मम्मा साक्षात सरस्वती की मूर्ति थीं…

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आप सब होवनहार देवी-देवता हो। देवी देवता तो सतयुग में बनेंगे लेकिन उससे पहले यह जो हमारा सर्वोत्तम ब्राह्मण जीवन है और फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ है, इसमें हम होवनहार देवी-देवता हैं। तो हम भी आप सभी को इसी दृष्टि से देखते हैं कि यह होवनहार देवी-देवता हैं और ईश्वरीय संतान हैं। कहते हैं समझदार के लिए इशारा काफी है। जो होवनहार देवी-देवता हैं, स्वाभाविक बात है कि उनके लिए इशारा काफी है। तो आप सभी भी उसी मर्यादा में चलने वाले बहन-भाई हैं, होवनहार देवी-देवता।
तो होवनहार देवी-देवताओं की दुनिया में जब मैं पहली बार जाके पहुंचा उसमें बाबा के दर्शन हुए। मम्मा के भी दर्शन हुए। गदगद हो गया। मम्मा की दृष्टि मिली। मम्मा की वह मधुर मुस्कान भरी सूरत देखी। वह पवित्रता की, योग की और धारणा की मूर्ति थीं। देखता ही रह गया कि सचमुच यह सरस्वती हैं। और जैसे-जैसे आगे बढ़ा तो जीवन में यह प्रत्यक्ष अनुभव किया। कई किस्से ऐसे हुए, जिसमें लोगों ने बहुत विरोध किया। जो सिंध में किया था वह तो अलग बात है, लेकिन भारत वर्ष में आने के बाद भी, बहुत से लोगों ने इका होके जगह-जगह हंगामा किया। अमृतसर में बाबा ने मुझे जाने को कहा, मम्मा भी वहाँ आईं। वहाँ के लोग काफी खिलाफ हो गये थे। तो मम्मा वहाँ आई हुई थीं, वहाँ के लोग सेन्टर का दरवाजा तोड़ रहे थे। मम्मा को कोई नुकसान न पहुँचायें इस ख्याल से बहनों ने दरवाजा बन्द कर दिया। उसको धक्का देके, खोलने की, तोडऩे की कोशिश कर रहे थे। आखिर वह दरवाजा खोल दिया गया, उनमें से उनको कहा गया कि आप में से जिस किसी को बात करनी है तो दो-तीन आकर बात कर लो। तो दो-तीन उन्हों में से आए और भागते-भागते ऊपर जहाँ मम्मा बैठी थी, उस कमरे में चले गये, मम्मा गद्दी पर योग मेें बैठी थी। और वे भी उनके सामने जाकर बैठ गये। आये तो थे झगड़ा करने के लिए, गुस्सा करने, कि आप लोग पवित्र बनाने की बात कहते हैं। आप लोग हमारे हिन्दू धर्म को समाप्त कर रहे हैं। लेकिन वो चुप करके मम्मा के सामने भीगी बिल्ली की तरह से बैठ गये, कुछ बोले नहीं, चूँ-चाँ नहीं की। मम्मा को देखते रह गये। कई दफा मैंने ऐसा देखा, देहली में एक व्यक्ति का अपनी पत्नी से झगड़ा होता था। वह बहुत दफा कहता था मुझे मम्मा से मिलना है, अपनी पत्नी की शिकायत करने के लिए। उसको मिलने नहीं दिया जाता था। मम्मा किस सेन्टर पर ठहरती है, बताया नहीं जाता था। एक दफा वह जैसे-तैसे पता करके जबरदस्ती वहाँ गया। गुस्से में इधर-उधर की कई चीज़ें तोड़ दी और अंदर जाके बोला- कहाँ है मम्मा! कहाँ है मम्मा! ढूंढते-ढूंढते ऊपर जा पहुँचा जहाँ मम्मा एक कुर्सी पर बैठी हुई थी, वहाँ वह जाके खड़ा हो गया और हाथ जोडऩे लगा, मम्मा ने उसको कहा- बैठो। बच्चे, बैठो, मीठे बच्चे, बैठो। तो जब यह शब्द मम्मा ने उसको कहे तो वह बैठ गया। मम्मा को देखता रहा, कुछ नहीं बोला, कोई शिकायत उसने नहीं की बल्कि वह हम लोगों को शिकायत करने लगा कि आप लोग बेवकूफ हो। यह सरस्वती देवी है। बोलता है कि आप लोग मम्मा से मिलने नहीं देते। अगर आप लोग मम्मा से मिलने दो, तो किसी की गलतफहमी रह ही नहीं जाये। अरे, मम्मा तो साक्षात सरस्वती है, उससे मिलने तो दो लोगों को। उस दिन से वह मम्मा का भक्त बन गया। और बिल्कुल चेंज हो गया। जो व्यक्ति विकारों से भी हाहाकार करता था, झगड़ा करता था, उसके जीवन में इतना परिवर्तन आ गया। थोड़ा-सा समय मम्मा के सामने जाकर बैठा ही था। इतना परिवर्तन हमने सामने देखा। तो कितने प्रमाण आपको मैं दूं, जो प्रैक्टिकल लाइफ में मैंने देखे। यह तो एक जीवन गाथा ही अलग है कि मम्मा के सामने किस प्रकार की परिस्थितियां आई। लेकिन मम्मा अपनी धारणा के कारण अभय, निर्भय, धैर्यवान रही। इसलिए तो देवी की शेर पर सवारी दिखाते हैं। कोई भाव तो उसका जानते नहीं हैं लेकिन असल में बात तो यही है कि मम्मा को कोर्ट में भी जाना पड़ा, जहाँ पर भी लोग इके हो गये, लोगों ने हंगामा किया उस समय मम्मा की कितनी आयु थी, अनुभव क्या था, कौन से और सहारे थे, किस आधार पर सामना करने के लिए उनमें इतनी हिम्मत थी! एक निश्चय के बल से, शिवबाबा के बल से।
शिवबाबा तो अपना कार्य करा ही देगा, उसके कार्य में कोई रूकावट डाल नहीं सकता। यह निश्चय उनको पूर्ण रूप से था, उसने सबका सामना किया।


योग स्वरूपा मम्मा को देखते ही विरोधी शांत हो गये…

मम्मा उनको मुस्कुराते हुए प्यार से अपने योग के वायब्रेशन से देख रही थी। वे सब बैठे रहे और पूर्ण रूप से शांत हो गये। लग रहा था कि उनका मन वहाँ से उठने का नहीं है। घर वापस जाने का नहीं है लेकिन बाहर उनका काफी इंतज़ार हो रहा था क्योंकि काफी बड़ा मज़मा था। एक हज़ार के करीब लोग होंगे। तो सब इस इंतज़ार में थे कि यह क्या बात करके आते हैं। इसलिए उन्हें जाना पड़ा। तो बाहर गये, तो सब लोगों ने उनको घेर लिया। क्या बात है! क्या कहते हैं वहाँ। इनको कहो यहाँ से सेन्टर हटायें! यह क्या फैला रखा है इन्होंने। गुस्से में थे सब लोग। लेकिन आश्चर्य की बात, मैं साक्षी हो करके देख रहा था। मम्मा के व्यक्तित्व ने उन पर जादू किया, मम्मा का जो योग था, धारणा थी, पवित्रता थी, जो मम्मा साक्षात सरस्वती की मूर्ति थीं उसको देखकर तो वे स्वयं ही शान्त हो गये थे। वह अपने साथियों से बोले कि अरे भाई, तुम खुद जाके मम्मा को देख लो। यह ब्रह्माकुमारियां ठीक नहीं हैं, मम्मा इनकी बिल्कुल ठीक हैं। एकदम पवित्र हैं, साक्षात देवी हैं। तो लोगों ने कहा कि अरे भाई, इन पर भी जादू हो गया। सच कहते हैं कि ओम मण्डली में जादू है। वह जादू कौन-सा था? योग का था, पवित्रता का था, धारणा का था। मम्मा ने उसकी साधना की थी। उनके जीवन में उसका अभ्यास था। उसका प्रभाव उन पर पड़ा था तो किसी की सेवा जो मम्मा करती थीं, हम क्या कर सकते थे क्योंकि उनकी प्रैक्टिकल लाइफ का जो प्रभाव उन पर पड़ता था, उसकी तुलना कोई हो नहीं सकती।

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