भगवान का हाथ पकड़े आगे बढ़ते चलो…!!!

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अष्ट रत्नों के साथ सम्बन्ध हो न सिर्फ दूर का बल्कि नज़दीक का ये भी मैं मानती हूँ कि विशेष-विशेष भाग्य है।

बाबा की एक मुरली जो चली सन्तुष्टता के ऊपर उसमें भी बाबा ने ये बात कही कि आप बच्चे जब सकाश देते हो तो उसी से ही भक्त आत्मायें भी तैयार हो रही हैं और उन्हें उस सकाश से जो अनुभव हो रहा है सुख-शंाति का, वो ही उन्हों को दिल में छाप लग जाती है। जो फिर द्वापर में भक्ति की भावना लेकर, वो भावना अपनी रखते जाते हैं। तो अभी बाबा सिर्फ सेवा की बात तो क्या परन्तु भक्त तैयार करने की बात बता रहे हैं। तो मैं सोचती हूँ कि सचमुच बाबा की माला भी तैयार हो रही है, माइक सॉल्स भी तैयार हो चुके हैं, बाकी भक्तों की तो जो बाबा कहते हैं कि वो भी तैयारी हो रही है। तो कई सीन जैसे वन्डरफुल कहानी से सामने आ रहे हैं। और उस समय भी जब वो सीन चल रही होती थी उस समय बुद्धि में तो ये बिल्कुल स्पष्ट था कि जिन्हों को आज हम दादियां कहते हैं, वो दादियां ही अष्ट रत्न हैं। कभी-कभी दादियों की आपस में चिटचैट चलती थी तो ये हमें चांस होता था हंसा बहन और मुझे, वो चिटचैट सुनने का, देखने का, तो उसमें दादी जानकी कई बार दादियों से कहती थीं बाबा अभी तक हमें बताते नहीं हैं कि अष्ट रत्न की माला में कौन हैं? तो दादी गुल्ज़ार प्यार से, मुस्कुराकर दादी को उत्तर देती थी, परन्तु ये तो मालूम है कि आप तो हो ना! उन्हों का ये मीठा उत्तर होता था। तो अष्ट रत्नों के साथ सम्बन्ध हो न सिर्फ दूर का बल्कि नज़दीक का ये भी मैं मानती हूँ कि विशेष-विशेष भाग्य है। बहन ने बताया कि जब दादियों से पहले के दिनों की कहानियां सुनते थे, उस समय जब हम भी वो कहानियां सुनते थे तो हमें ऐसा लगता कि हो सकता हम भी उन दिनों में बाबा के साथ एक राज्य में भी थे। वो भी हमें ऐसी कई बार महसूसता होती थी। आज फिर देखते हैं कि एक निराली सीन जो हम एक्सपेक्ट नहीं करते थे लेकिन दादियों ने जितनी पालना दी, बाबा की पालना भी विशेष परन्तु वो समय अनुसार वो बचपन के दिन थे और हम लंडन में ही रहते थे तो प्रैक्टिकल उस समय कुछ अलग ही रूप रेखा थी, परन्तु बाबा ने पत्रों द्वारा, मुरलियों द्वारा और फिर साथ-साथ चंद्रहास दादा को कह दिया था कि जो मुरली टेप में रिकॉर्ड होती है हर मुरली तुमको लंडन ज़रूर भेजनी है और एक-एक में मैं समझती चार-पाँच मुरलियां होती थी। वो तब पुराने ज़माने के टेप होते थे। और हर टेप में फिर बाबा अपना याद-प्यार भी भेजते थे बच्चों को। तो मैं देखती थी कि दूर से भी बाबा ने कितनी प्यार की पालना दी परंतु आज भी किस तरह से हम वो अनुभव करें कि बाबा आज भी हमें वो पालना देकर हम सबको उड़ा रहे हैं। और मुझे लगता है कि हर बात का आधार है बाबा की मुरली। साकार मुरलियों में बाबा अपना अनुभव सुनाते हैं, अपना पुरूषार्थ बताते हैं और साथ-साथ बच्चों को हिम्मत दिलाने के लिए खुद के लिए भी कहते हैं बच्चे क्या बड़ी बात है माया तो आती है ना। माया तो मेरे पास भी आती है। परंतु हम सोचें कि आदि देव ब्रह्मा बाबा प्रजापिता ब्रह्मा उनके सामने माया तो एक चिंटी के समान आती होगी। परंतु बाबा हम बच्चों को इतनी नम्रता से, इतने प्यार से कहते बच्चे कोई बात नहीं, बच्चे आप शिव बाबा को याद करते रहो, बाबा का हाथ पकड़ते रहो और आगे बढ़ते चलो।

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