शक्ति स्वरूपा दादी ने की तैयार एक सशक्त सेना

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हर पल कर्मातीत अवस्था को व्यक्त करने वाली, उमंग-उत्साह दिलाकर पूरे ईश्वरीय परिवार को यज्ञ के प्रति वफादार बनाने वाली, मुरली व मुरलीधर को सेवा और चिंतन का आधार बनाकर खुद को न्यारा-प्यारा रखने वाली, बापदादा की मूरत और उसे सारे दिन नैनों में समाये रख सभी को वैसा ही साक्षात्कार कराने वाली शक्ति स्वरूपा दादी जी ने हम सभी को अपने जैसा ईश्वरीय सेवाधारी बनाकर यज्ञ सेवा की बागडोर सौंपी।

दादी जी की उपस्थिति मात्र से ही खुशी का माहौल बन जाता

दादी जी से मिलने पर अपनेपन की महसूसता होती थी। ऐसा लगता था कि सच्चे परिवार से मिलन हो रहा है। जब पार्टी मधुबन से वापस जाती थी तो हर एक से पूछती थी कि मधुबन से क्या लेकर जा रहे हो। जाने वाले भाई-बहनों को मिश्री, इलाइची व बादाम खिलााकर भेजती थी। इस प्रकार हर एक को इतना प्यार, स्नेह व शक्ति दादी जी से मिलती थी। यज्ञ की पहली टेलीफिल्म क्रदिव्य ज्योतिञ्ज जब बनाई थी। तब मुम्बई से ही सारी प्रोफेशनल टीम मधुबन आई थी। उस समय भी वे सभी दादी जी के सहयोग व प्यार से अभिभूत हुए। सारे एक्टर्स व कैमरा आदि की टीम इतनी प्रसन्न हुई कि वे आज भी उसका गायन करते हैं। दादी जी में उमंग-उत्साह का अथाह भण्डार था। उनके सम्पर्क में आते ही सभी उमंग-उत्साह में उडऩे लगते थे। बोरीवली का बड़ा सेंटर निर्माण भी दादी जी के सहयोग व प्रेरणा से ही सम्भव हो पाया था। दादी जी के सम्मुख आते ही सभी में खुशी का वातावरण छा जाता था। – राजयोगिनी ब्र.कु. दिव्यप्रभा दीदी,ट्रांसपोर्ट प्रभाग की अध्यक्षा,ब्रह्माकुमारीज़

मधुर बोल व रूहानी मुस्कान सबको आकर्षित करती

ये चाँद होगा, न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे… इस गीत को अर्थ भाव सहित पसंद करने वाली और प्रभु की लगन में मस्त मेरी प्रिय दादी माँ के विषय में क्या लिखूँ, वो लिखूं, ऐसे लिखूं, वैसे लिखूं, ये बात लिखूं, वो बात लिखूं। न जाने कितनी बातें नज़र के आगे आती जा रही हैं। आज भी सब ताज़ा हैं। आज भी कानों में वो ममता भरे, रूहानी स्नेह भरे, मीठे मधुर बोल, आकर्षक मुस्कान और अपनापन लिए स्वागत करते दादी माँ के वह बोल आज भी कानों में गूँज रहे हैं… कलम थमी हुई है… आंखे सजल… स्थिर हैं समय भी मेरे साथ अतीत में लौटा है और वहां ही थमकर मुझे देख रहा है और मैं अतीत के उन सारे दृश्यों को निहार रही हूँ। जो सुखद पल मेरी प्रिय दादी माँ के संग गुज़रे और… मैं वहाँ ही रूक गई हूँ। देख रही हूँ, सुन रही हूँ, क्या?
वही मीठे प्यार भरे, स्वागत करते हुए बापदादा के समान, अपनी रूहानी स्नेह की बाहों में मुझे भरते हुए दादी कह रही है, आ गई नलिनी! तुम आ गई? जैसे माँ अपने बच्चे को देख खुश होती है, ऐसी मासूम खुशी लेकर सरल सी, दिव्य आभा लिए भोली पर चतुरसुजान सी प्यारी क्रमेरी दादी माँञ्ज और स्वागत के वह दो बोल सिर्फ दो बोल और फिर वह बाहों में मुझे समा लेना! क्या कहुं? उस पवित्र गोद के परम आनंद का! – राजयोगिनी ब्र.कु. नलिनी दीदी,उपक्षेत्रीय निदेशिका,घाटकोपर,मुम्बई

दादी के साथ-साथ बाबा हैं ऐसा हमने अनुभव किया

एक बार दादी से मैं एकरस अवस्था कैसे रहे इस विषय पर बातचीत कर रही थी तो दादी ने कहा- किसी भी राजा को देखो वह अपने ही चिंतन में, अपनी ही मौज में खड़ा दिखाई देता है, वह किसी को इधर-उधर देखता ही नहीं। अगर ऐसे हम रहें तो एकरस अवस्था और चढ़ती कला का अनुभव कर सकते हैं। समर्पित बहनों का दादी बहुत ध्यान रखती थीं। एक स्थान के लिए दादी ने पूछा कि कितनी बहन समर्पित हैं, मैंने कहा, बारह बहनें, तो दादी ने कहा कि आप वहां जाओ, उनको ईश्वरीय पालना मिलनी चाहिए। ऐसी मीठी पालना देने वाली, ऐसा ध्यान रखने वाली दादी आज भी सभी के नयनों में समाई हुई हैं। – राजयोगिनी ब्र.कु. रानी दीदी,उपक्षेत्रीय निदेशिका,मुजफ्फरपुर

वे विनम्रता की मूर्ति थीं, वे झुकना जानती थीं

दादी कर्म करते भी डिटैच रहती थीं। दादी हमेशा कहती थीं कि बाबा बैठा है, खड़ा है, करनकरावनहार है, तो बाबा-बाबा करके उन्होंने कभी समझा ही नहीं कि मैं कर रही हूँ। दादी ज्ञान और योग के लिए स्पेशल टाइम देती थीं। दिन में कई बार मुरली पढऩा, अमृतवेला करना। दादी कारोबार करते भी अपनी पढ़ाई और तपस्या पर पूरा ध्यान देती थीं। दादी स्नेही मूरत थे अत: उन्हें सभी का दिल से सहयोग प्राप्त हुआ। जैसे अंग्रेजी का शब्द है हार्मनी(सद्भावना) तो दादी कहती थीं कि हार मानी और बात सुलट गई। दादी झुकना जानती थीं, उनमें लचीलापन बहुत था। उनके स्नेही स्वरूप और लचीलेपन के कारण कभी किसी कार्य में गतिरोध पैदा नहीं हुआ। दादी के सामने ईगो प्रॉब्लम तो थी ही नहीं। उनको हर घड़ी ये लगता था कि बाबा का कार्य है और बाबा का कार्य होना चाहिए। दादी न्यूज़ पेपर वालों को भी कहती थीं कि दादी के नाम पर तो एक रुपया भी नहीं है, बैंक अकाउंट ही नहीं है, तो दादी ने अपना कुछ नहीं रखा और सबकुछ बाबा के लिए किया। दादी के लिए सर्वस्व बाबा ही था। – राजयोगिनी ब्र.कु. सुषमा दीदी,उपक्षेत्रीय निदेशिका,जयपुर

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