”मैं अवतरित हूँ” इसी स्मृति में रह हर कर्म करें

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यह गुण, कर्म और स्वभाव – गुण और कर्म भी हमारे ऐसे हों कि स्वाभाविक हो जायें। गुणों को हम अपने स्वभाव में लाने की कोशिश कर रहे हैं। पूरी तरह से वह हमारे नैचुरल स्वभाव नहीं हो गये, कभी कोई व्यक्तिऐसी बात कर देता है जिससे उत्तेजना आ जाती, उत्साह नहीं रहता। तो बुद्धि कहती है कि शान्त रहो, शीतल रहो।

जो महान आत्मा होते हैं उनका मन, वचन और कर्म एक जैसा होता है। जैसा वह कहते हैं, जैसा वह मानते हैं वैसे ही फिर उसको चलन में लाते हैं तो महानता का यह एक विशेष चिन्ह है। और हम लोग भी जो महान बनने का प्रयत्न कर रहे हैं, पुरूषार्थ कर रहे हैं, हमारे जीवन में भी ऐसा ही होना चाहिए। तो पहले-पहले जब इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में प्रवेश करते हैं तो एक फार्म हमसे भरवाया जाता है और जीवन का लक्ष्य पूछा जाता है, उस पढ़ाई का एम एंड ऑब्जेक्ट बताया जाता है। उसमें कहते हैं कि हमें देवी-देवता बनना है। और उसकी व्याख्या करते हुए हम सबको यह कहते हैं- सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम… बनना है। तो सर्वगुण सम्पन्न एक तो गुणों की विशेष बात हो गई। वैसे तो आमतौर से ऐसा होता है जैसे मनुष्य के गुण हो वैसे ही कर्म होते हैं। परन्तु यहाँ ऐसा नहीं है क्योंकि गुण हम धारण करने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। और कभी-कभी जो हमारे पुराने संस्कार हैं वह हमारे गुणों को ढक लेते हैं और पुराने संस्कार ऐसे कर्म करा देते हैं जो मन-बुद्धि कहती है कि यह कर्म अच्छा नहीं है, यह करना नहीं चाहिए फिर भी भूल कर देते हैं। तो यह गुण, कर्म और स्वभाव – गुण और कर्म भी हमारे ऐसे हों कि स्वाभाविक हो जायें। गुणों को हम अपने स्वभाव में लाने की कोशिश कर रहे हैं। पूरी तरह से वह हमारे नैचुरल स्वभाव नहीं हो गये, कभी कोई व्यक्ति ऐसी बात कर देता है जिससे उत्तेजना आ जाती, उत्साह नहीं रहता। तो बुद्धि कहती है कि शान्त रहो, शीतल रहो। सहनशीलता का गुण धारण करो लेकिन स्वभाव ऐसा बन चुका है जो वह सहन नहीं करता। परन्तु बाबा की आज्ञा का पालन करने के कारण मजबूरी से वह धारण करता है। अभी स्वभाव हमारा ऐसा बन जाये कि गुण जो हैं वह हमारा नैचुरल स्वरूप हो जाये। अलग न रहें और उसी के अनुसार हमारे कर्म भी हों। बाबा कहते हैं जो भी कर्म करो ऐसे समझो कि आपकी आत्मा ने ब्रह्मलोक से आकर शरीर में प्रवेश किया है। और ओम अर्थात् मैं शान्त स्वरूप, शुद्ध स्वरूप आत्मा हूँ… इस स्मृति में रहें। याद रखें कि हमारा यह नया जन्म हुआ है। नई दुनिया के लिए हम पुरूषार्थ कर रहे हैं, नया ज्ञान सुन रहे हैं, नया परिवार मिला है तो नवीनता आयेगी। हमारे गुण, कर्म और स्वभाव नये बनेंगे। लौकिक से अलौकिक बनेंगे, आसुरी से दिव्य बनेंगे और जो अपवित्र हैं वह पवित्र बनेंगे। शरीर के साथ रहते-रहते ऐसे हमारे सम्बन्ध हो गये हैं जो उन्हें भूलना कठिन हो गया है। इससे पक्की दोस्ती हो गई है। रात को स्वप्न भी देखेंगे तो अपने दोस्त का… कोई आत्मा और परमात्मा के स्वप्न थोड़े ही देखते हैं, देहधारियों का स्वप्न देखते हैं। स्वयं को भी देह में देखते हैं और देहधारियों के ही स्वप्न देखते हैं, देह की दुनिया के ही स्वप्न देखते हैं। तो देह से इतना लगाव-झुकाव हो गया है और इतनी अटैचमेंट हो गई है कि वह भूलता ही नहीं है। यह आपको मालूम है कि जब ब्रह्मा बाबा अव्यक्त हुए तो रात्रि को जब वह क्लास में मिलने गये तो बाबा ने क्या महावाक्य उच्चारण किये थे। बाबा ने कहा था निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी बनो। तो निराकारी कैसे बनोगे, जब यह सोचोगे कि ब्रह्म से हम पधारे हैं। ब्रह्मा बाबा की शुरू की, आदि, अन्त और मध्य तीनों कालों की यही आज्ञा रही है कि अपने को आत्मा समझो और यह समझो कि मैं परमधाम से उतरी हुई हूँ, इस कर्मक्षेत्र पर कर्म करने के लिए। देह से न्यारे होने की ड्रिल करो तो यह ड्रिल कैसे करेंगे? आत्मा की स्मृति कैसे रहेगी? जब पहले-पहले हम यह सोचेंगे कि हमारे बाबा जो हैं वह भी ब्रह्म से पधारे और हम भी ब्रह्म से पधारे। तो हमारे ज्ञान का आदि-मध्य-अन्त क्या हुआ? हम यह सोचें कि हम भी वहाँ से आये हैं। पृथ्वी पर पाँव हमारे हों, लेकिन हमें अनुभव ऐसा हो, याद हमारी ऐसी हो कि हम लाइट के हैं और ब्रह्म से आये हैं तो वह तो लाइट का देश है, साइलेंस का देश है, पवित्रता का देश है, तो ऐसे उस देश से हम आये हैं तो हमारे बोल, गुण, कर्म, स्वभाव अपने आप ही बदलेंगे, तो यह मत भूलो। ब्रह्माकुमारी और ब्रह्माकुमार वह है जिसको पहली पहली बात यह याद रहे, लोग किसी से झगड़ा भी करते हैं, बात भी करते हैं, किसी को टोकते हैं, कहते हैं – तू क्या समझता है अपने आपको? तू कहीं ऊपर से उतरा है क्या? तू भी इस दुनिया का है, हम भी इस दुनिया के हैं… तू कोईविशेष है है क्या? और हम क्या समझते हैं कि हम तो सचमुच में ऊपर से उतरे हैं। वह कह देते हैं कि ऊपर से उतरा है, ऊपर कहाँ है? क्या है? कैसे उतरना होता है? वह उनको पता नहीं है। तो यह अगर हमको याद रहे कि इस दुनिया में तो हम मुसाफिर हैं। यह सराय है, मुसाफिरखाना है। और हम तो यहाँ से जाने वाले हैं। इस माया नगरी में, पुरानी ुदनिया में हम गुप्त वेश में जो सतयुगी स्वराज्य है उसको स्थापन करने के लिए आये हैं तो मन की स्थिति कैसी रहेगी? वैराग्य, त्याग अपने आप ही आयेगा। योग अपना स्वयं ही लगेगा, देह से न्यारापन स्वत: ही आयेगा। तो इस एक बात को याद रखने से कि हम ब्रह्मा बाबा के बच्चे हैं और ब्रह्मा बाबा ही के लिए जब कहा गया कि वह ब्रह्म से पधारे हैं, तो हम भी वहाँ से पधारी हुई आत्मायें हैं, जो कि लाइट के देश से आई हैं और स्वयं लाइट और माइट के स्वरूप हैं तो निराकारी स्थिति स्वयं हो जायेगी। फिर ब्रह्मा बाबा तो ब्रह्मणादि का पिता है। ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मसा उत्पन्न हुए हैं तो सारे ब्राह्मणों के आदि पिता कौन हैं? प्रजापिता कौन है? ब्रह्मा बाबा। तो ब्राह्मणों के जो श्रेष्ठ, जो परम आदरणीय हैं वह ब्रह्मा बाबा हैं। तो जब कोई अपने को ब्रह्माकुमार – ब्रह्माकुमारी कहलाता है तो यह उपाधि, यह डिग्री जो है, इससे श्रेष्ठ और क्या हो सकती है? जो सारी दुनिया को रचने वाले ब्रह्मा हैं उनके हम कुमार-कुमारियां हैं, जिसको बाबा कहतेह ैं आप साहबजादे, साहबजादियां हैं, अपने को साधारण मत समझो। तो जब साहबजादे, साहबजादियां हैं तो हमारे कर्म कैसे होने चाहिए? चलन कैसी होनी चहिए? रॉयल। हमें कुल के हिसाब से चलना चाहिए, जैसे राजकुमार कैसे चलेगा? वह समझेगा मैं राजकुल का हूँ। जो कोई पढ़ा लिखा, अच्छे कुल का व्यक्ति होगा वह कोर्इ भी काम करेगा सोच समझकर अपने कुल की मर्यादा का ख्याल करके करेगा। तो हम ब्रह्मा की सन्तान हैं, ब्रह्मा सारी सृष्टि के आदि पिता रचयिता हैं और वह ब्राह्मणों के भी आदि पिता हैं। और स्वयं शिवबाबा ब्रह्मा के मुख से कहते हैं कि आप साहबजादे और साहबजादियां हैं तो हमारे कर्म कैसे होने चाहिए? तो ब्रह्माकुमारी को हमेशा यह सोचना चाहिए कि सारी दुनिया की निगाह हमारे ऊपर है। सफेद कपड़ा हमने पहन लिया और अब यह दुनिया में मशहूर हो गया कि जिसने पूर्ण रूप से ऐसे सफेद वस्त्र धारण किये हो, बैज भी लगाया हुआ हो तो लोग सममझ जाते हैं कि यह ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। तो उनका बोल,उनका उठना, बैठना, बात करने का तरीका कैसा होना चाहिए? हमने कितनी बड़ी जि़म्मेवारी ले ली है, यह कितना बड़ा टाइटल हमें मिला है, उसमें ना केवल हमें अपने सौभाग्य पर गर्व होना चाहिए कि इतनी जल्दी हमको इतना ऊंचा पद मिल गया। कोई प्रेजीडेंट बनता है,वाइस प्रेजीडेंट बनता है, सारी आयु राजनीति में गुजार देता है, फिर भी बनता है कि नहीं बनता है औश्र बाबा ने हमको फौरन ही ब्रह्माकुमारी बना दिया, ब्रह्माकुमार बना दिया, यह टाइटल दे दिया। जो विश्व के शिरोमणि आत्मायें हैं, जो हीरो पार्टधारी हैं, वह टाइटल हमको दे दिया -यह कितनी बड़ी बात है। तो बाबा ने कोई ट्रस्ट करके आपमें विश्वास रखके, आपके ऊपर एतबार करके कि आप ऐसी आत्मायें हैं तभी आप यहाँ आये हैं, यह बनने के लिए दावा आपने लगाया है। तो बाबा ने जिसमें विश्वास किया है उसको अगर हम न निभायें, तो विश्वास तोडऩे को क्या कहा जाता है – विश्वासघात। विश्वासघात तो बहुत बड़ा पाप होता है। कोई हममें विश्वास करे, कोई कहता है यह बात आपको बता रही हूँ, किसी को बताना मत, इसमें मेरे जीवन का सवाल है, यह बहुत खतरा है, मैं बदनाम हो जाऊंंगी, लेकिन अपने मन को हल्का करने के लिए तुम्हें बताया है इसलिए अपने तक ही रखना क्योंकि तुम्हारे में मेरा विश्वास है, तुम्हारे से राय करने के लिए मैंने कहा है और अगर वह विश्वासघात कर दे, इधर-उधर 20-25, 40-50 व्यक्तियेां को बता दे तो आपको कैसा लगेगा, यह तो विश्वासघाती आदमी है। बुरा लगेगा ना। तो स्वयं भगवान ने जिनमें विश्वास किया हो, वह तो हो गई मनुष्य की बात, स्वयं भगवान ने जिसमें विश्वास किया हो… लोग तो कहते हैं भगवान पर भरोसा करो, भगवान पर विश्वास करो यह भी बहुत बड़ी बात है। फेथ इन गॉड, गॉउ में फेथ रखना चाहिए और गॉड ने आपमें फेथ रख दिया, यह तो कितनी बड़ी बात हो गई। बजाय इसके कि इन्सान भगवान में फेथ रखे, भगवान ने एक इन्सान में फेथ रख दिया और अगर वह भी इन्सान तोड़ दे तो क्या कहेंगे उसको? अति निकृष्ट, जो अपनी तकदीर को लकीर लगाये, अपने सौभाग्य को लात मारे। अपने पाँवों को अपनी कुल्हाड़ी से काँटे, जिस डाल पर बैठा हो उसी को काट दें, तो यह कितनी बड़ी जिम्मेवारी है। याद रखिए कि भगवान का यह टाइटल जो सर्व श्रेष्ठ मिला है उसे हमें तोड़ निभाना है, हमें इसको कायम रखना है। वरना आप सोचिए अगर कोई एक नाव चलाने वाला नाविक हो, केवट हो और उसको पानी से डर लगे तो आप कहेंगे भाई तू भी अजीब आदमी है पानी से डरता है! चला ली तूने नांव, हमको भी डुबायेगा, खुद भी डूबेगा। अगर कोई बन्दूक चलाने वाला सिपाई हो, जब भी बन्दूक की आवाज़ कहीं से आये बन्दूर चल रही हो, कहीं दूर आवाज़ आये और वह काँपने लगे, तो आप क्या समझोगे? यह भी अजीब सिपाही है, यह तो हमें ही मरवा डालेगा, यह हमारा रक्षक क्या होगा? तो जो व्यक्ति जैसा है अगर वह वैसा कर्म न करें, उससे भिन् न उससे विपरित अगर उसके गुण, कर्म और स्वभाव हो तो वह उसके फिट नहीं होताव् वह गलत टाइप का व्यक्ति है ह। तो बाबा ने जब हमको चुना है यह समझ करके हम इस बात को धारण करेंगे। तो हमें अपनी फिटनेस को ठीक रखना है। अपने उस कत्र्तव्य, जिम्मेवारी को पूरी तरह से निभाना है, यह नहीं कि हम भी काँपना शुरू कर दें कि यह कैसे हो सकता है, यह हमारे लिए पॉसिबल ही नहीं है। लेकिन जब पॉसिबल है तभी तो बाबा न े कहा है, आदि, मध्य, अन्त को जानने वाला जो त्रिकालदर्शी बाप है। स्वयं उसने यह टाइटल हमें दिया है तो फिर हमें कितना ख्याल रखना चाहिए! अभी हम साहबजादे, साहबजादियां हैं और भविष्य में हाने वोले शहजादियां और शहजादे हैं। भविष्य का ख्याल आना चाहिए, साथ साथ जो सतयुग में देवी देवता बनने वाले और स्वराज्य को धारण करने वाले मोर मुकुटधारी हैं या रत्नजडि़त ताज़ धारण करने वाले तख्त पर बैठने वाले हैं। अभी ब्रह्माकुमार कुमारी बनते हैं, उसके बाद वह विश्व के महाराज कुमार और महाराज कुमारियां बनते हैं, तो यह हमारा भविष्य है। वर्तमान पर हमारा भविष्य है, अगर कोई के लक्षण ठीक हैं तो वह विश्व के राज्य का अधिकारी बनेगा। अगर वह यहाँ ही फेल हो गया तो भविष्य में राज्य कहाँ से मिलेगा? कई लोग यह सोचते हैं कि हम भविष्य में क्या बनेंगे? यह कोई हमें बताये। कभी बाबा से बोलने का हमें मौका मिले तो हम बाबा से पूदें कि बाबा हम पहले लक्ष्मी नारायण के टाइम आयेंगे, दूसरे या तीसरे में आयेंगे, उनके परिवार में नज़दीक होंगे या क्या बनेंगे? थोड़ा बहुत तो हरेका को शौक होता है। कि अगर हमें स्पष्ट रूप से पता लग जाये कि हम कहाँ आयेेंगे, कैसे आयेंगे, क्या बनेंगे तो अच्छा होगा। लेकिन लॉ यह है कि क्रक्रजैसा करोगे वैसा भरोगेञ्जञ्ज, क्रक्रजैसा बोओगे वैसा काटोगेञ्जञ्ज और बोया जाता है आज और काटा जाता है भविष्य में। अगर आप हो ही ठीक नहीं तो बनोगे क्या? तो इस प्रकार के प्रश्न पूछना ही फालतू है। जो हो उसके अनुसार बनोगे। कर्म का विधान है। कर्म की गति से हमारी सद्गति होगी। अगर अभी हमारे लक्षण ठीक नहीं हैं तो भविष्य भी हमारा ठीक नहीं है तो कितनी बड़ी बात है। तो हमारी जो प्रैक्टिकल लाइफ है वह इतनी निर्मल हो, इतनी शक्तिशाली हो, ज्ञान की हमारे में इतनी स्प्रिट(धारणा) हो। योग की इतनी अपने में शक्ति हो, दिव्य गुण हममें इतने भरपूर हों जो उसका दूसरों पर प्रभाव पड़े। तब वह बदलेंगे, जो वहचन वह बोलेगी वह इतनेशक्तिशाली होंगे जैसे बाबा कहते हैं जौहर भरी तलवार जैसे होती है। वहद ूसरे कोलग जायें, असर करें। तो ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी बनना माना कोई सफेद वस्त्र पहन लेना याना लिख लेना या सेन्टर पर रहने की बात नहीं है लेकिन जो हमारी प्रैक्टिकल लाइफ है वह शक्तिरूपा हो, वह पवित्ररूपा हो। पवित्रता और रूहानी शक्ति अगर नहीं है तो ब्रह्माकुमारी सिर्फ नाम की हो गई। वह जैसे एक आर्टीफिशल गोल्ड होता है, एह रीयल गोल्ड होता है। तो वह उसका मूल्य क्या हुआ? तो अपने में यह जज करो कि मुझ में कितनी रूहानी शक्ति भरी है? वह रूहानी शक्ति भरने की परीक्षा कैसे करोगे, कैसे मालूम पड़ेगा कि प्युरिटी की पॉवर कितनी आयी है? मुझ में कोई अशुद्ध संकल्प तो नहीं आते? कोई देहधारियों के प्रति आकर्षण तो नहीं होता? कोई किसी के प्रति ईष्र्या-द्वेष तो पैदान हीं होता? कोई मन में संसार के प्रति पहनने की, खाने की, घूमने की किसी भी प्रकार की इच्छायें तो नहीं हैं? अबगर यह सब चिन्ह ठीक हैं, जैसे डॉक्टर भी जब जाँच करता है तो जबान देखता है, नब्ज देखता है, थर्मामीटर लगाता है, हाथ पर स्टेथसकोप रखके लगाके देखता है और ब्लड टेस्ट करता है, जो भ्ी टेस्ट करना हो, टेस्ट करके कहता है आपको फलानी बीमारी है। तो हम लोग भी अपनी पवित्रता की औरयोग की शक्ति को चेक करें उसकी एक परख तो यह होगी कि उसका दूसरों पर प्रभाव पड़ेगा। बाबा कहते हैं अपने स्वयं डा. बनो चेक करो अपने को, तो क्या चेकिंग करेंगे? कि पवित्रता कहाँ तक है? बहुत दफा बाबा कहते अनटच्चड कुमारी जिसको किसी पुरूष ने हाथ न लगाया हो। ऐसी निर्मल, स्वच्छ, किसी को उसकी देह के प्रति ऐसा आकर्षण न हुआ हो। इतनी पवित्रता हो कि दूसरे केमन मेंभी उसको देखकर कोई अपवित्र संकल्प न आये। गन्दे से गन्दा आदमी हो, बिल्कुल संसार में बदनाम आदमी, बिल्कुल ही दु:चरित्र आदमी वह भी अगरसामने आयेख् देखे तो वहभी समझे के यह देवी है, शक्ति है। उसका भी विचार बदल जाये, ऐसी पवित्रता हमारे हो कि उसकी अपवित्रता को नष्ट कर दे। हमारी शक्ति इतनी तेज हो कि उसको ध्वस्त कर दे। हमारी पवित्रता का ऐसा प्रभाव पड़े कि स्वयं उसमें भी परिवर्तन आ जाये, यह हमारी पवित्रता की स्टेज हो। और योग की शक्ति हमारी ऐसी हो कि उससे उसके मन को भी शांति का अनुभव हो और उसके मन में यह संकल्प आये कि यह तो देवी है, शक्ति है। अगर ऐसा अभ्यास आपका होता जायेगा तो उसको लाइट का साक्षात्कार होगा। मैं आत्मा लाइट हूँ वह तो ठीक है लेकिन दूसरे को भी यह अनुभव होने लगेगा कि यह लाइट है, इसके आस पास लाइट दिखाई दे रही है जिसको और या प्रभामण्डल कहते हैं, वह दिखाई देगा। योगियों के सिर के पीछे लाइट दिखाते हैं ना, तो ऐसे दूसरे को भी लाइट दिखाई देगी। चेहरे को देखने के बजाय उस लाइट को देखने लगेगा, यह क्या है, चेहरा गुम हो जायेगा और हल्का हल्का सा झिलमिल झिलमिल प्रकाश उसे मालूम पड़ेगा। तो ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारी वह जो ब्रह्मा की संतान है। मुखवंशी है। मुख से पैदा हुए हैं, ब्राह्मण के लिए कहा जाता है जो यज्ञ करे और कराये, पढ़े और पढ़ाये। ब्राह्मण वह है जो दान दे और ले और यज्ञ पवीत(जनेऊ) पहनें औरपहनाये। यह ब्राह्मणों के कर्म प्रसिद्ध हैं। परन्तु यह स्थूल की बात नहीं है, अभी हम तो इसके अर्थ स्वरूप में टिकते हैं। यज्ञ करें और यज्ञ करायें, दान दें और दान लें, पढ़े और पढ़ाये, क्या पढ़े और क्या पढ़ायें? यह जो ईश्वरीय पढ़ाई है, ईश्वरीय पढ़ाई रोज़ कायदे से पढ़ें। गॉडली स्टूडेंट लाइफ इज बेस्ट, जिसको बाबा कहते कि किसी भी दिन मुरली मिस न हो। मुरली सुनने के बाद फिर उसका स्वाध्याय करें। स्वयं उसपर मनन चिंतन करें। दूसरा अगर किसी ब्रह्माकुमारी ने सारे दिन में किसी को भी ज्ञान नहीं दिया यह तो बात बनी नहीं। जैसे कि स्नान ही नहीं किया। कोई स् नान न करे, उसको कैसे लगता है। वस् त्र चेंज न करे और स् नान न करे तब तक भोजन खाने का मन नहीं करेगा। तो स्थूल सेवाओं के साथ साथ मुरलीधर भी ज़रूर बनो। बाबा ने जो मुरली सुनाई जब तक वह आप रिपीट नहीं करोगे, तो वह आपकी बुद्धि में धारण नहीं होगी। जैसे दीप से दीप जगना चाहिए वैसे आपने जो सुना है वह सुनाओ, उसको सुनाये बिना रिफ्रेश नहीं होंगे। अगर हमारे मन में यह दृढ़ सकंल्प हो कि हमें किसी न किसी को ज्ञान सुनना ही है, यह ब्राह्मण का कत्र्तव्य है। बाबा के वचन जो सुने हैं, बाबा ने जो हम पर एहसान किये हैं, जो हमें धन दिया है यह बंटना है, यह केवल अपने तक सीमित नहीं रखना है तो कोई ना कोई साधन मिल जाता है।

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