कर्म करते भी कर सकते राजयोग

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जैसे वाहन चालक गाड़ी चलाते हुए बातें भी करता है और रेस्पॉन्ड भी करता है। यह संभव है ना! उसी तरह हम भले कार्य करें अपितु कॉन्शियस में परमात्म याद बनी रहे, यह भी संभव है और सहज भी। बात सिर्फ प्रैक्टिस और अटेंशन रखने की है।

निरंतर योग के बारे में कई मनुष्य प्रश्न करते हैं कि यह कैसे संभव है कि मनुष्य एक ही समय में योग में भी रहे और सांसारिक कार्य-व्यवहार भी करता रहे! एक ही समय में दो कार्य हो सकते हैं! कर्म करते निरंतर योग में रहना कोई एक म्यान में दो तलवार की बातें नहीं, यह कार्य संभव ही नहीं बल्कि सहज भी है। परंतु उसके लिए सच्ची लगन और अभ्यास ये दो बातें आवश्यक हैं। इनमें से भी लगन का होना बहुत ज़रूरी है। लगन में होने से अभ्यास स्वत: और सहज ही हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी भी व्यापारी को देखिये, वो घर में हो या बाज़ार में, उसकी बुद्धि में हर समय व्यापार की ही बातचीत चलती रहती है। तो क्या व्यापारिक बातें सोचने से वो घर का कोई कार्य नहीं करता या बाज़ार में चलते रास्ता भूल जाता है! जबकि एक स्त्री भी अपने पति की याद में रहकर घर के सब कामकाज करती रहती है और एक माता सब कुछ करते हुए भी अपने बच्चे की याद नहीं भूलती। तो क्या उस अविनाशी साजन की याद को बुद्धि में स्थिर रखना क्या कोई कठिन कार्य है! ऐसे ही पूरी लगन हो तो वो सच्चा साजन, सद्गुरू, वो प्यारा परमपिता कभी भी नहीं भूलेगा। थोड़ा-सा भी सुख देने वाले को जब मानव याद रखता है तब भला सद्गति दाता, सच्चे रहबर की याद कैसे भूले! जब यदि मृत्यु याद रह सकती है तो परमात्मा को कैसे भूल सकते हैं! अत: क्रहथ कार वल, दिल यार वलञ्ज की कहावत पर ही अमल करना चाहिए। जबकि संसार की भी चिंताएं मनुष्य की बुद्धि में रात-दिन रहती हैं तो क्या प्रभु चिंतन संभव नहीं! सच्चे पर सदा साहेब राज़ी रहता है। हाँ, केवल बुद्धि की डोरी उस प्रभु के हाथ में देने से सब कार्य स्वत: ही सिद्ध हो जाते हैं। और अच्छी तरह समझने के लिए जैसे वाहन चालक गाड़ी भी चलाता और बातें भी करता है, और कोई उससे कुछ पूछता है तो वो उसे उत्तर भी देता है। इसी तरह सबकुछ करते परमात्मा को याद हम करते हैं, उसी को ही गीता में कहा है, बुद्धियोग मेरे साथ रख और कर्म करते चल।

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