मैं आके वहाँ लेटा लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। बाबा… बाबा… मैं आ गया, बाबा के पास आ गया। बस वो सुरूर, वो नशा, वो खुशी और मेरे को नींद न आये उसमें। मैं जाग रहा था। लेटे-लेटे, लाइट-लाइट जैसे शरीर है नहीं ऐसा अनुभव कर रहा हूँ। बाबा की याद होते-होते ये मेरी स्थिति हो गई।
जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि किस तरह से जगदीश भाई जी ने बाबा से मिलन मनाया, कितना बाबा ने उनको प्यार दिया, कैसे सबसे परिचित कराया और अब आगे पढ़ते हैं और जानते हैं कि फिर आगे क्या हुआ... फिर वहाँ से उठे तो नीचे उतरे, नीचे उतरे तो कई कमरे थे उसमें। कहीं सिलाई होती थी, कहीं कुछ, कहीं कुछ तो बाबा मुझे अंगुली पकड़कर नीचे ले गए। नीचे ले जाकर बच्चे यहाँ ये होता है, बच्चे यहाँ ये होता है। एक बहन बैठी है, बच्चे ये, ये काम करती है, इसका ये नाम है। इस बहन का ये नाम है, इसकी ये विशेषता है। स्वयं साक्षात बाबा, जैसे घर में बच्चा कोई बहुत समय के बाद आता है तो मुझे भी बाबा ने जैसे मैं आ गया हूँ बहुत टाइम के बाद सिकीलधा। बाबा सबसे मिला रहा है, दिखा रहा है, पहचान करा रहा है स्वयं बाबा! उस समय लगभग सारी बहनें थीं। लगभग सारे भाई थे। साढे तीन सौ, चार सौ से थोड़े कम थे। उनमें से कुछेक का जो वहाँ बैठे थे उनसे परिचय कराया। वो दुनिया ही अलग थी। कैसी न्यारी दुनिया में हम आ गये। तो बाबा ने हमको सबसे परिचय कराया। जैसे मैं बहुत पुराना कोई इसी जगह का हूँ। ये सारा कुछ मेरे साथ होता गया, होता गया, ये बहुत लम्बी दास्तान है। लेकिन ये अनुभव बीच-बीच में थोड़ा बताऊंगा। उस बिल्डिंग के और अनुभव छोड़ देता हूँ। उसके बाद हम लोग कोटा हाउस में आये। वो अभी भी है, सर्किट हाउस है वहाँ पर। उस कोटा हाउस में शिफ्ट किया बिल्डिंग को। क्योंकि भरतपुर के महाराजा ने बिल्डिंग की कोई रिपेयर नहीं कराई, बारिश आती थी, टपकता था, कई चीज़ें थीं। बाबा ने मुझे कार्य दिया, मैंने कॉरेस्पोंडेंस की विश्वकिशोर के डायरेक्शन से। कुछ लोग थे उनके परिचित उनको बीच में डाला, कुछ हुआ नहीं। आखिर हमको वहाँ से शिफ्ट होकर आना पड़ा कोटा हाउस और धोलपुर हाउस इन दो जगह पर हम गये। कोटा हाउस में मैं आया। लेकिन उससे पहले एक बात और ख्याल में आ गई है कि इस भरतपुर कोठी में जब मैं था तो इसमें एक सरदारी माल के नाम से एक जगह थी या कोई और नाम था बहुत टाइम हो गया है। मेरे ख्याल में यही नाम था। तो बाबा-मम्मा उसमें बैठे थे साथ में मनोहर दादी, कुंज बहन और एक-दो और थे, दीदी थी। हम उस समय बाबा से मिले रात का कोई टाइम था दस बजा होगा। तो बाबा ने कहा बच्चे दस बजा है आप चलो। जाओ रेस्ट करो। बाबा का आदेश हुआ तो हम लोग वहाँ से उठकर आये। अपनी-अपनी जगह पर सब चले गए। उसके पास ही जैसे हम नीचे उतरे तो शुरू में कोई छोटे-छोटे कमरे थे, उनके दरवाजे नहीं थे। उसमें पर्दा लगा हुआ था। कमरा साफ सुथरा था,चारपाई लगी हुई थी। तो वहाँ मेरे को जगह मिली हुई थी, अकेला था मैं। तो मुझे रहने को वहाँ कहा गया था। मैं आके वहाँ लेटा लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। बाबा... बाबा... मैं आ गया, बाबा के पास आ गया। बस वो सुरूर, वो नशा, वो खुशी और मेरे को नींद न आये उसमें। मैं जाग रहा था। लेटे-लेटे, लाइट-लाइट जैसे शरीर है नहीं ऐसा अनुभव कर रहा हूँ। बाबा की याद होते-होते ये मेरी स्थिति हो गई। और उस स्थिति में क्लाइमेक्स की एक स्टेज ये आई कि मैंने कहा बाबा..... पास में ही तो बाबा थे। और साथ में दूसरी ओर, और लोग रहते थे तो मैं तो शायद ज़ोर से बोलता, बाबा। लेकिन मैंने आवाज़ दबा दी। दबी आवाज़ में कहा बाबा... ताकि दूसरे कोई भागे हुए न आयें कि क्या बात है, कौन आ गया है इसके कमरे में, जगदीश भाई को क्या हुआ? बाबा... जैसे मैं बाबा के बिना रह नहीं सकता। अब उसके बिना मेरा जीवन और कुछ है नहीं। मैं उसी का हूँ और वो मेरा है। छोटा बच्चा जैसे माँ से अटैच्ड होता है। रात को सोता है तो टांग माँ के ऊपर रख के सोता है। कहीं खिसक न जाये रात को, ये मेरे काबू में रहे। चली जाती है ना कई बार बच्चे को सुला के। मेरा भी ऐसे ही था। बाबा... साइलेंस लाइट, बाबा... क्या देखता हूँ बाबा आ गये हैं, बाबा आके सामने खड़े हो गए। मैंने लाइट ऑफ की नहीं थी क्योंकि मुझे नींद तो आ नहीं रही थी। लाइट ऑन ही थी। और उसमें बाबा आके खड़े हो गए, मुझे दृष्टि देने लगे। साक्षात्कार जैसे होता है, बाबा साकार में हैं। लेकिन साकार में मुझे साकार भी दिखाई दे रहे हैं, लाइट के भी दिखाई दे रहे हैं। जिसको सेमी ट्रांस की आप स्टेज कह दीजिए। दोनों जैसे वो कहते हैं ना गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागू पाये। तो दोनों ही जैसे मुझे इक_े दिखाई दे रहे हैं। अव्यक्त ब्रह्मा और ब्रह्मा। बाबा मुझे देख रहे हैं। मैं बाबा को देख रहा हूँ टकटकी बांध के। अरी आँखों बंद नहीं होना आज। ये मुझे अच्छी तरह से निहार लेने दो। जी भरकर। देखता ही जाऊं, देखता ही जाऊं। वो गीत है ना तेरी याद का अमृत पीते हैं। बार बार यही कहता तेरी याद का अमृत पीते हैं। तो मुझे भी यही था कि देखता ही रहूं, देखता ही रहूं। दिल कहता बाबा तूझे देखता ही रहूँ। तो मैं देखता ही रहा, देखता ही रहा। बाबा मुझे दृष्टि देते ही रहे। मैं यहाँ होते हुए भी यहाँ नहीं था। और फिर बाबा बोले मैं फिर बाद में थोड़ा नीचे उतरा नीचे उतरा तो सोचने लगा कि ये मैं लाइट का देख रहा हूँ या बाबा साकार में उनको देख रहा हूँ। अपने ऊपर ही सोचने लगा। बाबा को मेरा वायब्रेशन पहुंचा होगा, बाबा ने कहा बच्चे, बच्चे अब लेट जाओ। रेस्ट करो। सुबह मिलेंगे। अच्छा बाबा लेट गया मैं। अब मैंने ये एक और अनुभव कर लिया कि योग का कनेक्शन क्या होता है, याद का। उसमें तार कोई नहीं बीच में लेकिन मैसेज पहुंचता है और मैसेज आता है। कच्चे धागे से बंधी हुई है सरकार मेरी जिसको कहते हैं। धागा नहीं बंधा हुआ है लेकिन मेरी सरकार तो आ गई मेरे सामने ये मैंने देख लिया। ये सच्चा योग है और जैसे मैंने पहले बताया कि ये तो बहुत अपने प्रकार की कहानी है, दास्तान है उसको सुनायें तो टाइम की बहुत ज़रूरत है। उतना मैं नहीं कह पा रहा हूँ। ये जो लकड़ी का जिना आता है, मूवमेंट लेडर लाठी का बना हुआ है। उसपर चढ़कर कई दफा हमने बाबा को हमने कील लगाते हुए देखा। अकेले हथौड़ी और कील लेकर ठोक रहे हैं। आशियाना बना रहे हैं। कुछ बच्चे आ रहे हैं। जगह है नहीं रहने की उनके लिए वो बना रहे हैं लेकिन माफ कीजिए आज मैं देखता हूँ सेन्टर्स पर सम्पन्न बहनें, भाई या दूसरे जो धनाढय हैं, या और किसी तरह वाले सेवा करते होंगे, चुनी हुई सेवा करते हैं। जिसको हड्डी हड्डी देने वाली सेवा कहते हैं वो नहीं देखने में आती। और मैंने बाबा को उस आयु में भी वो सारा कार्य करते देखा। क्या फायदा यदि हम उन चर्चाओं को करेंगे और उससे रिज़ल्ट नहीं होगा, जीवन में कोई धारण नहीं करेंगे तो क्या फायदा। बाबा कहता है मैं चक् कर लगाता हूँ, बच्चों के कमरों में जाता हूँ देखता हूँ क्या कर रहे हैं। अरे विश्वास नहीं है, बाबा ऐसे ही कह रहे हैं। मैं वरदान देता हूँ उस टाइम। हाय हाय तुम वरदान भी नहीं लेना चाहते। ऐसे बदनसीब हो। भगवान के घर में आके, उसके पास खाते पीते रहते हो। उससे वरदान भी नहीं ले सकते, जाग भी नहीं सकते। मुरली भी नहीं सुन सकते। शिव बाबा परमधाम से आता है परमधाम से। उसकी इनस्ल्ट करते हो, डिसरिस्पेक्ट करते हो। कौन है वो, कितनी बड़ी अथॉरिटी है। अक्ल मारी तो नहीं गई। ये कितनी बदनसीबी है।