अव्यक्त बापदादा की श्रीमत, निमित्त भाई-बहनों के साथ विचार विमर्श करके सबकी राय को सम्मान देकर चलने वाली, मुस्कुराते हुए सबके सिर को सहलाकर उनके अन्दर के भाव को परख, स्नेहपूर्ण पालना दे निश्छल भाव को व्यक्त करने वाली, दूरदर्शिता की एक अहम मिसाल, जिन्होंने न किसी के अवगुण देखे, न परचिंतन किया। विशेषताओं की प्रतिमूर्ति, दैवी परिवार का सदा ध्यान रखने वाली, दूरदर्शी, पारदर्शी, मर्मस्पर्शी दादी जी का प्रेमपूर्ण निश्छल भाव आज भी हमें सुख और सुकून देता है।
बाबा ने जो कहा दादी ने वैसा ही किया
मुझे याद आता है जब शक्तिनगर का सेवाकेंद्र तोडक़र पुन: बनाना था, तब दादी ने मुझे कहा कि ये माउण्ट आबू के बाद विश्व का प्रथम सेवाकेंद्र है, बहुत प्यार से और बहुत सुंदर इस स्थान को बनाना। क्योंकि स्थान, वातावरण और इसके वायब्रेशन से भी लोग खींचे चले आते हैं। मुझे दादी की एक बात याद आती है कि जब दादी बहुतों से मिलती थीं और व्यस्त रहती थीं तो एक बार जब अव्यक्त बापदादा दादी से मिल रहे थे, तो खास दादी को कहा कि मैं समझता हूँ कि आप बहुत व्यस्त रहती हो। अपने लिये योग का समय नहीं निकाल सकती। उस समय बाबा ने शिक्षायें दीं कि आप एक ग्रुप के बाद दूसरे ग्रुप को मिलती हो, तो जब एक ग्रुप को मिलो, तो पहले तीन मिनट उस ग्रुप को याद में बिठाओ, उसके पश्चात् उनसे मिलना शुरु करो। जब वो गु्रप पूरा हो जाए तो दो मिनट याद में बिठाकर उनको विदाई दो। उसके पश्चात् जब सेकेण्ड ग्रुप आता है, पुन: उनको दो-तीन मिनट याद में बिठाओ, और जाते समय फिर दो मिनट याद कराकर उन्हें भेजो। इस प्रकार याद का तांता आपका बना रहेगा। इस प्रकार बाबा ने विशेष दादी को ये कहा कि समय लम्बा नहीं मिलता तो कोई बात नहीं, लेकिन इस प्रकार अपना समय निकालना। और मैं देखती थी कि दादी ने बाबा की इस आज्ञा का पालन किया। – राजयोगिनी ब्र.कु. चक्रधारी दीदी,रशिया की निदेशिका तथा महिला प्रभाग अध्यक्षा,ब्रह्माकुमारीज़
दादी को हमेशा सेवा में नये-नये प्लान बनाने में रूचि रही
दादी को हमेशा नवीनता प्रिय थी। मैं अहमदाबाद में आई तो बाद में पहले, पहला प्रोजेक्ट मैंने एक राजयोग शिविर का प्रारम्भ किया, 21 मई 1973 को और फिर वो 3 दिन के राजयोग शिविर का समाचार मैंने दादी जी को लिखकर भेजा, दादी के पास पत्र पहुँचते ही दादी ने मुझे फोन करके बुलाया और कहा कि चन्द्रिका तुमने राजयोग शिविर का प्रयोग किया है तो ये हमारी सभी दादियां, ये सब बड़ी दीदीयां हैं उन्हों को तुम ये अनुभव कराओ। मुझे संकोच तो बहुत हुआ लेकिन दादी ने कहा ये मनोहर दादी तुम्हारे बाजू में बैठेगी और तुम्हें ये ज़रूर करवाना है। दादी भी बीच-बीच में आकर बैठ जाती थी। फिर तीन दिन के अनुभव के बाद दादी ने मुझे कहा कि चन्द्रिका अभी यहाँ बैठो तुम और ये सारे लेक्चर की बुक तैयार करके दो, वो तैयार करके दी तो फिर कहा अभी इसकी ट्रेनिंग की बुक तैयार करके दो। तो दादी ने मुझे वहाँ बिठा दिया और मैंने वहाँ बैठकर सब कुछ लिखकर के दिया। दादी ने उसी घड़ी उसकी लिथो-कॉपी निकलवाई और जो बहनें उस समय मीटिंग के अर्थ आई हुई थी, उन सभी को तो उसी समय कॉपी दे दिया। बाद में, पूरे भारत के सभी सेवाकेंद्रों पर दादी ने वो राजयोग शिविर की पुस्तिका भेेजी और सभी को पे्ररित किया। इतने तक ही नहीं, फिर दादी ने अपने पाण्डव भवन में एक राजयोग भवन खास बनवाया और वहाँ पर वी.आई.पीज़ के लिए राजयोग शिविर का आयोजन प्रारम्भ किया। – राजयोगिनी ब्र.कु चन्द्रिका दीदी,युवा, सांस्कृतिक एवं कला प्रभाग की अध्यक्षा,ब्रह्माकुमारीज़
ज्ञान के साथ आत्माओं की सूक्ष्म पालना करना दादी ने सिखाया
1976 से मैंने दादी के कहने पर मधुबन में रहना शुरु किया तो हम दादी से मिलते थे। एक दिन मैंने उनसे कहा कि मैं यहां मधुबन में सेवा तो करती हूँ लेकिन मैं अपने ऊपर और क्या विशेष ध्यान दूं तो दादी ने मुझे बहुत सुंदर बात कही। दादी ने मुझसे कहा कि शीलू, तुम टीचर तो बहुत अच्छी हो, ज्ञान बहुत अच्छा सुनाती हो, बहुत अच्छे लेक्चर देती हो, बहुत लोग प्रभावित होते हैं, विदेशी भी बहुत खुश होते हैं, लेकिन अभी तुमको एक काम और करना है। तो मैंने कहा कि दादी आप बतायें, तो दादी की एक विशेषता थी कि किसी की भी कमी-कमज़ोरी सीधा नहीं बोलती थीं। इसलिए मैंने कहा कि दादी आपने मेरी महिमा तो बहुत की लेकिन मेरी कोई कमी-कमज़ोरी हो तो वो भी बताओ। तो दादी ने कहा कि देखो, तुम टीचर बहुत अच्छी हो, लेकिन अब तुमको एक माँ की तरह सबको पालना देनी है। क्योंकि विदेशी आते हैं, उनको इस प्रकार की पालना चाहिए। बहुत प्यार चाहिए उनको। जितना आप उनको प्यार देंगे, बाबा की तरफ ले जायेंगे तो वे बाबा के पक्के बच्चे बन जायेंगे। तो कैसे विदेशियों की सेवा करनी है और कैसे उनको बाबा के इतना नज़दीक लाना है, ये दादी ने हमें सिखाया। – राजयोगिनी ब्र.कु. शीलू दीदी,शिक्षा प्रभाग की उपाध्यक्षा,ब्रह्माकुमारीज़
राजयोग प्रशिक्षण का प्रथम प्रशिक्षक दादी ने बनाया
प्रभु के आकाश का दैदीप्यमान सितारा दादी प्रकाशमणि का जैसा नाम वैसा ही व्यक्तित्व था। परमपिता परमात्मा के सत्य ज्ञान का प्रकाश, सचमुच ही दादी ने अपने उत्कृष्ट आचरण द्वारा समग्र विश्व में फैलाया। यह परम सौभाग्य रहा है कि ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सम्पर्क में जब से हम आये, हमारे परिवार का सम्बंध दादी से ही रहा। हमें शुरु से ही दादी की पालना मिली। सन् 1975 से 1985 के दौरान राजयोग शिविर कराने हेतु दादी ने भारत के विभिन्न राज्यों में मुझे भेजा। दादी ने ईश्वरीय कार्य को समग्र विश्व में फैलाया और सबका उमंग-उत्साह बढ़ाते हुए बेहद कार्य कराती रहीं। समर्पण जीवन के 22 वर्षों तक मैं सेवाकेंद्रों पर रहकर सेवा करती रही। उसके बाद सन् 1993 से मुख्यालय में दादी के पास रहने का मौका मिला। – राजयोगिनी ब्र.कु. गीता दीदी,बिज़नेस एंड इंडस्ट्रीज विंग की संयोजिका