जिस समय जो काम कर रहे हो, उस समय वहीं फुल अटेन्शन हो। यानी जिस समय जो काम कर रहे हैं, उसी में ही बुद्धि हो। योग और कर्म दोनों का बैलेन्स रखो। कई कहते हैं कर्म करते कर्म में अटेन्शन चला जाता है तो कर्म थोड़ा नीचे-ऊपर हो जाता है। अगर काम करते हुए हम परमात्मा को याद करेंगे तो परमात्मा द्वारा हमको शक्ति मिलेगी। उस परमात्म शक्ति के आधार से आत्मा को याद तो आयेगी ही। तो आप सोचो हमारा काम अच्छा होगा या बुरा? कई कहते कामकाज करते दिमाग चलाते तो याद भूल जाती है लेकिन परमात्म याद से और अपने को राजा समझके कर्मेन्द्रियों से काम कराने से काम अच्छा हो जायेगा, कोई नुकसान नहीं होगा। बाबा की शक्ति मिलेगी।
तो अशरीरी बनने के लिए कोई भी चीज़, शरीर की या बाहर की कोई भी हद की विनाशी चीज़ हमारे मन को अपने तरफ खींचे नहीं। समझो मक्खी आई या कोई भी बात आई लेकिन हमारे मन-बुद्धि को वह बात खींचे नहीं। अच्छा मक्खी आयी मैंने हटाया, हमारा मन क्यों हटे? मन हमारा मनमनाभव। मन अगर बातों की आकर्षण में आ जाता है तो कहते हैं यह कर्मयोग नहीं है, अशरीरी बनो। अशरीरी माना शरीर भूल जाए, इसका मतलब यह नहीं है। शरीर भान अपनी तरफ खींचे नहीं। बाबा से मन निकल करके व्यर्थ संकल्पों में अटक जाये, यह रॉन्ग है। काम करते हुए मैं बाबा की हूँ, बाबा मेरा है, इस खुशी के अनुभव में रहें। कौन है और कौन मिला है? क्या दिया है? उससे हम क्या बनें हैं? तो अशरीरी अवस्था का अनुभव करने के लिए पहले यह सब चेकिंग करो। किसी भी प्रकार से व्यर्थ की आदत चंचल बना देती है इसलिए व्यर्थ को जब तक समर्थ संकल्प नहीं दिया है यानी जगह नहीं भरा है, तो मन कभी भी अचल नहीं होगा। बाबा कहते हैं मुरली है शुभ संकल्पों का खज़ाना। अगर व्यर्थ चलता है तो कम से कम पूरी मुरली नहीं तो धारणा का सार, वरदान और स्लोगन ही पढ़ लो यानी बाबा की मीठी-मीठी बातों को याद करो, ऐसी-ऐसी विधियां अपनाओ तभी अशरीरी बन सकेंगे।
लास्ट घड़ी हमारे को पास विद ऑनर का सर्टीफिकेट मिलना है। अभी तो कभी कैसे, कभी कैसे चल रहे हैं, यह तो बाबा जाने और हम जानें। लेकिन लास्ट घड़ी जो आनी है, उसमें अचानक चारों तरफ कुछ न कुछ होता रहेगा। अन्त के समय हर चीज़ अति में जानी है। तो ऐसे टाइम पर आपको एक सेकण्ड अशरीरी बनने में लगे। और अगर हमारा चारों तरफ में से किसी तरफ अटेंशन चला गया तो पास विद ऑनर तो गया, फिर वो थोड़ी सेकण्ड आयेगा इसीलिए राजा(मालिक) बन करके शरीर को, मन को चलाओ। तो हमारी एम यही हो कि पास विद ऑनर होना है और माला का मणका बनना ही है। तो इतना निश्चयबुद्धि और नशे में रहेंगे, अभ्यास करते रहेंगे तो अवश्य होंगे। जो कल्प बीत गया, उसमें मैं ही विजयी था, मैं ही हूँ और मैं ही हर कल्प में बनूँगा। ऐसा नशा होना चाहिए, और कौन बनेगा, हम ही तो बनेंगे। तो इस नशे और निश्चय से पुरुषार्थ हो तो हमारा संकल्प बाबा पूरा नहीं करे, यह हो ही नहीं सकता। अहंकार से नहीं, रूहानी नशे से अगर हम इस निश्चय में चलते हैं तो भगवान को हमें आगे रखना ही पड़ेगा। यह अभिमान नहीं लेकिन प्रैक्टिकल रूहानी निश्चय का रूहानी नशा होना चाहिए।
दिल की मुस्कुराहट चेहरे पर आपेही आती है और वह हर्षितमुख चेहरा हमेशा सेवा का साधन बनता है। प्राप्ति वाली शक्ल कैसी होगी, खुशी हमारे जीवन की मिलकियत है इसलिए इसे कभी गँवाना नहीं चाहिए। कोई तो बीती हुई बातों को रिपीट करने से परेशान होते रहते हैं, खुशी गुम हो जाती है और खुशी गंवाना माना हेल्थ, वेल्थ, हैप्पी तीनों गँवाना। खुशी जैसी खुराक नहीं है। खुश रहो और खुशी बाँटो, जितनी बाँटेंगे उतनी बढ़ेगी।
अशरीरी बनने के लिए मन को बिजी रखने का ख्याल ज़रूर रखना क्योंकि मन ही धोखा देता है और दूसरा भी शक्ल ऊपर-नीचे नहीं हो। कुछ भी हो जाये चिंता करने से कुछ मिलने वाला नहीं है। सोचने से कुछ बन जायेंगे क्या! जो बीत चुका उससे क्या बनेगा? चिंता मिलेगी बस और कुछ नहीं मिलेगा। तो यहाँ मधुबन से दृढ़ संकल्प करके जाओ, मुझे अपना चेहरा रूहे गुलाब जैसा रखना है।