कोई भी बात के विस्तार को समाकर सार में स्थित रह सकते हो। ऐसा अभ्यास करते-करते स्वयं सार रूप बनने के कारण अन्य आत्माओं को भी एक सेकण्ड में सारे ज्ञान का सार अनुभव करा सकेंगे। अनुभवीमूर्त ही अन्य को अनुभव करा सकते हैं। इस बात के स्वयं ही अनुभवी कम हो, इस कारण अन्य आत्माओं को अनुभव नहीं करा सकते हो। जैसे कोई भी पॉवरफुल चीज़ में व पॉवरफुल साधनों में कोई भी चीज़ को परिवर्तन करने की शक्ति होती है। जैसे अग्नि बहुत तेज अर्थात् पॉवरफुल होगी, तो उसमें कोई भी चीज़ डालेंगे तो स्वत: ही रूप परिवर्तन में आ जाएगा। अगर अग्नि पॉवरफुल नहीं है तो कोई भी वस्तु के रूप को परिवर्तन नहीं कर पाएंगे। ऐसे ही सदैव अपने पॉवरफुल स्टेज पर स्थित रहो तो कोई भी बातें, जो व्यक्त भाव व व्यक्त दुनिया की वस्तुए हैं व व्यक्त भाव में रहने वाले व्यक्ति हैं, आपके सामने आएंगे तो आपके पॉवरफुल स्टेज के कारण उन्हों की स्थिति व रूपरेखा परिवर्तन हो जाएगी। व्यक्त भाव वाले का व्यक्त भाव बदलकर आत्मिक स्थिति बन जाएगी। व्यर्थ बात परिवर्तन होते समर्थ रूप धारण कर लेगी। विकल्प शब्द शुद्ध संकल्प का रूप धारण कर लेगा। लेकिन ऐसा परिवर्तन तब होगा जब ऐसी पॉवरफुल स्टेज पर स्थित हों। कोई भी लौकिकता अलौकिकता में परिवर्तित हो जाएगी। साधारण असाधारण के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे। फिर ऐसी स्थिति में स्थित रहने वाले कोई भी व्यक्ति व वैभव व वायुमण्डल, वायब्रेशन, वृत्ति, दृष्टि के वश में नहीं हो सकते हैं। तो अब समझा क्या कारण है? एक तो समाने की शक्ति कम और दूसरा परिवर्तन करने की शक्ति कम। अर्थात् लाइट हाउस, माइट हाउस – दोनों स्थिति में स्थित सदाकाल नहीं रहते हो। कोई भी कर्म करने के पहले, जो बापदादा द्वारा विशेष शक्तियों की सौगात मिली है, उनको काम में नहीं लाते हो। सिर्फ देखते-सुनते खुश होते हो परन्तु समय पर काम में न लाने कारण कमी रह जाती है। हर कर्म करने के पहले मास्टर त्रिकालदर्शी बनकर कर्म नहीं करते हो।
अगर मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म, हर संकल्प करो व वचन बोलो, तो बताओ कब भी कोई कर्म व्यर्थ व अनर्थ वाला हो सकता है? कर्म करने के समय कर्म के वश हो जाते हो। त्रिकालदर्शी अर्थात् साक्षीपन की स्थिति में स्थित होकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म नहीं करते हो, इसलिए वशीभूत हो जाते हो। वशीभूत होना अर्थात् भूतों का आह्वान करना। कर्म करने के बाद पश्चाताप् होता है। लेकिन उससे क्या हुआ? कर्म की गति व कर्म का फल तो बन गया ना। तो कर्म और कर्म के फल के बन्धन में फंसने के कारण कर्म बन्धनी आत्मा अपनी ऊंची स्टेज को पा नहीं सकती है। तो सदैव यह चेक करो कि आये हैं कर्मबन्धनों से मुक्त होने के लिए लेकिन मुक्त होते-होते कर्मबन्धन युक्त तो नहीं हो जाते हो?