्पूर्णता में प्रभाव की शक्ति होती है। तो प्रभावशाली बनने के लिए सम्पन्न बनना पड़े। समझा?
अगर बैलेन्स ठीक नहीं होता है तो हिलने-जुलने का जो खेल करते हो, वह साक्षी हो देखो तो अपने ऊपर भी बहुत हंसी आवे। जैसे कोई अपने पूरे होश में नहीं होता है तो उनकी चलन देख हंसी आती है ना। तो अपने आपको भी देखो- जब माया थोड़ा बहुत भी बेहोश कर देती है, अपनी श्रेष्ठ स्मृति का होश गायब कर देती है, तो उस समय चाल कैसी होती है? वह नज़ारा सामने आता है? उस समय अगर साक्षी हो देखो तो अपने आप पर हंसी आवेगी।
बापदादा साक्षी होकर खेल देखते हैं। हरेक बच्चे का तो… ऐसा खेल दिखाना अच्छा लगता है? बापदादा क्या देखना चाहते हैं, उसको भी तुम जानते हो। जब जानते हो, मानते भी हो, फिर चलते क्यों नहीं हो? तीन कोने ठीक हों बाकी एक ठीक ना हो, तो क्या होगा? चारों ही बातें जानते हुए भी, मानते हुए भी, वर्णन भी करते हो लेकिन कुछ चलते हो, कुछ नहीं चलते हो। तो कमी हो गई ना। अभी इस कमी को भरने का प्रयत्न करो।
परमात्म ऊर्जा
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