प्रकाशमणि ने पाँचों महाद्वीपों में लहराया परमात्म परचम

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भारत, जहाँ से परमाणु प्रकाश प्रस्फुटित होता है, जिस प्रकाश की आभा से सभी आल्हादित हो जाते हैं, उस परमात्म प्रकाश की एक किरण मणि के रूप में विश्व मानचित्र पर अपना चित्र छोड़ गयी, जिसकी छाप पांचों महाद्वीपों में उनके चरित्र के गुणगान के रूप में चित्रित है। जिनके आधार से यह प्रकाश चहुं ओर फैला है, ऐसे भारत की भारती मां, हमारी दादी मां को पूरा विश्व नमन करता है। धन्य हैं आप… आपकी यशगान और कीर्ति दिग-दिगान्तर तक अमर रहेगी।


ध्यात्म प्रज्ञा राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि एक ऐसी विदूषी सशक्त नारी का नाम है जिन्होंने सिद्ध किया कि नारी शक्ति स्वरूपा है। नारी में विद्यमान शक्ति को आध्यात्मिकता द्वारा पुनर्जागृत किया जाये तो वह समाज में महान क्रान्ति की नायिका बन सकती है। आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग द्वारा नारी ही शीतला, दुर्गा, सरस्वती और संतुष्टता की मणि सन्तोषी देवी बन सकती है, यह अपने जीवन में उन्होंने कर दिखाया। उन्होंने अपने नेतृत्व में भारत और विश्व के लगभग 145 देशों के लाखों भाई-बहनों के जीवन में अद्भुत परिवर्तन लाकर विश्व सेवा के लिए प्रेरित किया। अपने अनुपम मूल्यनिष्ठ जीवन, आध्यात्मिक शक्ति एवं प्रशासनिक दक्षता से ब्रह्माकुमारी संगठन में प्रेम, शान्ति, सत्यता, समरसता, सद्भावना, आत्मिक दृष्टि, वात्सल्य, करूणा जैसे जीवन मूल्यों को परमात्म शिक्षा और आत्मविश्वास से सुसज्जित किया।

‘विश्व धर्म संसद’ की मनोनीत अध्यक्षा
शिकागो में ‘विश्व धर्म संसद’ ने शताब्दी कार्यक्रम में मनोनीत अध्यक्षा के रूप में आमंत्रित कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

विशेष अवॉर्ड से सम्मानित
युनेस्को ने दादी जी को अंतर्राष्ट्रीय शान्ति पुरस्कार संस्कृति वर्ष के दौरान पीस मेनिफेस्टो 2000 के अंतर्गत भारत व 120 अन्य देशों से साढ़े तीन करोड़ व्यक्तियों के हस्ताक्षर जुटाने पर विशेष अवॉर्ड से सम्मानित किया।
मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत दादी जी के निर्मल, पवित्र और प्रकाशदयी व्यक्तित्व से लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन आया। इनके सानिध्य में लाखों परिवार पवित्र, तनाव एवं व्यस्नों से मुक्त, सुखी जीवन जीने की कला सीखकर अनेकों के लिए आदर्शमूर्त बने हैं। ऐसी आभामयी दादी को शत्-शत् नमन।
द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन में की शिरकत : सन् 1954 में पिताश्री ब्रह्मा बाबा ने जापान में हुए द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन में वक्तव्य देने हेतु आपको भेजा। दादी ने थाईलैन्ड, इन्डोनेशिया, हांगकांग, सिंगापुर, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में छ: माह तक भ्रमण करके हज़ारों भाई-बहनों को ईश्वरीय संदेश देकर परमात्म कार्य में सहयोगी बनाया।
ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय की बागडोर दादी के हाथों में : 1969 में संस्था के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने अपने देहावसान से पूर्व दादी जी के अदम्य साहस, निष्ठा, ईमानदारी तथा विश्व कल्याण की सेवाओं में समर्पणता को देखते हुए, अपना हाथ दादी के हाथ में देते हुए, अपनी सर्व-शक्तियां हस्तांतरिक कर ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की बागडोर सौंपी।

डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाज़ा : आध्यात्मिक शक्ति एवं बहुमुखी सेवाओं को देखते हुए दादी प्रकाशमणि को 30 दिसम्बर,1992 को मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्व विद्यालय द्वारा राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. एम,चन्ना रेड्डी ने ‘डॉक्टरेट’ की मानद उपाधि से विभूषित किया।

इक्कीस विभिन्न वर्गों का किया गठन : दूरदृष्टा दादी जी ने राजयोग शिक्षा शोध संस्थान की स्थापना करते हुए विभिन्न वर्गों के सलाह प्रभागों का गठन किया। इनमें शिक्षाविद्, युवा, मेडिकल, व्यवसाय, समाजसेवा, सांस्कृतिक, न्यायिक, प्रशासनिक, मीडिया आदि प्रभाग शामिल हैं। इनके अंतर्गत अध्यात्म का समन्वय व शोध प्रारंभ हुआ। इसी के आधार पर संस्था अध्यात्म, प्राणी मात्र को समर्थ दिशा बोध देने में सक्षम बनी। ये प्रभाग अपने-अपने क्षेत्र में विश्व बंधुत्व का बोध जगाने के लिए सक्रिय प्रयोग करते आ रहे हैं। युवाओं व महिलाओं के उत्थान, सर्वांगीण विकास के लिए आध्यात्मिक चेतना जागृत करने वाले असंख्य कार्यक्रमों का संयोजन किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके सान्धिय में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् की परामर्शक सदस्यता प्रदान की

दादी जी के नेतृत्व में समाज में शान्ति, सद्भावना, धार्मिक समरसता भ्रातृत्व प्रेम जैसे मूल्यों की स्थापना के कार्य को देखते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय को संयुक्त राष्ट्र संघ ने गैर सरकारी संस्था के रूप में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की परामर्शक सदस्यता प्रदान की व यूनिसेफ से जोड़ा। ”दादी जी के नेतृत्व में संस्थान द्वारा राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विराट रूप से चल रहे मानवीय कार्यों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय को सन् 1985 में अन्तर्राष्ट्रीय ”शान्ति पदक” और दादी जी को सन् 1987 में सकारात्मक कार्यों के लिए ”शान्ति दूत सम्मान” से भी नवाज़ा, 5 राष्ट्रीय स्तर के भी पुरस्कार प्रदान किये। इसके अलावा दादी जी को महामण्डलेश्वरों, सामाजिक संस्थानों ने विभिन्न पुरस्कार एवं सम्मान चिन्ह भेंट कर उनकी सेवाओं की स्तुति की”।

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