शरीर में श्वांस है तो जीवन है ऐसे ही मन में श्रेष्ठ संकल्प है तो जीवन में सुख, शांति, समृद्धि है। संकल्प शक्ति का महत्व जिसने समझ लिया उसने अपना जीवन संवार लिया।
सृष्टि का नियम है जैसे खेत में खरपतवार अपने आप पैदा हो जाते हैं, फसल को बोना पड़ता है फिर समय प्रति समय उसकी संभाल करनी पड़ती है, पानी देना, कीटनाशक दवाइयां डालना इत्यादि। वैसे जीवन को बनाने के लिए, जीवन को ऊंच शिखर पर ले जाने के लिए अपने मन में सदा श्रेष्ठ विचारों का बीज बोना पड़ता है फिर उसमें परमात्म श्रीमत का जल डालना पड़ता है, स्वयं में समाई हुई कमी कमजोरियां को नष्ट करने के लिए, बड़ों के जीवन के अनुभव से प्रेरणा लेकर, अपनी कमजोरियां को नष्ट करने के लिए दृढ़ संकल्प की दवाई डालनी पड़ती है तब जाकर यह जीवन ऊंच शिखर पर पहुंच सकता है।
संकल्प का आधार है जीवन का लक्ष्य, किसी बच्चे के जीवन का लक्ष्य है बड़ा होकर ऑफिसर बनना, किसी के जीवन का लक्ष्य है बड़ा व्यापार करना, किसी के जीवन का लक्ष्य है समाज की सेवा कर दुआएं कमाना, किसी के जीवन का लक्ष्य है देश को ऊंच शिखर पर ले जाना, किसी के जीवन का लक्ष्य है परमात्म प्यार का अधिकारी बनना। जिसका जैसा लक्ष्य होता है उसको वैसे संकल्प चलते हैं और वैसे लोग स्वत: ही मिलते रहते हैं यह कुदरत का नियम है।
लक्ष्य विहीन जीवन
कुछ लोगो के जीवन का कोई लक्ष्य ही नहीं होता,उनका जीवन बुजुर्गों ने बंदर समान बताया है,आप देख रहे हो कोई बंदर की तरह डेली काम विकार की आग में जल रहा है, जहां सुन्दर नर या नारी देखी, बुद्धि उसके आकर्षण में लगी रहती है, किसी में कोई विशेषता देखी बुद्धि उसकी याद में मग्न रहती है, फिर मन में मन- घडंत की प्लानिंग करते रहते हैं, बाद में जब वो पूरी नहीं होती तो दुःखी हो जाते है।
कोई को मोह है वो अपने परिवार के, साथियों की याद, उनकी सेवा, उनके सुख में स्वयं खुश रहता है, उनके दुःख में स्वयं दुखी होकर बंदर की तरह चिपका हुआ जीवन जीता है।
जिसको लोभ है वो सारा दिन धन कमाने में, धन इक्कठा करने में ही लगा हुआ है, उसको ना स्वयं के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम करने का समय है, ना ही समाज से कोई मतलब है, ना ही परमात्मा को याद करने का समय है। उसको सिर्फ धन चाहिए,चाहे बेईमानी से ही आए।
जिसको अहंकार है वो अपनी ही महिमा गाता रहता है और दूसरों से अपनी महिमा ही सुनना चाहता है यदि उसकी महिमा नहीं की जाये तो आपसे बदले की भावना रख लेता है फिर समय प्रति समय हमारी निंदा ही करता रहेगा।
जिसमे क्रोध है उसकी कोई बात नही मानी तो गुस्सा, उससे पूछ कर नही किया तो गुस्सा, उनका जीवन बहुत ही स्वार्थी व्यक्तित्व का होता है। क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति से सभी दूर भागते हैं, बहुत डर कर उससे बात करते हैं। कोई भी विकार हमारे विवेक को नष्ट कर देता है, इसका परिणाम क्या होगा, गलती करते समय मानव सोच ही नहीं पाता। फिर परिमाण आने पर वह दुखी होता है।
श्रेष्ठ संकल्प से अपना बचाव
जैसे हम गर्मी, सर्दी के मौसम में जीते हैं तो बाहर के टंपरेचर से अपने शरीर के अनुकूल, सर्दी में गर्म कपड़े यूज करते हैं, मूंगफली,ड्राई फ्रूट्स आदि खाते हैं। गर्मी में A.C, कूलर इत्यादि यूज करते हैं, ठंडी तासीर की चीज़े खाकर मौसम से अपना बचाव करते हैं वैसे ही हम सब समाज में रहते हैं, अनेकों प्रकार के लोगों के संपर्क में आते हैं, सबके अलग-अलग स्वभाव, संस्कार होते हैं उस समय हमें श्रेष्ठ संकल्प करने का अभ्यास नहीं है तो उन पर गुस्सा करते हैं, टकराव मे आते हैं, नाराज होते हैं अर्थात उनके प्रभाव में आकर अपने मन की शान्ति भंग कर दुःखी होते हैं ऐसे समय पर यदि आत्मा का ज्ञान हो, यह सृष्टि वैरायटी रंगमंच है सब अपना-अपना रोल अदा कर रहे हैं मुझे उनके प्रभाव में नही आना है, मुझे जीवन के लक्ष्य को सामने रख श्रेष्ठ स्वमान में रह अपने मन की अवस्था को स्थिर रखना है यह संकल्प उस समय आ जाएं तो हम शान्त मन से, मधुर व्यवहार से उस माहौल को अच्छा बना सकते हैं, सबको संतुष्ट कर घर में, समाज में शान्ति ला सकते हैं।
जैसे किसी दिन परिवार में, समाज में किसी ने कुछ कह दिया,उस समय आप स्वयं अपने तन की बीमारी से या मन मे किसी समस्या से परेशान थे, उसी समय पर कोई कुछ कह दे उस समय यदि श्रेष्ठ संकल्प है तो हम स्वयं को मौन कर सकते हैं। फिर भी यदि सामने वाला ज्यादा ही बोलता रहे तो स्वयं की वाणी को सरल बनाना कठिन लगता है, अब आपने भी कुछ बोल दिया और माहौल खराब हो गया। अब भी यदि श्रेष्ठ संकल्प आ जाए कि मै इस पेपर में फेल हो गया, मेरे प्यारे शिव बाबा या खुदा दोस्त अब शक्ति दो, युक्ति दो मुझे इस सम्बन्ध को फिर से ठीक करना है तो आप देखेंगे कुदरत का खेल है जैसे ही आप उस व्यक्ति के पुनः संपर्क में आयेंगे तो उसका मूड बदला हुआ भी हो सकता है, आपको किनारा भी कर सकता है, आपको कुछ बोल भी सकता है पर आपके मुख से ऐसे मधुर, सरल बोल निकलेंगे वो व्यक्ति हंस कर आपसे बात करेगा आपके सम्बंध पुनः अच्छे हो जाएंगे यह है श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति।
आप कोई निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हो वहां पर कोई महिमा करने की बजाय निंदा कर दे तो उस समय यदि श्रेष्ठ संकल्प आ जाए कि मेरा इनसे पूर्व जन्म का हिसाब किताब हो सकता है या हो सकता है इसमें इनका कोई निजी लाभ ना हो रहा हो या ईश्वर मेरी परीक्षा ले रहा हो ऐसा श्रेष्ठ संकल्प मन को स्थिर रखता है, हम सेवा में व्यस्त रहते हैं और उस व्यक्ति के बारे में किसी को भी बुरा नहीं बोलेंगे कि ये क्या बोल रहा है।
जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जहां कोई गलत फहमी के कारण या कोई हमारी छोटी गलती के कारण समाज में सबके सामने हमारी कोई इंसल्ट कर दे तो अपनी मन की अवस्था को संभालना मुश्किल हो जाता है यदि उसी समय एक संकल्प, गीता की एक लाइन याद आ जाए कि निंदा स्तुति हानि लाभ में जो बच्चे समान रहते हैं वो मुझे अति प्रिय हैं, यह कुदरत का नियम है यह श्रेष्ठ संकल्प ही हमें दुःखी नही होने देता, हम अंदर ही अंदर अपने प्रियतम प्यारे शिव बाबा को याद कर उसके प्रेम में मग्न होने लगते हैं और उसे ही इस बात को ठीक करने का काम सौप देते हैं, हम हल्के होकर जीवन की जिम्मेवारी को संभाल लेते हैं, किसी से कोई नाराजगी का भाव भी मन नहीं आने देते।
समाज का सामान्य व्यक्ति इस एक जन्म को सुखी जीवन बनाने के लिए हद की सोच रखता है, एक ज्ञानी व्यक्ति अपने जन्म-जन्म को श्रेष्ठ बनाने के लिए बेहद की सोच रखता है जिसके कारण वह किसी व्यक्ति, वस्तु वैभव के प्रभाव से परे होकर जन कल्याण में ही अपना जीवन लगा देता है,जो आत्मा अपना क्षण-क्षण जन-कल्याण में लगाती है उसका स्मरण स्वयं भगवान भी करते हैं, उसके जीवन की जिम्मेवारी वो खुद उठाते हैं यह सब सच्चे ज्ञानी, योगी आत्माएं अनुभव कर रही है।
जन्म-जन्म से हम अपनी हद की सोच से स्व-कल्याण, विश्व कल्याण के लिए संकल्प शक्ति को यूज करते आए, दुनिया का परिणाम सामने देख रहे है, अब समय है उस परम शक्ति परमेश्वर जो सदा शिव है उसके आगे समर्पण होने का, अपने जीवन की जिम्मेवारी उसे सौप देने का।
वो हमारा पालनहार, दुःख हरता, सुखदाता है, उसकी शक्ति को पहचान पल-पल उसकी याद में मग्न रहने का। जिसकी मन, बुद्धि में एक ईश्वर ही समाया हो उसको परीक्षाएं अधिक तो आ सकती है पर सफलता उसका जन्म सिद्ध अधिकार है।