मुख पृष्ठलेखछोटी-छोटी आदतें…लेकिन परिणाम…!

छोटी-छोटी आदतें…लेकिन परिणाम…!

हमारे व्यवहार या कर्म-व्यापार में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें हम क्रछोटी-छोटीञ्ज बातें कहकर चला देते हैं। हम इन्हें सुधारने पर ध्यान ही नहीं देते। क्योंकि उनके महत्व का हमें एहसास(रियलाइज़ेशन) ही नहीं होता। किसी भी आदत के कारणों या परिणामों की गंभीरता जाने बिना तो हम उसे ठीक करने का दृढ़ संकल्प करते ही नहीं और दृढ़ संकल्प न करने से वो आदत ठीक नहीं हो पाती। परंतु हमें सोचना चाहिए कि जिन्हें हम छोटी-सी आदत कहते हैं, वो वास्तव में छोटी नहीं होती, वो केवल ऊपर-ऊपर से या बाहर से ही छोटी दिखाई देती है। उसके नीचे या भीतर तो कई अन्य त्याज्य(छोडऩे योग्य) आदतें छिपी होती हैं। जैसे हमें बताया जाता है कि ग्लेशियर(बर्फ की चट्टान) जल से ऊपर थोड़ा ही दिखाई देता है परंतु नदी या ‘हिम-नदी’ में उसका पहाड़ जितना भाग तो अपने ही भार के कारण छिपा रहता है। वैसे ही क्रछोटी-सी आदतेंञ्ज भी व्यवहार में छोटी दिखाई देती हैं, इनके भीतर या नीचे तो पहाड़ जितना विशाल रूप छिपा रहता है।
कैंसर रोग के बारे में भी यही बताया जाता है कि ऊपर तो छोटा-सा दाना ही दिखाई देता है, परंतु उसके नीचे शरीर के अंदर उसकी जड़ें बहुत दूर-दूर तक फैली होती हैं। मनुष्य छोटा-सा दाना देखकर सचेत नहीं होता और परिणाम ये होता है कि एक दिन वो सारे मनुष्य को ही दबोच लेता है। वह क्रदानाञ्ज, क्रदानाञ्ज नहीं रहता बल्कि सारे शरीर को ही अपने लपेटे में लेकर उसे विषैला, निकम्मा और पीड़ाजनक बना देता है।
उदाहरण के तौर पर देर करने की आदत को ही ले लीजिए, यदि किसी व्यक्ति को पाँच-सौ व्यक्तियों के सामने भाषण करना हो अथवा सौ-दो सौ व्यक्तियों के सामने भाषण करना हो और वहां देर से पहुंचे तो उसके इस अलबेलेपन के परिणामस्वरूप सैकड़ों लोगों का समय व्यर्थ जायेगा। वे उसी के ही इंतज़ार में बैठे रहेंगे। हो सकता है कि उनका मन भी उद्विग्न(परेशान) हो उठेगा कि वक्ता क्यों नहीं आया और कि ये ठीक आदत नहीं है। अत: उनका समय व्यर्थ करने के अतिरिक्त उनकी मनोस्थिति को भी बिगाडऩे के निमित्त बनना एक बड़ी भूल है।
यदि ऐसी भूल करने वाला क्षमा नहीं मांगता तो एक से अधिक भूल करता है। यदि ऐसी भूल करने वाला क्षमा मांगता है तब एक तो वो लोगों के ध्यान को और अधिक अपने दुर्गुण और परेशानी की ओर आकर्षित करके उनका और समय नष्ट करता है। और यदि क्षमा मांगते हुए भी उसके मन में प्रायश्चित नहीं है या भूल का गहरा एहसास नहीं है तो और अधिक भूल करता है। और यदि सचमुच में प्रायश्चित भाव है तो अपनी स्थिति को भी असंतुष्टता की स्थिति पर उसे लाना पड़ता है। फिर उसके बाद भी यदि वह देर से पहुंचने की आदत बनाये रखता है, फिर तो आप सोच ही सकते हैं कि लोग भी उसके विषय में क्या सोचेंगे! और वह भी अपने बारे में क्या सोचेगा!
जब रेलगाड़ी देर से पहुंचती है तो कितने लोगों को हानि होती है। उन्हें सम्बंधित गाड़ी लेनी होती है, उनकी वह गाड़ी छूट जाती है और दूसरी गाड़ी में उनका स्लीपर बर्थ आरक्षित नहीं होता तो फिर सारा दिन स्टेशन पर बैठना या किसी होटल में धक्का खाना पड़ता है। खर्च भी होता, समय भी व्यर्थ होता, आगे जहाँ पहुंचना हो वहां नहीं पहुंच पाते। कार्य में विघ्न उत्पन्न होता है। हरेक यात्री की अपनी समस्या होती है। और गाड़ी देर से पहुंचने के कारण उन्हें न जाने क्या-क्या परेशानी होती है और उनके मन पर क्या बीतती है!
यदि अस्पताल में डॉक्टर किसी ऐसे रोगी की ओर ध्यान देने में देर करे जिसका खून बह रहा हो या जिसे हृदय पीड़ा हो रही हो या जो चोट के कारण अत्यंत दर्द की स्थिति में हो तो क्या परिणाम होगा? रोगी या घायल व्यक्ति के जीवन का प्रश्न होता है। ऑक्सीज़न का सिलेंडर दो मिनट देर से आने पर रोगी की मृत्यु हो सकती है। सोचिए, देर कितनी खतरनाक है! इसकी गंभीरता हमें कोरोना काल में भी देखने को मिली, याद है ना।
किसी ऐसे व्यक्ति से पूछकर देखिए, जिसके मकान को कभी आग लगी थी। और बार-बार फोन करने पर अग्निशामक दस्ता(फायर ब्रिगेड) केवल पाँच ही मिनट देर से पहुंचा था, परंतु इतने में ही अग्नि काबू से बाहर हो गई थी और लाखों रुपये का नुकसान, उसमें पड़ी नकदी, कीमती फर्नीचर, ज़रूरी कागज़ और अन्य सैकड़ों उपयोगी वस्तुएं जिन्हें जीवन भर की कमाई से ही नहीं बल्कि बुज़ुर्गों से प्राप्त जायदाद आदि तथा सहायता में जुटाया था, सब भष्मसात हो गया। उस व्यक्ति के मन में पाँच मिनट का कितना मूल्य होगा!
इसी तरह संसार में कितनी ही लड़ाइयां इसलिए हारी गई क्योंकि फौज के पहुंचने में थोड़ी देरी हो गई और शत्रु की फौज कुछ समय पहले ही पहुंच गई। अत: हमें समझना चाहिए कि कुछ मिनट की देर कोई छोटी-सी बात नहीं है। मनुष्य का जीवन ही छोटा-सा है। यदि उसमें कुछ-कुछ मिनट कुतर-कुतर कर निकलते जाएं तो बाकी रह ही कितना समय जायेगा! बातें छोटी-सी लेकिन परिणाम कितना घातक! आप ही बताइये, ऐसी आदतें बदलनी चाहिए ना!

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