हमारे साथ अब तक जो भी होता आया तो हम क्या कहते आये कि जो भी होता है परमात्मा की मर्जी से होता है। अगर सब परमात्मा की मर्जी से होता आया है तो हम इस संसार में क्यों हैं? क्या हमने अपनी मर्जी कुछ नहीं किया?
आजकल एक नया संस्कार है फोटो खींचने का। हमें टाइम नहीं लगता है संस्कार एक-दूसरे से कैच करने में। चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते हर कर्म की फोटो खींचते रहते हैं। फिर एक संस्कार से दूसरा बनता है। पहले फोटो खींचने का संस्कार बना, फिर फोटो को पोस्ट करने का संस्कार बना, फिर दुनिया मेरी फोटो को लाइक करे उसका संस्कार बना और फिर नहीं लाइक करते तो दु:खी होने का संस्कार बन गया। हम इनके साथ चलते रहते हैं और हमें लगता है ये नॉर्मल है, हम उसके साथ जीवन जीते रहते हैं। समय-समय पर हमें चेक करना चाहिए कि क्या मेरे अंदर कोई ऐसा संस्कार है, जो मुझको सुख से दूर करता है। आदत नहीं संस्कार। आदत मतलब कितने बजे सोते हैं, कितने बजे उठते हैं, क्या खाते हैं, क्या करते हैं – वो आदत होती है। कौन-सा संस्कार मेरी शक्ति घटा रहा है, कौन सा संस्कार मुझे परेशान करता है, किस एक संस्कार को मैं आज बदल लूं तो मेरे जीवन में हल्कापन रहेगा, कौन-सा मेरा संस्कार परिवार को तंग करता है, कौन-सा संस्कार काम के स्थान पर मुझे तंग करता है। अपने परिवार वालों के संस्कार को देखें जो उनको चेंज करने की ज़रूरत है। हर घर में तीन-चार-पाँच लोग होंगे। फटाफट से चेक कर लें, हरेक को कौन-सा एक संस्कार चेंज करने की ज़रूरत है। मेरे परिवार को कौन-सा संस्कार चेंज करने की ज़रूरत है। मतलब हर सदस्य को। अब क्या सहज है- अपना संस्कार ढूंढना या उनका संस्कार देखना? उनका संस्कार ढूंढना ज्य़ादा आसान इसलिए होता है कि सारा दिन ध्यान ही उनके संस्कारों पर होता है। अपने संस्कारों की तरफ ध्यान ही नहीं होता है। ये भी एक संस्कार है। आपको ऐसे नहीं करना चाहिए था, आपको ऐसे नहीं बोलना चाहिए था, इतना क्यों सोचते हो- सारा दिन तो हम ज्ञान देते हैं सबको, क्योंकि सबके संस्कार दिखाई देते हैं। हमें उनके संस्कार दिखाई देते हैं, उनको हमारे संस्कार दिखाई देते हैं। हमें सिर्फ खुद के संस्कार दिखाई नहीं देते हैं। आध्यात्मिकता वही चीज़ है। स्पिरिचुअलिटी अर्थात् अपनी तरफ ध्यान देना शुरू करना। क्योंकि अगर मेरे संस्कारों में परिवर्तन आया तो मेरा संसार बदल जाएगा। परमात्म शक्ति से हमने आज दिन तक बहुत कुछ मांगा है। स्कूल में जिस दिन एग्ज़ाम होता था तो हम उसके सामने जाकर खड़े हो जाते थे, बस आज मेरा ये वाला एग्ज़ाम ठीक हो जाए। ऐसी छोटी-छोटी चीज़ें- आज मेरा ये ठीक हो जाए, वो ठीक हो जाए, हम भगवान से अपने जीवन की परिस्थिति ठीक करने के लिए मांगते थे। मेरा ट्रांसफर रोक दो, मेरी जगह उसको कर दो, मेरा प्रमोशन कर दो, ऐसी-ऐसी चीज़ें हमने उससे मांगी हैं। कभी-कभी हमने भगवान से बहुत मांगा कि मेरे इनको ठीक कर दो, इनको बचा लो, मेरे इनको संभाल लो, और जब ऐसा नहीं हुआ तो हम उससे नाराज़ हो गए। क्योंकि कहीं न कहीं हमने बचपन से सुना था कि हमारे जीवन में जो कुछ हो रहा है वह भगवान की मर्जी से हो रहा है। पत्ता-पत्ता भी ईश्वर की मर्जी से हिलता है। ये दुनिया भगवान की मर्जी से चलती है। सबकुछ भगवान की मर्जी से हो रहा है, तो आजकल देश में इतनी बारिश चल रही है, इतने लोगों के घर टूट रहे हैं, कई आत्माओं ने शरीर छोड़ा है, उससे तीन साल पहले कोविड आया है। इतने परिवार के सदस्य अपनी यात्रा पर आगे चले गए हैं। आज सुबह सब ठीक था, रात को सबकुछ बदल गया। क्या ये सबकुछ परमात्मा की मर्जी से हो रहा है? एक बच्चा सुबह निकलता है लेकिन शाम को वापिस नहीं आता है। ये परमात्मा की मर्जी से हो रहा है? एक बच्चा पैदा होता है और पैदा होते ही उसके शरीर में कोई बहुत बड़ा रोग है, ये परमात्मा की मर्जी से हो रहा है? क्या सृष्टि पर आज हर आत्मा का भाग्य एक समान चल रहा है? हम एक पैरेंट के रूप में अपने बच्चे का भाग्य परफेक्ट लिखते हैं और हर बच्चे का समान लिखते हैं तो आपको नहीं लगता वो भी हमारा भाग्य लिखे तो वो भी परफेक्ट लिखेगा और सब बच्चों का एक समान लिखेगा?