हम सभी जब बैठ के अपने बारे में सोचते हैं, चिंतन करते हैं, तो एक बात बड़ी ही सूक्ष्म और अति गूढ हम सबके ज़हन में आती है कि ऐसी कौन-सी बाधा है, ऐसी कौन-सी रूकावट है, ऐसा कौन-सा भाव है जो हम सबको आनंद लेने नहीं दे रहा है। आनंद की अवस्था में आने नहीं दे रहा है। तो जब बहुत ध्यान से, बहुत प्यार से, आराम से बैठकर इसको हम देखते हैं तो पाते हैं कि हम सबके अन्दर अति-अति सूक्ष्म भी बहुत सारे अहंकार काम कर रहे हैं, जो हम सबको कई सारे अनुभव नहीं करने दे रहे हैं। सबसे पहला एक छोटा-सा उदाहरण जैसे हम सभी ने अभी तक इतने सालों से, यदि कोई 20 साल, 25 साल, 30 साल से भी इस बात को अनुभव कर रहा है कि हम किस जाति के हैं, हम किस धर्म के हैं और कौन-से कुल में हमने जन्म लिया है। वो भी बीच-बीच में एक तुलनात्मक रूप से एक-दूसरे के साथ हम अनुभव करते हैं। तो वो भी एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से मिलने ही नहीं दे रहा है। सही रूप से जो वो है। ऐसे ही अपनी स्टडी को लेकर, अपनी पढ़ाई को लेकर बहुत सारी सूक्ष्म बातें हैं जो दूसरा व्यक्ति नहीं वो कर पाया तो उसके साथ जब हम मिलते हैं तो अन्दर से उस व्यक्ति को हम कम एन्जॉय कर पाते हैं। या उस व्यक्ति से हम कम इंटरेक्शन या अन्तक्रिया, या अन्दर से भाव, उसके साथ जुडऩे का बहुत कम हो पाता है। उसका कारण भी तो अहंकार है ना कि मैंने इतनी पढ़ाई की है। इसके अलावा हम सबकी भाषा हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, गुजराती बहुत सारी भाषाएं हैं जिसमें मुख्य रूप से हिन्दी और अंगे्रजी। और अंग्रेजी इसलिए भी मुख्य रूप से हम सबको परेशान कर रही है क्योंकि ये सभी को नहीं आती, तो जिसको आती है उसको भी छोटा-सा शब्दों का या भावों का अहंकार है कि मैं इस बात को बहुत अच्छे से दोनों लैंग्वेजेस में समझ सकता हूँ। दोनों भाषाओं में इसे बोल सकता हूँ। साथ ही साथ ड्रेस कोड को लेकर, डे्रस सेन्स को लेकर ये सब तो थोड़ा दिखाई देता है लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं कि जैसे आपने कोई बहुत गहरी अनुभूति की और कोई आपसे पूछ भी नहीं रहा है फिर भी आप कह रहे हो कि कल बाबा(भगवान) ने हमें बहुत अच्छा अनुभव कराया। भगवान ने कल हमें बहुत अच्छा अनुभव कराया। तो मैं उस अनुभव को शायद इसलिए कर रहा था बैठकर ताकि मैं दूसरों को सुना सकूं। या मैं बताऊं कि मेरा योग, मेरा ज्ञान या मेरा स्टडी का जो लेवल है वो मेरा बहुत जबरदस्त है। बहुत अच्छा है तो उस अनुभव को मैं पूरी तरह से अपने ज़हन में तो नहीं उतार सकता, उसका आनंद नहीं ले सकता। क्योंकि मैंने उसको किया ही इसी मुख्य उद्देश्य से था कि मुझे बताना है। ऐसे ही बहुत सारे हम क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं जो जानें-अनजानें नहीं, जानबूझ कर करते हैं। जोकि हम सबके अनुभूतियों को कम करता जा रहा है। हम परमात्मा के ज्ञान को समझते हैं, परमात्मा के ज्ञान को फॉलो करते हैं। लेकिन इस ज्ञान को समझने और फॉलो करने के बावजूद भी हमारी अनुभूति में कमी इसलिए है कि अहंकार का बहुत बड़ा एक अन्दर भाव उमड़ रहा है। जो ना समझने के कारण हम सभी उस आधार से, उस भाव से फील ही नहीं कर पा रहे। अनुभव ही नहीं कर पा रहे। तो जो एक अन्तिम अवस्था की बात है कि हम एक एंजेलिक स्टेज को प्राप्त करें। क्योंकि एंजेल जो होता है, वो हरेक बात को कभी भी किसी भी बात से चाहे वो सूक्ष्म है, चाहे वो स्थूल है, चाहे वो दिखाई दे रहा है, नहीं दे रहा है लेकिन फिर भी वो इस बात को सबके सामने कैसे रख सकता है! अगर वो रखा है तो वो दुनिया की कोई भी चीज़ को हमको थोड़ी देर के लिए किसी से तारीफ दे देगी, किसी से हमको थोड़ा उमंग-उत्साह मिल जायेगा। और इस दुनिया के मनुष्यों को हम थोड़ा-सा दिखाने और बताने के लिए थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन हम अपना वो आनंद खो देते हैं। क्योंकि ज़रूरी नहीं कि सामने वाले के सामने से वैसे ही प्रतिक्रिया आये जैसा हम सोच रहे थे। तो उस समय हमारा आनंद थोड़ा कम तो हो जाता है। लेकिन एक फरिश्ता, एक एंजेलिक स्टेज वाला, जो परमात्मा का बच्चा होगा वो सुख देने के बाद भी भूल जाता है। गहरी शांति की अनुभूति में रहता है। और उसके अन्दर सबके लिए भाव होता है। क्योंकि कई बार जब हम किसी को कुछ बता रहे होते हैं ना तो उसकी कमी को देखते हुए भी अपने अनुभव को बताते हैं। जैसे किसी के संस्कार में है कि वो सुबह जल्दी नहीं उठ पाता है या टाइम से बहुत सारी चीज़ें नहीं कर पाता है लेकिन आप सुबह जल्दी उठकर टाइम से बहुत सारी चीज़ें कर लेते हैं। तो उसके सामने जब तुम किसी और से बात कर रहे होते हैं तो भी एक तरह का अभिमान ही शॉ करता है कि मैं जो कर रहा हूँ, उसको बता और जता रहा हूँ दूसरों के सामने ताकि तीसरा व्यक्ति जो सुन रहा है, उसके अन्दर उसके लिए भाव बदलते चले जायें। तो इससे मैं किसे नीचे गिरा रहा हूँ? खुद को ही ना! तो इस तरह की बहुत सारी बातें अनुभव की हैं जो सोचने से पता चलता है कि जो असली आनंद है, जिसमें गहरी शांति है, गहरा सुख है, परमात्मा के साथ एक लगन है जिसमें, इस दुनिया की एक भी चीज़ हमारे साथ नहीं जुड़ी हुई है। जो हमने आजतक अटैंड किया, अचीव किया, उस अनुभूति को हम कर पाते हैं। इसीलिए सूक्ष्म और स्थूल जो बहुत सारे अभिमान हैं, अहंकार हैं वो हमारे जीवन को नीचे की तरफ ले जा रहे हैं। तराश नहीं पा रहे हैं। तो क्यों न इन अनुभूतियों को बढ़ाने के लिए अपने सूक्ष्म ते सूक्ष्म अहंकार को चाहे वो ज्ञान के साथ जुड़ा हुआ है, चाहे वो योग के साथ जुड़ा है, चाहे धारणाओं के साथ जुड़ा हुआ है, सेवाओं के साथ जुड़ा हुआ है, चाहे लौकिक पढ़ाई के साथ जुड़ा हुआ है। इन सारी चीज़ों को छोड़ते हुए जब हम चलते चले जायेंगे तो जब जो अनुभूृति आपको होगी ना वो अनुभूति कभी न भूलने वाली होगी। आप उसको भुलायें भी नहीं भूल सकते। तो इसीलिए आज से, अभी से, उन अनुभवों को एक साथ जोड़कर क्यों न जीवन को कुछ नया दिया जाये, कुछ अलग दिया जाये! जिसको करने से बहुत सुन्दर अनुभव हों।