सही समय को न समझा तो समय आपको मजबूर कर देगा

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हम सभी जिस दौर से गुज़र रहे हैं, जिस लक्ष्य को लिये आगे बढ़ रहे हैं, साथ-साथ जो समय की भी मांग है, क्या हम वैसा ही कर्म कर रहे हैं? क्या हम उसी गति से और उसी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहे हैं? अभी जो समय चल रहा है वो है रिकॉर्ड भरने का, शूटिंग करने का। जब कोई रिकॉर्ड करते हैं तो विशेष तौर पर तीन बातों का अटेंशन रखते हैं, एक तो वातावरण, दूसरा वाणी, तीसरा वृत्ति। जब हद का रिकॉर्ड भरने वाले भी इतना अटेंशन रखते हैं तो हमारा कितना ध्यान रहना चाहिए! हमें तो वातावरण को अपनी अंतर्मुखता की शक्ति से श्रेष्ठ बनाकर बाहर के शोरगुल को कंट्रोल में रखना है। इसी तरह वाणी को भी राजयुक्त और युक्तियुक्त बनाना होगा, तभी उसमें ताकत भरेगी। हमें देखना चाहिए कि जो हम कर्म कर रहे हैं, जो कहने या बोलने या मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें वो खुशबू, वो बल है? इस तरह से हमें अपने आप का चेकर बनना होगा।
जैसे टेप में भी पहले रिकॉर्ड भरकर फिर देखते हैं और सुनते हैं कि देखें कैसा भरा है, ठीक है या नहीं। वैसे ही क्या हम भी साक्षी होकर देखते हैं? अगर देखते हैं तो देखने से क्या लगता है? अपने आप को वो जँचता है कि ठीक भरा है या अपने आप को देखते हुए भी सोचते हैं कि इससे अच्छा भरना चाहिए? रिज़ल्ट तो देखते हैं ना। इसी तरह हम जो पुरूषार्थ कर रहे हैं, जिस गति से आगे बढ़ रहे हैं, जो हमने लक्ष्य रखा है और उस ओर किस पड़ाव तक पहुंचे हैं, इसको चेक करना चाहिए। अगर हम साक्षी होकर इस तरह से चेक करते हैं तब हम फिक्स कर सकते हैं कि हमें और क्या-क्या करना है, रफ्तार को कितना बढ़ाना है। अन्यथा तो हम कोल्हू वाले बैल की तरह वहीं के वहीं होंगे। हमें लगेगा कि हम तो रात भर चले लेकिन सवेरा होने पर हम पायेंगे कि हम तो वहीं के वहीं हैं। एक चीज़, जो चला गया और वापिस नहीं आ सकता, वो है समय।
अभी जो हमारा समय है, उसको अगर हमने महत्व नहीं दिया तो समय हमें मजबूर करेगा। समय एक तरह से प्रकृति है ना, और हम पुरुष हैं। पुरुष ही प्रकृति का रचयिता है। अगर रचना के आधार पर रचयिता चले तो क्या हालत होगी! समय का धक्का लगने से जो चल परे, उसको क्या कहा जायेगा! कई बार हम अपने आप से सोचते हैं, हाँ ठीक है, हो जायेगा, कर लेंगे, समय पर सम्पूर्ण बन जायेंगे। तो ऐसे आलस्य का तकिया लेकर कछुए की चाल चलने वाले का क्या भविष्य होगा! सोच सकते हैं, समझ सकते हैं!
तो अब समय है रिमझिम बरसात का। ये मौसम है मन-इच्छित फल प्राप्त करने का, तपस्या करने का और सिद्धि प्राप्त करने का। तो एकांत में साक्षी होकर अपने आप का चेकर भी बनना है और मेकर भी। मेकर यानि कि उसको प्रैक्टिकल में लाकर बहुत सुंदर रिकॉर्डिंग कर अपने आप को संवारना है, जीवन का सुमधुर गीत भरना है। जब जान गये, संगमयुग में बाबा हमारे साथ-साथ है तो बाबा के साथ रहकर कार्य करना अर्थात् जीवन को सुंदरता से भरते हुए रिकॉर्डिंग करते हुए आगे बढऩा। ठीक है ना। छोड़ दो सब आने वाली वातावरण की अरचनों को, असुरीले संस्कारों को तथा व्यर्थ को। बस, अब तो यही करना है जो बाबा को पसंद है, जो मुझे पसंद है और जो समयोचित पुरुषार्थ की गति को आगे ले जाये।

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