परमात्म ऊर्जा

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स्वमान और फरमान – दोनों में रहने और चलने के अपने को हिम्मतवान समझते हो? स्वमान में भी सदा स्थित रहें और साथ-साथ फरमान पर भी चलते चलें, इन दोनों बातों में अपने को ठीक समझते हो? अगर स्वमान में स्थित नहीं रहते हैं तो फरमान पर चलने में भी कोई न कोई कमी पड़ जाती है। इसलिए दोनों बातों में अपने आप को यथार्थ रूप से स्थित करते हुए सदा ऐसी स्थिति बनाना। वर्तमान पुरुषोत्तम संगमयुग का आप ब्राह्मणों का जो ऊंच ते ऊंच स्वमान है उसमें स्थित रहना है। इस एक ही श्रेष्ठ स्वमान में स्थित होने से भिन्न-भिन्न प्रकार के देह अभिमान स्वत: और सहज ही समाप्त हो जाते हैं। कहाँ-कहाँ सर्विस करते-करते व अपने पुरूषार्थ में चलते-चलते बहुत छोटी-सी एक शब्द की गलती कर देते हैं, जिससे ही फिर सारी गलतियां हो जाती हैं। सर्व गलतियों का बीज एक शब्द की कमज़ोरी है, वह कौन-सा शब्द? स्वमान से क्रस्वञ्ज शब्द निकाल देते हैं। स्वमान को भूल जाते हैं, मान में आने से फरमान भूल जाते हैं। फरमान है- इसी एक शब्द की गलती होने से अनेक गलतियां हो जाती हैं। फिर मान में आकर बोलना, चलना, करना सभी बदल जाता है। सिर्फ एक शब्द कट होने से जो वास्तविक स्टेज है उससे कट हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आने के कारण जो पुरुषार्थ व सर्विस करते हैं उसकी रिज़ल्ट यह निकलती है जो मेहनत ज्य़ादा और प्रत्यक्षफल कम निकलता है। सफलतामूर्त जो बनना चाहिए वह नहीं बन पाते और सफलता मूर्त न बनने के कारण व सफलता प्राप्त न होने के कारण फिर उसकी रिज़ल्ट क्या होती है? मेहनत बहुत करते-करते चलते-चलते थक जाते हैं। उल्लास कम होते-होते आलस्य आ जाता है और जहाँ आलस्य आया वहाँ उनके अन्य साथी भी सहज ही आ जाते हैं।
आलस्य अपने सर्व साथियों सहित आता है, अकेला नहीं आता। जैसे बाप भी अकेला नहीं आता अपने बच्चों सहित प्रत्यक्ष होता है। वैसे यह जो विकार है वह भी अकेले नहीं आते, साथियों के साथ आते हैं। इसलिए फिर विकारों की प्रवेशता होने से कई फरमान उल्लंघन करने कारण स्थिति क्या हो जाती है? कोई न कोई बात का अरमान रह जाता है। न स्वयं सन्तुष्ट रहते, न दूसरों को सन्तुष्ट कर पाते, सिर्फ एक शब्द कट करने के कारण। इसलिए कभी भी अपनी उन्नति का जो प्रयत्न करते हो व सर्विस का कोई भी प्लैन बनाकर प्रैक्टिकल में लाते हो तो प्लैन बनाने और प्रैक्टिकल में लाने समय भी पहले अपने स्वमान की स्थिति में स्थित हो फिर कोई भी प्लैन बनाओ और प्रैक्टिकल में लाओ। स्थिति को छोडक़र प्लैन नहीं बनाओ। अगर स्थिति को छोडक़र प्लैन्स बनाते हो तो क्या हो जाता है? उसमें कोई शक्ति नहीं रहती। बिगर शक्ति उस प्लैन का प्रैक्टिकल में क्या प्रभाव रहेगा? सर्विस तो खूब करते हो, विस्तार बहुत कर लेते हो लेकिन बीज रूप अवस्था को छोड़ देते हो। विस्तार में जाने से सार निकाल देते हो। इसलिए अब सार को नहीं निकालो।

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