वो जहाँ चाहे, जैसे चाहे ले चले, हमने तो जीवन की नैया उसके हवाले कर दी है। बाबा के सामने हम क्या हैं? हम तो अल्पज्ञ हैं, वो सर्वज्ञ हैं। अल्पज्ञ और सर्वज्ञ में रात-दिन का फर्क है।
मैं हाथ जोडक़र खड़ा रहा शान्त मुद्रा में
इस अलौकिक जीवन में मेरे सामने कई परीक्षायें और परिस्थितियां आयीं। कई लोग मुझे मारने के लिए भी आये, क्या तुम ब्रह्माकुमार हो? मैंने कुछ नहीं कहा, हाथ जोडक़र खड़ा रहा उनके सामने। कुछ नहीं बोला। जब आदमी देखता है कि सामने वाला हाथ जोडक़र खड़ा है, वो क्या कर सकता है? वो कुछ भी समझे ब्रह्माकुमार है या नहीं है। अगर मैं कहूँ कि मैं ब्रह्माकुमार हूँ, तो कहेगा, दिखा, कहाँ है तेरा परमात्मा, हम भी देख लें उसको जैसे प्रहलाद को कहा गया था। इसलिए मैं हाथ जोडक़र खड़ा रहा शान्त मुद्रा में। हम लोगों को ऐसी परिस्थितियों में निर्भय, अभय, अचल और अडोल होकर रहना पड़ता है। मेरे सामने ऐसी परिस्थितियां भी आयी थीं कि जीना या मरना। जैसे ब्लेड के दोनों तरफ धार होती है, वैसे एक तरफ जीवन और दूसरी तरफ मृत्यु। फिर भी बाबा की याद में मैं अचल और निर्भय रहा। होता है, हरेक के जीवन में परिक्षाएं आती हैं लेकिन हमें ईश्वरीय जीवन में, बाबा में, बाबा के कत्र्तव्य में संशय कभी नहीं आना चाहिए। जीवन में डरो नहीं, निडर बन कर रहो, या शरीर नाशवान है, आत्मा अमर है, एक दिन तो यह शरीर छूटना ही है, घबराते क्यों हो? अगर परीक्षायें नहीं आयेंगी तो पक्के कैसे होंगे? ये हमें पकाने के लिए आती हैं।
बस निश्चिंत हो जाओ वो बैठा है
आमतौर पर मैं देखता हूँ कि ऐसी परिस्थितियों में हमारे भाई-बहनें थोड़ा-सा, बहुत थोड़ा-सा हिल जाते हैं। मैं कहता हूँ, हिलना नहीं चाहिए। निश्चय का मतलब यह है कि निश्चय वाला निश्चिंत। निश्चयात्मा विजयन्ती। जो निश्चय वाला होता है, सदा उसकी विजय होती है। यह निश्चय रहना चाहिए। यह मैं सदा अनुभव करता हूँ। मैं कोई परिपूर्ण नहीं हूँ, मैं भी पुरूषार्थी हूँ। ऐसा नहीं है कि जैसे बाबा कहता है वैसा मैं सौ प्रतिशत हूँ। मेरे में भी कमियां हैं। पूरा पुरूषार्थ तो नहीं कर पा रहा हूँ, कोशिश तो कर रहा हूँ, बढ़ता जा रहा हूँ। मुझे बीमार पडऩे से मौका मिला है, कोशिश करता हूँ कि इसका मैं पूरा लाभ लूं। इसलिए यह सोचने की बात नहीं है कि मैं बीमार हूँ। चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। हमें यह सोचना चाहिए कि इस मौके का ज्य़ादा से ज्य़ादा फायदा उठाऊं। आखिर हम और कितने साल जीयेंगे? जितने भी ज्य़ादा साल जिओ लेकिन मनुष्य की इच्छा पूरी नहीं होती।
पुराण में एक कथा आती है, आपने शायद सुनी होगी। एक राजा था, वह बूढ़ा हो गया फिर भी उसकी तृष्णा मिटी नहीं। बेटों को बुलाया और उनसे कहा, बेटे, मैं सारा राज्य तुम लोगों को दे दूंगा, मुझे अपनी जवानी दे दो। सबने कहा कि जवानी देकर बूढ़े हम क्यों बनें तेरी वजह से? तू बूढ़ा हो चुका है तो हम क्यों बूढ़े होंगे? हमें नहीं चाहिए ऐसा राज्य। पिता इतना बूढ़ा होने के बाद भी तृप्त नहीं है। यह विषय वासना, इस संसार की इच्छायें, कामनायें, आकांक्षायें- ये पूर्ण होने वाली नहीं हैं। मैं चाहूँ कि 25 साल और जी लूं तो और कई पुस्तकें लिखूंगा, यज्ञ की और सेवा करूंगा। लेकिन क्या पता यह भी कर पाऊं या नहीं कर पाऊं! इसलिए कल्याणकारी बाप को हाथ दिया हुआ है, वो जैसे चाहे वैसे चलाये। हमें क्या चिन्ता है? वो जहाँ चाहे, जैसे चाहे ले चले, हमने तो जीवन की नैया उसके हवाले कर दी है। बाबा के सामने हम क्या हैं? हम तो अल्पज्ञ हैं, वो सर्वज्ञ हैं। अल्पज्ञ और सर्वज्ञ में रात-दिन का फर्क है। अगर उसके ऊपर नहीं छोड़ेंगे तो कैसे हमारा कल्याण होगा? तू मालिक है, मैं तेरा हूँ, तूझे जो करना है कर ले, सब तेरे हवाले है। बस, निश्चिंत हो जाओ, वो बैठा है।