हर्षितमुख रहना है पुुरूषार्थ की सफलता…

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शक्तियों की महिमा अपनी है, महावीरों की महिमा भी कम नहीं है। पाँच पाण्डवों में भी हरेक की खूबी अपनी है। पाण्डवों के पाँचों ही गुण हरेक में आ जायें। भीम भण्डारी सम्भालता है। अर्जुन ज्ञान सुनते-सुनते नष्टोमोहा स्मृतिर्लब्धा तक लाने की धुन लगाके बैठा है। नकुल कॉपी करने में होशियार है, सहदेव सदा सहयोगी है। सतधर्म और राज्य के हरेक गुण युद्धिष्ठिर के साथ-साथ हर एक पाण्डव में हैं और पाण्डवपति साथ है। शिवबाबा की शक्ति साथ न होती तो कदम आगे न बढ़ा सकते। कदम-कदम बाबा को फॉलो करते। हमारे सामने तो दिन-रात, स्वप्न में चाहे संकल्प में बाबा के चरित्र और बाबा के बोल ही हैं। पुरूषार्थ के बगैर एक मिनट भी हमारा न जाये, इसमें न सुस्ती है, न बहाना है। पुरूषार्थ करने का टाइम नहीं है यह शब्द हम नहीं कह सकते। मैं बिजी हूँ, यह सरकमस्टान्स है। अक्ल नहीं है। याद और सेवा दो ही हमारे अन्दर हैं। याद भी हमारी ऐसी हो जो बाबा भी मेरे को याद करे, तब कहेेंगे मेरी याद ठीक है। तो चेक करते रहो कि बाबा को मेरी याद आती है? भाग्यविधाता के हाथ में हाथ दिया है तो उसने भी साथ दिया है। और फिर गैरन्टी है जो बाबा ने मुझ आत्मा के प्रति महावाक्य उच्चारे हैं, वो काम कर रहे हैं। और किसके वाक्य अन्दर जा नहीं सकते। अगर और किसी के बोल हमारे अन्दर गये तो बाबा के बोल काम नहीं करते हैं, बड़ी खबरदारी की बात है। मैं किसी को समझाऊं, मैंने देखा यह भी व्यर्थ है। उनसे ज्य़ादा शुद्ध संकल्प, श्रेष्ठ भावना काम कर रही है। अगर चिंतन में लाते तो जो बोलते हैं वो असर नहीं करता है। उसके बजाय पहले हमारा व्यर्थ समाप्त हो। जितना समय मैंने किसी को समझाने का चिंतन किया, उतना समय मुझे उसे समझाने का चांस ही नहीं मिलता। अगर मैं उसको समझाऊंगी तो वो कहेगी कि तुम कौन हो! मैं जानती नहीं हूँ क्या, तुमको सही बात का पता नहीं है! तो क्या फायदा हुआ। उसके बजाय श्रेष्ठ संकल्प, समर्थ संकल्प का साथ देना, साथी बनाना, इससे आज नहीं तो कल चेंज होगा। इसमें धीरज की बात है, समय लगेगा पर संकल्प की क्वालिटी, श्रेष्ठ भावना, शुद्ध भावना को अगर मैंने चेंज किया तो जो बात सामने है उससे मैं सहज पार नहीं हो पाऊंगी। मेरे को पार होना है। ड्रामा अनुसार बात तो पार हो गयी लेकिन चिन्तन में अभी भी है तो मेरी स्थिति कैसी है। अगर मेरी स्थिति ऐसी रही तो उसको फायदा नहीं होगा। अगर श्रेष्ठ भावना, शुद्ध भावना होगी तो फायदा होगा। थोड़ा भी इफेक्ट में आई तो मेरा डिफेक्ट हो जायेगा, इसमें स्वयं को सम्भालना है। हर्षितमुख रहना पुरूषार्थ की सफलता है। हर्षितमुख तब होगा जब मैं आत्मा शान्त हूँ, मेरा स्वधर्म शान्त है, मेरा बाबा प्यार का सागर है। जैसे बाबा मुस्कुराते सब काम करता है। मुस्कुराते-मुस्कुराते बाबा समझ भी देता है तो शक्ति भी देता है। अगर इतना बाबा से प्यार है, तो कहता है मैं बैठा हूँ। वो शक्ति देता है मुस्कुराने की। ड्रामा की हर सीन सामने आती है, सब दिन होत न एक समान। पढ़ाई है लेकिन परीक्षा न हो तो पास कैसे होंगे! इसमें भी एक ईष्र्या, दूसरा निराश है, कभी प्रसन्न नहीं रहते। अगर खुद प्रसन्न हैं, परिवार प्रसन्न है, सेवा में प्रसन्न हैं तो बापदादा प्रसन्न है। ड्रामा में जो बात सामने आयी, खेल न समझा तो हार खाई, सीन बहादुर हो गयी। अपमान ने इफेक्ट में लाया तो जो स्वमान में रहने की बाबा ने अच्छी सुत्ती घोट के पिलाई है, उस पर विचार सागर मंथन करने की आदत ही नहीं है। अगर सूक्ष्म में जाकर देखें तो पढ़ाई का जो सार है वह बहुत काम कर रहा है। विस्तार में थोड़ा भी जाते हैं तो संकल्प की क्वालिटी नहीं रहती। निष्काम सेवा की स्थिति से नीचे आ जाते। सेवा में निरहंकारी भी नहीं रह सकते। एक ही टाइम पर कई प्रकार की सेवा सामने हैं। बेहद के सेवाधारी हैं। पाँच तत्वों के पार रहते हैं। जैसे बाबा बैठा है अनेक प्रकार के बच्चों को देखता है, दुखियों की पुकार सुनता है। हम आत्मा को क्या करना है? हमें कोई जंगल में नहीं जाना है। बाबा हमारे से क्या चाहता है! मैं तो फूल बनूँ, पर ऐसे फूलों को बाबा के सामने ले आऊं। बाबा ऐसा है जो कभी हमारे अन्दर चाहना पैदा होने नहीं देता है। बाबा जो चाहता है, बाबा को जो कराना है, उसमें हाँ जी, मुख से भले नहीं करो, पर हाजि़र रहो। एक बार बाबा ने मुझे कहा हज़ूर कोई हुकुम है। तुमने हाँ जी कहा है ना, तो हज़ूर सदा हाजि़र रहेगा। मुझे अपे आपको सम्भालना है, जो बाबा ने कानों में सुनाया है वही सोचना है। वही करना है, बस। बाबा ने खुद करके दिखाया है। बाबा जैसी सेवा कोई कर नहीं सकता। पर सेवा करते जितना निरहंकारी, निष्कामी रहा है, हमें भी उन जैसा रहना है।

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