राजयोग के ‘रहस्य’ को जानने से जि़ंदगी को मिलेगी नई दिशा

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आज इक्कीसवीं सदी में हर कोई समस्यायें, परेशानियां, मानसिक तनाव, और एक-दूसरे से नफरत तेजी से बढ़ रही हैं। इसी वजह से शांति के लिए लोगों का रूझान आध्यात्मिकता की तरफ बढ़ा है। लोगों को अब आध्यात्मिकता और योग का महत्व समझ आने लगा है। योग के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण पढ़े-लिखे लोगों व हर वर्ग के लोगों में भी स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ी है। जहाँ योग-प्राणायाम, जाप, हठ योग, यम एवं नियम, तन एवं मन को सुकून देते हैं और स्वास्थ्य बनाये रखते हैं। दूसरी ओर इन सबसे हटकर राजयोग एक ऐसा योग है जो आत्मा का परमात्मा से मिलन कराता है। इसके अभ्यास से आत्मा की कमी-कमज़ोरी समाप्त हो जाती है और उसमें स्व निहित ऊर्जा का प्रवाह बाहर आता है। दिव्य गुण और शक्तियों से भरपूर होकर सतोप्रधानता की ओर बढ़ती है। राजयोग हमें प्रभु प्रदत्त आत्मा में निहित सकारात्मकता को व्यवहार में उपयोग करने का बल प्रदान करता है। राजयोग अभ्यासी पहले से ज्य़ादा अपने जीवन को शांति, खुशी व सुकून भरा जीवन जीता है।

राजयोग क्या है?

राजयोग को योगों का राजा कहा जाता है। जिसमें सर्व योग समाये हुए हैं। यह योग हमारे मन से घृणा, नफरत व दूषित विचारों को दूर कर पवित्र बना देता है। इसके अभ्यास के माध्यम से हम अपने विचारों को एक सकारात्मक चिंतन की ओर ले जाते हैं और श्रेष्ठ दिशा देते हैं। जब हमारे विचार शुद्ध, पवित्र, दूसरों के लिए सुखदायी, शुभ भावना और शुभ कामना सम्पन्न होते हैं तो उसी अनुसार हमारी बुद्धि भी निर्णय लेती है। बुद्धि स्पष्ट और स्वच्छ होने के कारण उनके द्वारा लिए गए निर्णय से हमारी कर्मेन्द्रियां शरीर से कर्म करती हैं। राजयोगी का जैसे-जैसे सकारात्मक चिंतन का प्रवाह बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे विचारों में सकारात्मकता आती जाती है। उसके व्यावहारिक रवैये में भी सकारात्मक बदलाव आता है। दूसरे शब्दों में कहें तो राजयोग के माध्यम से हमें खुद की कमी-कमज़ोरियों को पहचानने और उन्हें दूर करने का मौका मिलता है। जब हम एकान्त में बैठकर चिंतन करते हैं तो जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं का समाधान मिलने लगता है। परिस्थितियों को सही तरीके से निर्णय कर उसे हैंडल करने में समर्थ होते हैं। सकारात्मक चिंतन व श्रेष्ठ होने से मन की कार्य कुशलता बढ़ती जाती है और कर्मों में प्रवीणता आने लगती है। ऐसे अभ्यास सदा व निरंतर होने के कारण हमें जीवन जीने की श्रेष्ठ कला मिल जाती है। जब हम कर्मों पर अटेंशन रखते हैं तो हमारे कर्म श्रेष्ठ बन जाते हैं और तनाव, चिंता, दु:ख, हीन भावना, पश्चाताप, और आत्म ग्लानि कोसों दूर चली जाती है। राजयोग का अभ्यास किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। इसके लिए ना उम्र का बंधन है, और न ही जाति-पाति का। राजयोग तो आत्म दर्शन कराने वाला हथियार है जिससे हमारे भीतर मौजूद सकारात्मक शक्तियों का, दिव्य गुणों का विकास होता है। जिसके कारण हमारे जीवन का स्तर उच्च बनता है, परिणामस्वरूप एक तरह से राजाई पद दिलाने वाला सर्वश्रेष्ठ योग है। इसकी महिमा तो सर्व शास्त्र शिरोमणि श्रीमद्भगवद् गीता में गाई हुई है।….

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