अवगुणों को देखना भी वास्तव में अपवित्र भोजन करना है

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कई बार कहने में आता है- मेरा मन बहुत डिस्टर्ब है, मन डिस्टर्ब तब होता जब दूसरे की कमज़ोरी व निचाई को देखते। वह न देख तुम उनकी अच्छाई देखो, रिस्पेक्ट दो, प्यार दो। सद्भावना दो तो कभी भी डिस्टर्ब नहीं होंगे।

बाबा कहते कभी किसी को बुरे भाव से नहीं देखो। बुराई सबमें हैं तुम बुराई नहीं देखो, अच्छाई देखो। न बुराई को बुद्धि में लाओ। परन्तु यह ऐसी माया है जो किसी की अच्छाई बुद्धि में जल्दी नहीं आयेगी। लेकिन बुराई जल्दी बुद्धि में आयेगी। बुद्धि में वह आने से चिंतन चलेगा। चिंतन चलने से दृष्टि जायेगी फिर वैसा व्यवहार होगा फिर अन्दर का प्यार टूट जायेगा। लेकिन यदि सबके लिए सद्भावना है तो उससे जो भी शुभ है वह लेना है, अशुभ नहीं। तो यह नॉलेज अथवा योग हमको श्रेष्ठता, अच्छाई व ऊंचाई लेना सिखाता है। श्रेष्ठता लेना ही गॉडली स्टूडेंट बनना है। सिर्फ कोर्स पूरा किया माना मैं स्टूडेंट हूँ। छोटे व बड़े जिसमें जो विशेषता है वह लेना – इसका ही नाम है गॉडली स्टूडेंट।
बाबा गुणों का भंडार है। परन्तु देवतायें भी सर्वगुण सम्पन्न हैं। हमें बाप समान बनना है तो हमें इतने गुण धारण करने हैं, सभ्यता से चलना – यह भी बहुत बड़ा गुण है। सभ्यता वाले मधुर बोलेंगे, धीरे बोलेंगे। काम करेंगे तो बहुत प्यार से, देखेंगे तो भी सम्मान से। सभ्यता लव सिखाती, रिस्पेक्ट देना सिखाती, मधुरता सिखाती है। हर बात में सभ्यता की दरकार है। यह श्रेष्ठ मैनर्स हैं। सभ्यता वाले के पास इगो नहीं आता है।
इगो तब आता है जब दूसरे को बुरा देखते, छोटा देखते हैं। परन्तु जब हम सब स्टूडेंट हैं तो न कोई छोटा है, न मैं बड़ी हूँ, हम सब एक परिवार के हैं। परिवार के नाते प्यार है, स्टूडेंट के नाते हम सब पढ़ाई पढ़ते हैं, दूसरा बाबा ने हम सबको सेवाधारी बनाया है, हम सब सर्वेन्ट हैं। हमारी मन्सा में विश्व कल्याण की भावना है। हमें तत्वों को भी पावन बनाना है। तो खुद को भी पावन बनाना है। जब हमारी दृष्टि, वृत्ति ऐसी पावन बन जाती तो अवगुण की दृष्टि-वृत्ति समाप्त हो जाती है। अवगुणों को देखना भी वास्तव में अपवित्र भोजन खाना है। तो हमें मन्सा से भी सेवा करनी है, वाचा से भी सबकी सेवा करनी है तो कर्मणा से भी सेवा करनी है। तन से, मन से, धन से, भी सेवा करनी है। गुणों को दान करने की भी सेवा करनी है। अपने-अपने अनुभवों से भी दूसरों की उन्नति के लिए सेवा करनी है। क्योंकि भगवानुवाच है- एक-दूसरे को सावधान कर उन्नति को प्राप्त करो। हमें उन्नति की राह में जाना है। जितनी हम अपनी उन्नति करें, जितनी आध्यात्मिक शक्ति की ऊंचाई पर जायें उतना थोड़ा है। जितना हो सके अपने को निरहंकारी बनाओ। ये जीवन का एक बड़े से बड़ा गुण है। जितना निरहंकारी बनेंगे उतना सब बातों में सफल बनेंगे। अगर सब बातों में सफलता लानी है तो इगो को छोडऩा होगा। जहाँ तक जीना है वहाँ तक सीखना ही सीखना है। बाबा की मुरली से हम रोज़ सीखते हैं।
भले कोई किसी भी भाव से हमें देखे लेकिन ज्ञान कहता है तुम सबका सत्कार करो। तिरस्कार क्यों करते हो। तुम जितना दूसरे को रिस्पेक्ट देंगे उतनी रिस्पेक्ट पायेंगे परन्तु यह एक सूक्ष्म भावना भी जो पैदा होती कि यह मेरा रिस्पेक्ट नहीं करता तो यह फीलिंग आना भी अपना नुकसान करना है। इसमें न तो ज्ञान होगा न योग। योग सिखाता है तुम सबका सम्मान करो, रिस्पेक्ट दो। कईयों को रहता कि यह मुझे रिस्पेक्ट दे तो मैं रिस्पेक्ट दूं। सदैव पहले जितना दे सको उतना दो। रिस्पेक्ट देने से ही लव मिलेगा। सिर्फ लव देने से लव नहीं मिलता, रिस्पेक्ट देने से लव मिलता है। लव और रिस्पेक्ट जिसके पास यह दोनों विशेष गुण हैं, यह दो पंख हैं वह सदा उड़ती कला का अनुभव करते हैं। कई बार कहने में आता है- मेरा मन बहुत डिस्टर्ब है, मन डिस्टर्ब तब होता जब दूसरे की कमज़ोरी व निचाई को देखते। वह न देख तुम उनकी अच्छाई देखो, रिस्पेक्ट दो, प्यार दो। सद्भावना दो तो कभी भी डिस्टर्ब नहीं होंगे। बाबा ने हम सबको देना सिखाया, लेना नहीं सिखलाया है। लेना बाप से है, शक्ति बाप से लो, लेकिन दूसरों को दो। दूसरे से लेना हो तो उनमें जो अच्छाई हो वह लो। फिर दूसरे से जो कर्मों का खाता बनता है, वह नहीं बनेगा। नहीं तो उल्टा कर्मों का खाता बनेगा।

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