आबू रोड: ब्रह्माकुमारीज़ की पूर्व अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका ईशु दादी की तृतीय पुण्य तिथि शुभ भावना दिवस के रूप में मनाई

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 ईशु दादी का जीवन समर्पण भाव और ईमानदारी की मिसाल था
– ब्रह्माकुमारीज़ की पूर्व अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका ईशु दादी की तृतीय पुण्य तिथि शुभ भावना दिवस के रूप में मनाई
– दादी और वरिष्ठ भाई-बहनों ने अर्पित किए श्रद्धासुमन

आबू रोड,राजस्थान। ब्रह्माकुमारीज़ की पूर्व अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका ईशु दादी की तृतीय पुण्य तिथि शांतिवन मुख्यालय सहित देशभर में शुभ भावना दिवस के रूप में मनाई गई। मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी सहित वरिष्ठ बहनों और भाइयों ने पुष्पांजली अर्पित की। इसके बाद कॉन्फ्रेंस हॉल में कार्यक्रम आयोजित किया गया। बता दें कि 6 मई 2021 को ईशु दादी का देवलोकगमन हो गया था। आपकी लगन और ईमानदारी को देखते हुए प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने शुरू से ही आपको हिसाब-किताब रखने की सेवा में लगाया। आपने दादी प्रकाशमणि के साथ कदम से कदम मिलाकर वर्षों तक ब्रह्माकुमारीज़ के आर्थिक लेन-देन की जिम्मेदारी संभाली। 
कार्यक्रम में संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी स्वदेश दीदी ने कहा कि ईशु दादी का जीवन समर्पण भाव और ईमानदारी की मिसाल था। सारे जीवन में आपके इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आर्थिक कारोबार संभाला और एक-एक रुपये का हिसाब-किताब आपके पास रहता था।
संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी शशि दीदी ने कहा कि ईशु दादी के हाथों में इतना बड़ा कारोबार होने के बाद भी कभी भी एक रुपये की भूल-चूक नहीं हुई। आपका समर्पण भाव इतना था कि सारे पैसे का हिसाब होने के बाद भी अपने निजी खर्च के लिए रुपये दादी से लेती थीं।
मीडिया निदेशक बीके करुणा भाई ने कहा कि दादी जी से हम सभी को बहुत सीखने के मिला। कम बजट में कैसे किसी कार्य को सफल और पूर्ण किया जा सकता है इसका जीता-जागता उदाहरण दादी थीं। आपका जीवन कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल था। आपने अपने जीवन के आखिरी सांस तक अपनी सेवाएं प्रदान कीं।
वैज्ञानिक एवं अभियंता प्रभाग के अध्यक्ष बीके मोहन सिंघल ने कहा कि दादी एकनॉमी, एकॉनामी की उदाहरण थीं। वह सभी की जरूरतों का पूरा ध्यान रखतीं थीं। जीवन पर्यंत योग-साधना और सेवा में जुटी रहीं। ग्लोबल हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. प्रताप मिड्‌ढा ने कहा कि दादी का संयमित जीवन हम सभी को आज भी प्रेरणा देता है।
ईशु दादी की निज सचिव रहीं बीके कविता दीदी ने कहा कि दादी के साथ वर्षों तक रहने का सौभाग्य मिला। दादी के कभी भी अपने निजी शौक के लिए पैसे खर्च नहीं किए। आप नियम-मर्यादाओं में अडिग रहती थीं। आपके जीवन से बहुत कुछ सीखा है। इस दौरान बीके रुक्मिणी दीदी, डॉ. सविता दीदी, बीके हंसा दीदी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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