सच्चाई का बल बाबा को पकड़के रखता

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बात है सम्पूर्ण पवित्रता की, मैं मुख से कुछ नहीं कहूँ, पर वो सामने आये तो ओम शान्ति भी न कहूँ। अरे मुस्कुरा के ओम शान्ति करो ना, क्या मैं इतना बिज़ी हूँ! अगर मेरी दृष्टि ऐसी है तो क्या मैं आत्मा शुद्ध आत्मा की लाइन में हूँ? मैं अपनी बात देखूं, बाकी दूसरा कहाँ तक शुद्ध-अशुद्ध है, ऐसे नहीं। गंगा कभी यह नहीं कहती है, ये पापी है। पापी का काम है उसमें टुबकी लगा के पावन बनना। बाबा ने कहा है तुम मेरे मस्तक से निकली हुई गंगा हो। तुम मेरे माथे की लाज़ रखना। मेरे दिल में जो होगा, दिमाग ऐसा ही चलेगा। दिमाग में होगा तो दिल में अन्दर से वही फीलिंग होगी। तो आत्मा अन्दर से अपने दिमाग और दिल को देखे। हम साउण्ड में आते साइलेन्स में रहें। इससे सम्पूर्ण पवित्रता क्या है, अपने आप खुद को अनुभव होगा। सम्पूर्णता है ही निर्विकारीपन की। सोलह कला सम्पूर्ण, सर्वगुण सम्पन्न, फिर सम्पूर्ण निर्विकारी। मेरे में कोई भी विकार का अंश न रहे। साइलेन्स में रहकर आवाज़ में आये, आवाज़ में आते संकल्प में थोड़ा भी अशुद्धि अशं मात्र भी न हो। जो बात मेरे करने योग्य है वो तो मेरे को करनी पड़ेगी। फिर हिम्मत बच्चे की मदद बाप की, नियत साफ मुराद हासिल, सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। अगर मैं कोई भी बात में हिम्मत नहीं रखती हूँ तो जैसे बाबा का जो कॉन्टे्रक्ट साइन किया हुआ है हिम्मत बच्चे की मदद बाप की वो मैं कैन्सिल कर रही हूँ। बाबा ने मेरे में आशायें रखी हैं, उम्मीदें रखी हैं, कहाँ से उठा के कहाँ बिठाया है। अभी अपने को नालायक बना के, यह ख्याल करके हिम्मत को छोड़ेंगे तो क्या हाल होगा! तो हम लोगों को इतना एलर्ट, एक्यूरेट रहना है। कई बाबा के बच्चों ने मदद के आधार से हिम्मत नहीं छोड़ी है। पर हिम्मत और मदद के बीच में सच्चाई चाहिए। हिम्मत कभी अकेला काम नहीं कर सकती। सच्चाई का बल बाबा को पकड़के रखता है। बाबा मुफ्त में नहीं देता है, पहले सच्चाई को टेस्ट करता है। सच्चाई के आधार से भले कितने भी उतराव-चढ़ाव आयेंगे, दूसरा कोई मदद नहीं करेगा। स्वयं अपनी आत्म-अभिमानी सीट पर रहें तो बाबा मदद करता है, भले कोई न पूछे। सच्ची दिल है तो साहेब राज़ी है, परिवार मेरा है। कोई भी परिवार में ऐसा नहीं हो सकता है, जो मेरे को प्यार न करे। पर मेरे अन्दर प्यार नहीं है, यह प्यार का परवाह बल देता है। ज्ञान भी तभी अच्छा लगा है जब भगवान के लिए प्यार है, स्वयं के लिए प्यार है। अगर मेरे में हार्ट ही नहीं है तो हेड क्या काम करेगा! हार्ट, हेड, हैण्ड इसपर आधार है। जैसा दिल, दिमाग है, हाथ वैसा ही काम करेगा। अगर दिल दिलवाला के साथ है तो दिल कभी भारी नहीं होगा। दिल में दु:ख आयेगा नहीं। दु:ख देने का भी ख्याल नहीं आयेगा। दु:ख देने का ख्याल आना भी अपवित्रता है। पवित्रता में सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं है। दृष्टि-वृत्ति एक बारी भी खराब हुई, उसमें चंचलता है तो वह हमें पवित्र बनने नहीं देगी। दृष्टि में हमारी रूहानियत, आत्मिक दृष्टि हो। एक बाबा के बच्चे हैं, किसके भी स्वभाव-संस्कार वश मेरी दृष्टि में उसके लिए दुविधा आई या दु:ख महसूस हुआ। भले उसने मुझे धोखा दिया, उसका मुझे दु:ख हुआ, मेरी दृष्टि-वृत्ति बदल गयी। तो यह भी मेरी अपवित्रता हो गयी क्योंकि दु:ख, धोखेबाजी से बुद्धि दुविधा में आ जाती है। विश्वास अपने से या औरों से छूट जाता है। भावना मेरी सदा शुद्ध श्रेष्ठ हो, विश्वास अटल हो। अच्छा ही होगा, हुआ ही पड़ा है। जो मीठे बाबा ने कहा, बच्ची हो जायेगा। अन्दर से और कोई आवाज़ आये ही नहीं। कैसे होगा? मुख के लड्डू थोड़े ही खाना है। अन्दर विश्वास का जो आवाज़ है, उसको मैं क्यों छोडूं। ड्रामा में हुआ पड़ा है, कराने वाला बाबा बैठा है। मुझे अपनी भावना को सच्चा रखना, मेरा काम है। जो होगा मैं राज़ी हूँ। निश्चय में कभी खलल न पड़े, संशय न आये, स्वयं में, चाहे बाप में, चाहे ड्रामा में। ज़रा-सा भी संशय आया, तो आत्मा का जो भाग्य है, निश्चय के बल से विजय पाये, वह नहीं हो सकती। पूरे विश्व में सेवायें हो रही हैं, कई आत्मा नहीं कर रही है। परन्तु आत्मा का भाग्य है सिर्फ निश्चय रखा। भाग्य विधाता ने उसको निश्चय से निमित्त बना लिया। निश्चय का बल है सेवा का फल है। हमने क्या किया! सिर्फ पवित्रता हमारे संकल्प, वाणी, कर्म और सम्बन्ध में हो। संकल्प को शुद्ध, शान्त, श्रेष्ठ और दृढ़ बनाओ। संकल्प शुद्ध हैं, उसमें शुद्ध भावना है, श्रेष्ठ हैं तो कुछ अच्छा होने वाला है, हुआ ही पड़ा है। फिर आजकल बाबा कहते हैं दृढ़ संकल्प रखो, औरों को भी उमंग-उत्साह में लाओ, औरों को भाग्य बनाने का संकल्प आये। सम्पूर्ण पवित्रता में अशुद्ध बातों का अशुद्ध छींटा भी नहीं पड़ सकता है। पवित्रता की इतनी वैल्यू है तो सब वैल्यू हमारे में आ जायेंगी। सर्व गुण आ जायेंगे। मेरे में कोई अवगुण न रहे, मैं किसी का अवगुण चित्त पर न रखूं। एकाग्रता की शक्ति से चित्त मेरा साफ हो। सच्चाई को अगर कभी छोड़ा नहीं तो साहेब राज़ी रहेगा। फिर धर्मराज की आँख नहीं देखेंगे। सदा ही याद है, सत धर्म मेरा सच्चाई है, कारोबार में ट्रस्टी हैं। ट्रस्टी देखना है तो बाबा को देखो। हमारे बोल, चाल, व्यवहार से हर एक माने कि ये लोग बरोबर सतयुग स्थापन कर रहे हैं। दुनिया का फ्यूचर क्या है यह हमारे से दिखाई पड़े। साक्षात्कार भी हो, आवाज़ भी फैले, उनको अनुभव हो। यह है सम्पूर्ण पवित्रता।

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