नार्थ लखीमपुर: राजयोग द्वारा मानसिक, शारीरिक और बौध्दिक विकास -भगवान भाई

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नार्थ लखीमपुर (असाम): वर्तमान समय हर व्यक्ति दुखी अशांत और परेशान है | वर्तमान समय अगर जीवन को हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी बनाना चाहते हो तो राजयोग कि बहुत आवश्यकता है | राजयोग द्वारा मानसिक, शारीरिक और बौध्दिक विकास होता है | राजयोग द्वारा आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। मन के नकारात्मक विचार और मनो विकार ही जीवन कि सभी समस्याओं का जड़ है । जो व्यक्ति नकारात्मक है और विकारो के अधीन है वह जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता । राजयोग साधना द्वारा मन के नकारात्मकता पर मनोविकार पर संयम कर सुखी बन सकता है | उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहे। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारीज  ईश्वरीय विद्यालय  राजयोग सेवाकेंद्र  में राजयोग द्वारा गृहस्थ में रहते भी खुशहाल जीवन विषय पर राजयोग साधना पर कार्यक्रम ।
भगवान भाई ने कहा कि पर चिंतन करने वाला व दूसरों को देखने वाला हमेशा तनाव में रहता है, जबकि स्वचिंतन से आंतरिक कमजोरियों की जांच कर उसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से स्वचिंतन का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन हंस की तरह अंदर व बाहर से स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। गुणवान व्यक्ति ही समाज की असली संपत्ति है। राजयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने कहा कि खुद को देह न मानकर आत्मा मानें और परमात्मा को याद करते हुए सद्गुणों को धारण करें। ऐसा करने से काम, क्रोध, माया, मोह, लोभ, अहंकार, आलस्य, ईष्या, द्वेष पर जीत हासिल की जा सकती है।
भगवान भाई जी ने कहा कि  ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण है। इसकी बलि चढ़ाकर शरीर रूपी घर में आत्मा रूपी दीपक जलाओ। ईष्र्या रूपी कचरे को पॉजिटिव सोच से साफ करो तो आपके घरों में संपन्नता निवास करने लगेगी। उन्होंने कहा वर्तमान में हर व्यक्ति तनाव से ग्रसित है। इस कारण जीवन में कोई रस नहीं आता बल्कि दूसरों में बुराई नजर आती है। नकारात्मक सोच मनुष्य को गर्त में ले जाती है व सकारात्मक सोच परम आनंद के साथ परमात्मा से जोड़ती है।
भगवान भाई जी ने कहा कि सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने के लिए एवं स्वयं को को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचे। उन्होंने कहा हम अपने घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन अपने मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते हैं। जिसमें मन अवाछंनीय खरपतवार रूपी अशुद्ध विचार उग आते हैं। इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दु:खों का सृजन होता है। शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चैतन्य शक्ति के रूप में आत्म विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हैं, अविनाशी हैं। इस विस्म्रति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़
भगवान भाई ने कहा कि राजयोग द्वारा अभिमान पर अंकुश लगाकर तनाव मुक्त बन सकते है | स्वयं के गुणों की विशेषता, कला, धन और पद का अभिमान ही मनुष्य के पतन का कारण बनता है। अभिमान वाला व्यक्ति सदा तनाव में रहता है जिसके कारण वह अनेक गलतियां कर बैठता है।उन्होंने कहा वर्तमान समय में मनुष्य स्वयं के सच्चे अस्तित्व को भूलने के कारण सदा देह अभिमान में रहता है। देह अभिमान के कारण ही वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों के वश में हो गया है। उन्होंने बताया वास्तव में हम सभी का असली स्वरूप आत्मा है।
स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवाकेंद्र कि प्रभारी बी के नुरुमी   जी ने कहा की जब मनुष्य के अंदर अभिमान पनपने लगता है तो उसके विचारों में नकारात्मकता आने लगती है। नकारात्मकता पर सयम रखने हेतु राजयोग कि आवश्यकता है | राजयोग द्वारा हम अपने अभिमान से मुक्त नम्र बन सकते  है। अभिमान ओर नकारात्मकता ही  तनाव का कारण है। उन्होंने कहा वर्तमान परिस्थितियों का सामना करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान  की बहुत आवश्यकता है। आध्यात्मिक ज्ञान से हम अपने व्यवहार में निखार ला सकते हैं।
स्थानीय ब्रह्माकुमारी केंद्र के ओर से  बी के अदिति  जी ने कहा राजयोग के विशेष अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व सद्गुणों का विकास होता है |
कार्यक्रम के अंत में बी के भगवान् भाई जी ने सभी को राजयोग मेडीटेशन  भी कराया |

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