सर्वश्रेष्ठ कुल के कुलदीपक श्रीकृष्ण

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जब भी इस दुनिया में कोई बच्चा जन्म लेता है या जन्म लेने वाला होता है तो उसकी पूर्व तैयारियां आप सबसे छुपी नहीं हैं। कितना ध्यान रखा जाता है उसकी एक-एक चीज़ का, एक-एक माहौल का। आस-पास के जो लोग हैं वो कैसे हैं, बच्चे के ऊपर किसी ऐसी चीज़ का प्रभाव न पड़े। क्योंकि जब माँ के गर्भ में बच्चा होता है तो उस वक्त चारों तरफ का वातावरण उसके लिए ऐसा बनाया जाता है जिससे वो एक अच्छे वातावरण में जन्म ले और उसी हिसाब से उसके संस्कार हों। आज ये कलियुग में भी हो रहा है और होता आ रहा है। तो इतने समय से सब लोग अपने कुलदीपकों का इंतज़ार करते हैं अपने कुल को रोशन करने के लिए, लेकिन जो उसकी तैयारी है वो आज शायद उस हिसाब से नहीं होती बस ऐसे ही हमारे घर में कोई बच्चा आ गया।
आप सोचिए कि द्वापर काल में भी राजाओं-महाराजाओं के यहाँ भी मुहूर्त के हिसाब से जन्म होता था, और कहाँ वो सतयुगी सृष्टि, वो प्रथम राजकुमार जिसको हम श्रीकृष्ण कहते हैं। उनके जन्म की तैयारी कैसी होगी! जो सम्पूर्ण निर्विकारी है, सम्पूर्ण पवित्र है जिसके जीवन में सिर्फ और सिर्फ पवित्रता सुख और शांति का माहौल रहा है, उसके आस-पास का वातावरण कैसा होगा? एक कल्पना से परे की स्थिति है, और उसको सोचना भी हमें चाहिए। तो जो ऐसा कुलदीपक, ऐसा श्रेष्ठ कुलदीपक जो आज भी पूजा जाता हो उसने कितना सुन्दर पुरूषार्थ किया होगा! जिसको पूरी दुनिया आज भी नतमस्तक होकर शिरोधार्य करती है, मन्दिरों में जाती है तो भी वो उनको देखती रह जाती हैं। उनकी पूजा- पाठ के लिए कितनी छोटी मूर्ति, बड़ी मूर्ति बनाई जाती है। क्या पुरूषार्थ रहा होगा उस श्रेष्ठ आत्मा का! कहने का सीधा-सा अर्थ ये है कि हम जिस जन्माष्टमी की बात करते हैं, ये जन्म दिवस कृष्ण का है। वो जन्म दिवस हमारे जन्म की एक झांकी है कि अगर मुझे सच में श्रीकृष्ण के जैसे कुल में जन्म लेना है तो वैसा आकर्षण वाला बनना है। जीवन से सबको प्रेरणा देने वाला बनना है। तो मुझे भी अपने एक-एक पल, एक-एक क्षण को सेवा में गुज़ारना होगा।
दुनिया में लोग इसको इस तरह से बोलते हैं कि जिसका इस घर में जन्म होता है निश्चित रूप से उसने बहुत अच्छे कर्म किए होंगे, जो इतने अच्छे घर में जन्म हुआ। और सिर्फ जन्म ही नहीं उनकी काया, उनका स्वस्थ शरीर, कंचन काया जो देह की बात की जाती है सतयुग में, शरीर भी इतना स्वस्थ है, सुन्दर है, सुडोल है, आकर्षक है साथ-साथ मन तो है ही। मन और तन दोनों सुन्दर कैसे बनें? क्योंकि अगर हम इसको वैज्ञानिक तरीके से भी लें तो कहा जाता है कभी जो-जो एक्ट हमने की है, जो-जो क्रियाएं हमने की हैं, जो-जो कर्म हमने किए हैं उन सारे कर्मों का लेखा-जोखा हमारे यहाँ पर रिकॉर्ड होता है। और वो कर्मों का लेखा-जोखा हम सबको आगे वाले जन्म में, हमारे जन्म को वैसा बनाता है। तो ये जो जन्माष्टमी है ये हमारे लिए एक उपदेश है, एक उदाहरण है कि कृष्ण का जन्म तो सतयुग में होता है और होगा ही। उसमें दोराहा नहीं है। लेकिन उस कुल में आने के लिए हम सबको कैसा होना चाहिए? या कैसा होना होगा ये सोचने का विषय है, या सिर्फ कृष्ण को देखकर खुश हो जाना, थोड़ा-सा उनके लिए गा लेना, थोड़ा उनके लिए कीर्तन कर लेना ये तो सभी कर रहे हैं। लेकिन वो जो राजकुमार की स्थिति है, जिस राजकुमार को देखने के लिए पूरी दुनिया टूटती है उन गुणों और विशेषताओं के आधार से कुल को श्रेष्ठ बताया जाता है।
व्यक्ति महान कब है, जब वो व्यवहारिक है। सैद्धान्तिक रूप से जो शास्त्रगत बातें लिखी गई हैं उसको पढ़ के कोई भी ऊंची-ऊंची बात कर सकता है, लेकिन जैसे ही कोई व्यवहारिक चीज़ों में धारणा की बात आती है तो कहते हैं कि हमसे कैसे हो सकता है क्योंकि ये तो हम बात ही भगवान की कर रहे हैं, देवी-देवताओं की कर रहे हैं हम वैसे नहीं हो सकते। लेकिन आज आपको बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि ऐसी सतयुगी सृष्टि के निर्माण में बहुत सारे ब्रह्मावत्स, ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी आज उसी श्रीकृष्ण के खानदान में जाने के लिए, उस कुल में जाने के लिए, श्रेष्ठता के साथ जीवन जीने के लिए पुरूषार्थ में लगे हुए हैं कि हम भी उस राज्य में आयेंगे। उसके लिए सिर्फ अपने व्यवहार पर कर्म कर रहे हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण की झांकी लगाई जाती है ताकि हम अपने मन में झांक करके कृष्ण के अन्दर जो गुण और विशेषतायें हैं उनकी तुलना करके अपने आप को देख सकें, चेक कर सकें।
तो क्यों न ऐसी सृष्टि का निर्माण करने में हम सभी एक श्रृंखलाबद्ध तरीके से कर्म करें। तो वो चमकता हुआ तेजोमय चेहरा, वो दुनिया, वो दुनिया के श्रेष्ठ साधन, वो आज भी दुनिया जिसको पूजे, वो स्थिति,ऐसा कर्म करने वाला श्रीकृष्ण का गायन उनके लिए ही नहीं आपके लिए भी निश्चित रूप से होगा तो वो जन्माष्टमी के साथ एक न्याय हो जायेगा। आप ये न सोचें कि हर बार अर्थपूर्ण भाव से, भावपूर्ण स्थिति के आधार से एक-एक त्योहारों का वर्णन किया जाता है, नहीं। ये त्योहारों का वर्णन हमारी मानसिक स्थिति ही है। उसका चारित्रिक वर्णन और स्थूल वर्णन तो पूरी दुनिया करती है। तो हम, जो स्थिति है उसी का वर्णन आपके सामने रखते हैं ताकि उन चरित्रों का सही और सटीक चित्रण आपके सामने हो। तो चलें इस पथ पर…!

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