मन की बातें

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प्रश्न : मेरे रिलेटिव भाई हैं जो सिगरेट छोडऩा चाहते हैं लेकिन छोड़ नहीं पा रहे हैं। रेगुलर मुरली भी पढ़ते हैं। बिजनेसमैन हैं तो ज्य़ादा टाइम नहीं निकाल पाते सेन्टर जाने के लिए। तो मुझे क्या करना चाहिए जिससे उनकी सिगरेट छूट जाये।

उत्तर : ये बहुत अच्छी बात है कि वो सिगरेट छोडऩा चाहते हैं।तो हमारे यहाँ होम्योपैथिक मेडिसिन जो डॉक्टर्स देते हैं, वो ले लेना चाहिए। वो आये यहाँ माउण्ट आबू में और यहाँ होम्योपैथी डॉक्टर से सिगरेट छुड़ाने वाली मेडिसिन लें। शराब छुड़ाने की अलग, तम्बाकू छुड़ाने की अलग। सिगरेट छुड़ाने की गोली वो अलग देते हैं। ये एक तलब है ना, ये एक इच्छा है तो वो उस तलब को समाप्त करेगी। एक तो ये प्रयोग उनको करना चाहिए। दूसरा आप बहन बहुत अच्छा प्रयोग कर सकती हैं। सवेरे पाँच बजे, ये टाइम हम इसलिए कहते हैं क्योंकि उस समय प्रकृति शांत होती है। मनुष्य का मन भी शांत होता है और उसका सब्कॉन्शियस माइंड भी जगा होता है। मनुष्य के अपने विचार भी बहुत सुन्दर होते हैं। कोई भी व्यक्ति उस टाइम उठा हो तो उस समय उसके मन में पाप के विचार नहीं आ सकते। बहुत सुन्दर विचार ही आयेंगे। तो पाँच बजे आप उनको दस मिनट वायब्रेशन्स दें। योग के दस मिनट सुन्दर वायब्रेशन्स उनको देने हैं, और याद दिलाएं कुछ बातें कि तुम देव कुल के हो। जब तुम देवता थे तो क्या तुम सिगरेट पीते थे? अपने उस देव स्वरूप को ज़रा इमर्ज करो और देखो अपने हाथ में सिगरेट है तो घृणा आ जायेगी। तो उन्हें स्मृति दिलाएं उन्हें पाँच बजे निश्चित रूप से वो सोये होंगे। याद आयेगा तो जागृति आयेगी कि मैं परम पवित्र आत्मा, देवकुल की आत्मा, और ये सिगरेट के वश हो गया। दूसरी चीज़ आपको उनको याद दिलाना है कि तुम भगवान के बच्चे हो। सर्वशक्तिवान की संतान हो। तुम बहुत शक्तिशाली हो, ये सिगरेट तो कुछ भी नहीं है। तुम तो बड़े-बड़े व्यसनों को, बड़े-बड़े विकारों को छोड़ सकते हो। जिसने काम को जीत लिया सिगरेट को छोडऩा क्या बड़ी बात है। जिसने क्रोध को जीत लिया उसके लिए सिगरेट को छोडऩा एक खेल है। केवल दृढ़ इच्छा की ज़रूरत है। जब मनुष्य दृढ़ इच्छा कर लेता है तो तलब लगने पर वो आजकल कई सुगन्धित चीज़ें मिलती हैं, मुखवास जिसे कहते हैं वो खायेगा तो उस टाइम को पास करेगा किसी भी तरह। और नहीं तो थोड़ी चाय पी लेगा ताकि वो तलब हट जाये। लेकिन जिसको करना है, जिसको दृढ़ इच्छा है वो कर सकता है। आपको अपने भाई को ये दो बातें रोज़ सवेरे पाँच बजे याद दिलानी हैं। दस मिनट योगदान करना है। निश्चित रूप से उसमें आत्म जागृति आती जायेगी। तीसरी बात भी याद दिलाएं कि तुम तो भगवान के बच्चे हो। अब उसका आदेश है कि इन व्यसनों से तुम मुक्त हो जाओ। इन व्यसनों के जो नुकसान हैं वो भी हमारे लोग सुनाते हैं और उन्हें पता होगा। लेकिन भगवान के बच्चे हैं ये फीलिंग आने पर मनुष्य के अन्दर एक शुद्धि जागृत होती है। एक प्युरिटी इमर्ज हो जाती है और उसे इन चीज़ों के प्रति घृणा होने लगती है। फिर ये छूट जाती हैं।

प्रश्न : मेरा नाम मेघा है। मैं एक कुमारी हूँ। मैं ब्रह्माकुमारीज़ से दो साल से जुड़ी हुई हूँ। मैं हर रोज़ मुरली क्लास करती हूँ, लेकिन मुझे एक कन्फ्यूज़न है कि एक तरफ तो मैं बाबा से दूर नहीं होना चाहती, बाबा का सपूत बच्चा बनना चाहती हूँ। दूसरी तरफ विचार आता है कि ऐसे अकेले जीवन कब तक चलेगा, भले ही बाबा साथी है लेकिन जीवन में एक स्थूल साथी भी तो ज़रूर चाहिए। तो मन में एक दुविधा की स्थिति पैदा हो गई है कि मैं क्या करूँ?

उत्तर : एक कन्या का ये सोचना लाजमी है और माँ-बाप भी यही सोचते हैं कि हमारी लड़की भला कैसे जियेगी। ये दुनिया अभी बहुत गंदी हो चुकी है। परन्तु मैं अपनी बहनों को जो बहुत पवित्र हैं, कि देखिए जो लोग मैरिज कर चुके हैं, जिनको साथी मिल गए सोच लें वो कितने सुखी हैं। मेरे पास इतने फोन आतेे हैं- कोई कहता कि हमें घर से निकाल दिया है, सास ने दहेज की बहुत मांग की है अब घर भेज दिया है कि दहेज लेकर आओ। नहीं तो यहाँ आना नहीं। दूसरे ने कहा कि मेरा पति बहुत शराब पीता है, मुझे पीटता है, मैं अपने घर आ गई हूँ, क्या करूँ? इधर माँ-बाप और भाई कह रहे हैं कि वापिस जाओ वही तुम्हारा घर है। मेरी रूह कांपती है वहाँ जाने के नाम से। तीसरा फोन आया कि उसका अफेयर किसी और से है और कहा कि तुम घर से निकल जाओ, मेरा तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। मेरे साथ तुम दु:खी रहोगी। अब मैं क्या करूँ। अब देखो साथी हैं लेकिन ये एक की कहानी नहीं है, लाखों की कहानी है। साथी हैं लेकिन सुख नहीं है। इसलिए हम अपनी इन पवित्र बहनों को राय देना चाहते हैं नि:संदेह अकेला रहना थोड़ा कष्टदायी तो होगा लेकिन जहाँ परमात्म साथ हो, जहाँ भगवान जिम्मेदारी ले रहा हो, जिससे शादी की थी उसने जिम्मेदारी तो ली लेकिन निभाता कोई नहीं है। भगवान जिम्मेदारी लेता है और सदा निभाता है। उसमें सम्पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। लेकिन संकल्प से काम नहीं चलेगा कि भगवान साथी है। अगर आप पवित्र जीवन जीने का एक बहुत बड़ा निर्णय लेती हैं तो आपको योगी भी बनना पड़ेगा। हो क्या रहा है बहुत सारे पवित्र जीवन, बाबा का बनकर जीवन बिताने का संकल्प और सेवा भी करेंगे, ये बहुत अच्छा संकल्प भी करते हैं। लेकिन संकल्प नहीं करते कि हमें योगी बनना है। तो इससे क्या नुकसान होता है कि अन्दर कहीं न कहीं एक खालीपन, एक अभाव, किसी की तलाश, किसी साथी को ढूंढने की इच्छा बराबर बनी रहेगी। क्योंकि हयूमन नेचर है वो अकेला नहीं रह सकता। लेकिन अगर वो योगयुक्त हो जाये तो उसे सोचने की ज़रूरत नहीं। उसके लिए स्वयं भगवान सोचेंगे। वो साथ निभायेंगे। वो उनके साथ है उनकी ओर से ये गुड फीलिंग आयेगी। और तब ये समस्या समाप्त हो जायेगी कि मुझे कोई स्थूल साथी चाहिए। तो मैं तो कहूँगा कि जब भगवान मिला है, उसके साथ का आनंद लें तो इन सभी समस्याओं से मुक्त हो जायेंगे। लेकिन मर्यादाओं की लाइन हमें चारों तरफ खींच कर रखनी है। एक मर्यादित लाइफ, एक डिसिप्लिन लाइफ, वास्तव में एक स्ट्रॉन्ग लाइफ बनती है। तब हमारी मर्यादायें, हमारी प्युरिटी हमारे लिए सुरक्षा कवच बन जाती हैं। इसलिए जिसको कुछ करना है तो उसको कुछ डिसिप्लिन तो फॉलो करने ही होंगे। अपने जीवन में एक महान स्पिरिचुअल टारगेट को प्राप्त करने के लिए, स्पिरिचुअल लाइफ को अपनाना पड़ेगा ही। भले ही वो थोड़ी कठिन भी हो। इनको तो कठिनाई हम तब मानते हैं जब हमारी अपनी कोई दूसरी इच्छायें होती हैं। अगर हम इनको ही अपना मान लें कि हमारी उन्नति का यही मार्ग है तो कितना अच्छा होगा। मान लो किसी को ये कहा जाये कि तुम दस बजे के बाद घर से बाहर न निकलना, बाहर बहुत नुकसान होता है, आंतकवादी घूमते हैं, अपहरणकर्ता घूमते हैं, चोर-लुटेरे घूमते हैं, अगर वो इसे स्वीकार कर ले कि ये मेरे लिए कल्याणकारी है तो वो बहुत सुखी। तो डिसीप्लीन को, मर्यादाओं को स्वीकार कर लेना वो हमारे लिए कल्याणकारी है। जो मार्ग हमने चुना है उनपर उनका होना परम हितकारी है, ये मानकर अगर हम उसे एक्सेप्ट करेंगे तो वास्तव में हमें ये भारी नहीं लगेगी; और तब बहुत इज़ी हो जायेगा।

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