स्वदर्शन चक्रधारी सो विश्व दर्शनीय मूर्तधारी…

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विकर्म विनाश करने के लिए चाहिए ज्वाला स्वरूप स्थिति चाहिए, बीज स्वरूप स्थिति चाहिए। बाबा कहते अगर वो थोड़ी घड़ी के लिए भी अचीव हो जाये तो भी बहुत जन्मों के विकर्म विनाश कर दे, वो इतनी पॉवरफुल स्टेज है।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि चारों ही अलंकार में सबसे पहला है शंख, तो जो बाबा का परिचय सबको सुनाते रहते हैं, शंख ध्वनि तो चलती रहती है चलते-फिरते भी। दूसरा कमल पुष्प समान जीवन तो है ही है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं तो सभी ने पवित्रता को धारण किया है। माना कमल पुष्प भी पकड़ा है। तो दो अलंकार तो पकड़े हैं। और तीसरा है ज्ञान की गदा। तो मुरली भी कभी मिस नहीं करते हैं। मुरली भी रोज़ सुनते हैं। तो तीन अलंकार तो पकड़े हुए ही हैं सबने। रह गया तो कौन-सा रह गया? स्वदर्शनचक्र। ये घूमता नहीं है। स्वदर्शनचक्र ही छूट जाता है हमारा। और बाबा रोज़ लगभग साकार मुरली के अन्दर कहते हैं बच्चे स्वदर्शनचक्रधारी बनो। स्वदर्शनचक्र को घुमाओ। क्यों घुमाने के लिए कहता है? उससे क्या होगा? तो बाबा ने कई मुरलियों में सुनाया है कि बच्चे जितना स्वदर्शनचक्र घुमायेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। जितना स्वदर्शनचक्र घुमायेंगे आत्मा पावन बनती जायेगी।
आत्मा को पावन बनाने के दो तरीके हैं। एक आत्मा को पावन बनाने के लिए ज्वाला स्वरूप योग की स्थिति चाहिए। जिससे हम अपने पास्ट के पाप कर्मों को, विकर्मों को जला दें। बाकी जैसे रूहरिहान की स्थिति है, बाबा के साथ सर्व सम्बन्ध की स्थिति जो है, ये सारी स्थितियां देही अभिमानी स्थितियां हैं, इनसे विकर्म विनाश नहीं होते। विकर्म विनाश करने के लिए चाहिए ज्वाला स्वरूप स्थिति चाहिए, बीज स्वरूप स्थिति चाहिए। बाबा कहते अगर वो थोड़ी घड़ी के लिए भी अचीव हो जाये तो भी बहुत जन्मों के विकर्म विनाश कर दे, वो इतनी पॉवरफुल स्टेज है। लेकिन वो पहुंचने नहीं देती है, पहुंचते-पहुंचते जाते हैं और बस पूरा हो जाता है। इसलिए उस स्टेज तक नहीं जा पाते हैं, लेकिन दूसरा सरल तरीका जो बताया बाबा ने साकार मुरली के अन्दर कि बच्चे आप गोले के सामने बैठ जाओ, झाड़ के सामने बैठ जाओ, सीढ़ी के सामने बैठ जाओ और चक्र घुमाना चालू करो। अच्छा वो भी नहीं हो पाता है तो कम से कम आठ बार पाँच स्वरूप का चक्र घुमाओ। ये तो सहज है?
कम से कम एक दिन में भी अगर आठ बार घुमाया तो कहते हैं जैसे स्वदर्शनचक्र घुमाने से असुरों का

गला कटा तो जितना स्वदर्शनचक्रधारी बनेंगे तो हमारे पास व्यर्थ का चक्र नहीं चलेगा और उसका गला कटता जायेगा। उसकी जड़ें कटती जायेंगी। इम्प्युरिटी से मुक्त होना सहज हो जायेगा। इसलिए स्वदर्शनचक्रधारी सो विश्व दर्शनीयमूर्तधारी सहज बन सकते हैं। इसीलिए आज से अभी क्या करना? जब भी आप बाबा को याद करने बैठें, चलते-फिरते कर्म करते भी पाँच स्वरूप का चक्र घुमाते रहो, घुमाते रहो। कैसे घुमायेंगे? परमधाम से शुरू करो, मैं आत्मा निराकारी स्वरूप में स्थित हूँ। फिर परमधाम से नीचे उतरे देवता स्वरूप में, तो देव स्वरूप में कितनी प्यारी मूर्त है मेरी। वो प्यारी मूर्त को महसूस करो, अपने अन्दर अनुभव करो। और त्रेतायुग के अन्त तक हम दिव्य स्वरूप में रहे ये फील करते जाओ। फिर द्वापर में पूज्य स्वरूप भी कितना न्यारा और प्यारा है। जिसको भक्त इतना प्यार से याद करते, देवियों को, गणेश जी को, हनुमान जी को। ये सारे देवताओं को याद करते हैं तो वो हमारा ही स्वरूप है। फिर ब्राह्मण, बाबा के राज-दुलारे। तो उस राज-दुलारे स्वरूप में अपने आपको देखो कि मैं बाबा का राज-दुलारा हूँ। और फिर फरिश्ता, एकदम प्यारा स्वरूप। एकदम लाइट का स्वरूप। इस तरह से फास्ट घुमाओ। जैसे-जैसे आदत पड़ती जायेगी स्वदर्शनचक्र घुमने लगेगा आपका तो जब कोई चीज़ की आदत पड़ती है तो कॉन्शियसली ना भी हो लेकिन सबकॉन्शियस लेवल पर वो चलता ही रहता है।
तो इसीलिए बाबा कहते स्वदर्शनचक्रधारी सो विश्व दर्शनीयमूर्तधारी।

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