शक्ति स्वरूपा दादी ने की तैयार एक सशक्त सेना

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हर पल कर्मातीत अवस्था को व्यक्त करने वाली, उमंग-उत्साह दिलाकर पूरे ईश्वरीय परिवार को यज्ञ के प्रति वफादार बनाने वाली, मुरली व मुरलीधर को सेवा और चिंतन का आधार बनाकर खुद को न्यारा-प्यारा रखने वाली, बापदादा की मूरत और उसे सारे दिन नैनों में समाये रख सभी को वैसा ही साक्षात्कार कराने वाली शक्ति स्वरूपा दादी जी ने हम सभी को अपने जैसा ईश्वरीय सेवाधारी बनाकर यज्ञ सेवा की बागडोर सौंपी।

दादी की कर्मातीत स्थिति को हमने देखा

दादी जी अंतिम पांच महीने मुम्बई हॉस्पिटल में हमारे पास ही रहीं। उस समय भी हमने दादी की स्थिति वही देखी जो पूर्व में देखते थे। दादी का वही हर्षितमुख चेहरा अंत तक हमने देखा। पहले जैसे ही हमें गले लगाकर प्यार से मिलती थीं। वहाँ डॉक्टर्स भी, इतनी गंभीर बीमारी की अवस्था में उनका हर्षित चेहरा देख आश्चर्यचकित हो जाते थे। दादी उनसे मुस्कुराकर हालचाल पूछती थी तो उनका दिल भी भर आता था। उस समय भी दादी बहुत उमंग-उत्साह में कहती कि अब राखी आ रही है हम बड़े धूमधाम से मनाएंगे। इस बार यह टोली बनाएंगेे, यह करेंगे, इस तरह सदा उमंग में स्वयं भी उड़ती रहीं और दूसरों को उड़ाती रहीं। इसके साथ ही दादी बीच-बीच में एकदम उपराम हो जाया करती थीं। दादी की कर्मातीत अवस्था स्पष्ट दिखाई देती थी। कोई कार्य हो तो दादी तुरंत बोल देती थी लेकिन जब उन्हें बात न करना हो तो एकदम साइलेंस में चली जाती थीं। – राजयोगिनी ब्र.कु. योगिनी दीदी,बिज़नेस इंडस्ट्रीज विंग की अध्यक्षा,ब्रह्माकुमारीज़.

दादी ने कमी को दूर कर कमाई करना सिखाया

दादी ने मुझे बचपन से ही भाग्यशाली होने का वरदान दिया था, वे कहती थीं कि बाबा ने तुम्हें कितना ऊँचा भाग्य दिया है! मुझे बचपन से ही जो भी पॉकेट मनी मिलती थी, वो मैं छुपा-छुपाकर मनीऑर्डर कर देती थी। समर्पित होने के
बाद मैं हैदराबाद में रहने लगी तो दादी हर साल वहां आया करती थीं। उन्हें वहां आकर सिन्ध की याद आती थी। आज भी मुझे लगता है कि दादी के वरदानों से ही हैदराबाद में सेवा का इतना विस्तार हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि दादी आज भी मेरे साथ हैं, मुस्कुराते हुए हमेशा मेरे सिर पर हाथ रखती हैं। मैं दादी के साथ बिताए दिन कभी नहीं भूल सकती। मुझे बहुत प्यार भरी पालना दादी से मिली है, वो सारे पल मेरे लिए अविस्मरणीय हैं। उनकी निर्माणता, उनकी सरलता, उनकी मधुरता, उनका करुणामयी स्वभाव मेरे जीवन में ऐसा समाया हुआ है, जिन्हें मैं कभी भूल नहीं सकती। – राजयोगिनी ब्र.कु. कुलदीप दीदी, निदेशिका,शांति सरोवर रिट्रीट सेंटर,हैदराबाद.

हाँ जी के पार्ट ने मेरा भाग्य बदल दिया

दादी जी इतनी बड़ी हस्ती होते हुए भी हम सभी बहनों के साथ बहुत प्यार से, निर्माणता से रहीं और हमें भी रखा। एक बार दादी जब सुबह बाबा की याद में बैठी थीं तो उनको संकल्प आया कि कैलाश बहन को अहमदाबाद में भोग लगाने के लिए भेजूं। दादी ने कहा कि आपको आज सुबह ही अहमदाबाद जाना है, वहां दिवाली का भोग है, आप भोग लगा के आओ। उसके बाद मैं अहमदाबाद में गई। दादी ने कहा कि बाबा के भी आपके लिए बहुत ऊँचे संकल्प थे और वही संकल्प दादी के अंदर भी हैं, बाबा ने आपको बहुत अच्छे स्थान पर भेजा है, अभी आपकी बहुत बड़ी बेहद की सेवा शुरू होनी है। आप बस निमित्त बन करके हाँ जी करते हुए जो सेवा मिले वो करते चलो, बाबा आपको दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ाता रहेगा और फिर हम अहमदाबाद ही रह गये। सरला दीदी ने थोड़े ही दिनों के बाद नया सेंटर मणिनगर में खोला और मुझे वहाँ भेजा, वहां भी हमने 8-9 साल सेवा की। उसके बाद दीदी को संकल्प आया कि हम गांधीनगर सेंटर खोलें तो उन्होंने दादी से पूछा तो दादी ने कहा कि भले खोलो और वहां कैलाश को रखो। फिर दादी ने मुझे वरदान दिया कि आपका हाँ जी का पार्ट आपको बहुत आगे ले जाएगा। राजयोगिनी ब्र.कु. कैलाश दीदी,उपक्षेत्रीय निदेशिका,गांधीनगर.

मेरे भाग्यशाली जीवन की निमित्त दादी जी

दादी जी के असीम प्यार ने मुझे मधुबन की वरदानी भूमि से इतना जोड़ दिया जो मेरा यहाँ बार-बार आना होता रहता था। जब भी स्कूल में छुट्टियां होती थी तो मैं सेवा के लिए मधुबन आ जाती थी। दादी हमेशा मुझे कहती कि दादी की नज़र तुम पर है और उस नज़र ने मुझे हमेशा उनके करीब रखा। फिर पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् मैंने अपना जीवन ईश्वरीय सेवाओं में समर्पित कर दिया। जो बचपन से दादी कहती थी कि तुम पर दादी की नज़र है वो उन्होंने प्रैक्टिकल में करके दिखाया और मुझे कहा कि आपको दादी गामदेवी सेवाकेन्द्र पर भेजना चाहती है। तब से लेकर आज तक मैं गामदेवी सेवाकेन्द्र पर अपनी अथक सेवायें दे रही हूँ। जबकि मैं सौराष्ट्र(जूनागढ़) की थी, मेरे लिए ये स्थान बिल्कुल नया था लेकिन दादी के अमर बोल मेरे लिए वरदान बने रहे। दादी की उस पालना व सकाश ने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया। मुझे गामदेवी सेवाकेन्द्र पर जाने के बाद पता चला कि यह तो दादी की खुद की सेवा की कर्मभूमि है। मेरे जीवन में कोई भी बात आती तो दादी बड़े प्यार से कहती क्रदादी तुम्हारे साथ हैञ्ज और उनके ये बोल सुनकर मैं शक्तिशाली बन जाती। आज भी मुझे यही लगता है कि जैसे दादी कह रही हैं कि ‘मैं तुम्हारे साथ हूँ’। ऐसी महान विभूति आज भी सूक्ष्म में हमारे साथ हैं और रहेंगी। – ब्र.कु. निहा दीदी,उपक्षेत्रीय निदेशिका,गामदेवी,मुम्बई.

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