योग का सामान्य अर्थ है जोड़, मिलन या संबंध। वास्तव में दो वस्तुओं के संबंध को योग और विच्छेद को वियोग कहते हैं। संसार की वस्तुएं योग और वियोग से समन्वित हैं। वास्तविक योग चिर स्थायी होता है जिसमें वियोग लेस मात्र भी नहीं होता।
योग को संबंध योग भी कहते हैं…
सम्बन्ध के आधार से परिवार बनता है, समाज बनता है और संसारिक धुरी चलती है। योग का वास्तविक व सही संबंध परमात्मा से है। परमात्मा से संबंध का है। आज हम ये संबंध भूल जाने के कारण अपने आपको दु:खी महसूस करते हैं, परेशान होते हैं। व्यवहारों में पारदर्शिता का अभाव होनेे के कारण संबंधों में खटास आती है। आज के सभी संबंध क्षण भंगूर हैं। संसार की सभी वस्तुएं विनाशी हैं। जोकि अंतत: मिट्टी में ही मिल जाती हैं। लेकिन आत्मा का परमात्मा के साथ संबंध अविनाशी, अटूट, न जलने वाला, न कटने वाला, न पानी में डूबने वाला है।
राजयोग से होता है अष्ट शक्तियों का विकास
व्यक्ति को जीवन में हर क्षण, हर पल, हर वक्त, शक्तियों की ज़रूरत पड़ती है। जैसे मॉल में खरीदी करने जाता है तो उसे क्या ज़रूरत है, बजट कितना है और खरीद करने वाली वस्तु की गुणवत्ता कैसी है उसके लिए उसको परखने और निर्णय करने की शक्ति की आवश्यकता होती है। इसी तरह जीवन यात्रा में कई जगह ऐसी समस्यायें व परिस्थितियां आती जिससे उसे सामना करने की शक्ति, समाने की शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। इस तरह कई बार समेटने की शक्ति, सहयोग करने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति, सहन करने की शक्ति की भी ज़रूरत पड़ती है। राजयोग का निरंतर अभ्यास करने से इन शक्तियों को अपने में महसूस करता है और सही समय पर उचित निर्णय करने में सामर्थ्य पाता है। …
राजयोग से व्यक्ति में 16 कला का निर्माण होता…
बातचीत की कला, व्यर्थ को श्रेष्ठ बनाने की कला,आगे बढऩे की कला, हास्य कला, व्यवहार की कला, शिक्षा देने की कला, स्वस्थ
रहने की कला, परिवर्तन की कला, पालना करने की कला, प्रशासन की कला ,लेखन की कला, सीखने की कला, तनाव मुक्त जीवन जीने की कला,दूसरों को अपना बनाने की कला,समाने की कला,नेतृत्व कला.