गणेश बन करें श्री-गणेश

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एक दंत, दयावंत, चार भुजाधारी, हम सबका हितकारी, लम्बोदर, विघ्नहर्ता, शुभाशीष देने वाले, सबकी बात को समा लेने वाले, आंख, नाक, कान, मुँह सबसे शिक्षा देने वाले, सबके मन को जो दिखता है उससे परे दिखाने वाले, विघ्नों का आधार हम स्वयं हैं उसका संज्ञान कराने वाले, मोदक जैसे मिठास को लिए हुए, और माया रूपी चूहे को वश करने वाले, इस धरा से उपराम रहने वाले, हम सबके मनोदशा का प्रतीक गणपति बप्पा हम सबके बीच हर पल, हर क्षण हैं। क्या आप इसको महसूस नहीं करना चाहते…!

घर की शुभ शुरुआत, शुभंकर, शुभ-लाभ, सबकुछ अगर किसी चीज़ से जुड़ा है तो कहते हैं कि गणेश से जुड़ा है। चाहे वो विवाह कार्यक्रम हो या कोई हवन, पूजा, कथा, वार्ता, सबकी शुरुआत गणेश के नाम से ही शुरु होती है। तो ऐसा क्या है इस नाम में जो सब लोग इसके आधार से ही शुभ को जोड़ते हैं। कुछ इसके मनोवैज्ञानिक तथ्यों को देखते हैं जिससे गणेश पूरी तरह से समझ में आयें।
आप अपने जीवन को और जीवन में आने वाली घटनाओं को ध्यान से देखें तो आप पायेंगे कि जीवन में कोई भी घटना या तो आँखों से आती है या तो मुख से आती है या तो कानों से आती है। ये तीन ही मुख्य आधार हैं। इसको अगर आम भाषा में समझें, अगर आपने कुछ आँखों से देख लिया, सही है या गलत है नहीं पता, लेकिन देख लिया तो उसे सही मान लिया। वैसे ही जो कानों से सुना वो सही मान लिया और किसी ने आपको कुछ सुना दिया या बोल दिया उसे सही मान लिया। अब ये तीनों चीज़ें ही गणेश के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती हैं। व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने का भावार्थ यह है कि हमेशा गणेश की आँखों को झुका हुआ दिखाते हैं। माना किसी को ऐसे ही बिना मतलब के नहीं देखना या अनुमान नहीं लगाना। कान बड़े-बड़े दिखाए माना ज्य़ादा सुनना और मुख को बंद दिखाया माना कम बोलना। ये विशेषता कोई गणेश की नहीं है, हम सब मनुष्यों के अंदर ही थी। अब आप देखो, अगर आप ये तीनों काम करते हैं तो आपके घर में कुछ अशुभ होगा? कोई घटना घटेगी? क्योंकि कोई विघ्न या समस्या क्या है? या तो हम गलत बोलते हैं या तो गलत देखते हैं या गलत सुन लेते हैं। उसी पर हमारे संकल्प, विकल्प चलते हैं। हम परेशान होते हैं और उसी बात को लेकर घर में कलह-क्लेष मचाते हैं…नहीं तुमने ये बोला, नहीं तुमने ये देखा, नहीं तुमने ये सुना। वैसे भी किसी मनुष्य के धड़ पर हाथी का सिर तो लग ही नहीं सकता। ये प्रतीकात्मक है और समय से पहले अपने आप को तैयार करने का साधन भी है। इसलिए उनको लम्बोदर भी कहते हैं। लम्बोदर का मतलब है जिसका उदर यानी पेट। जिसके पेट के अंदर सबकी बातें समा जायें। अगर आप सबकी बातों को समाना शुरु कर दें, ज्य़ादा सुनें, कम बोलें तो वैसे ही निर्विघ्न बनते जायेंगे। आपका हर दिन श्री-गणेश होगा, जीवन का हर लम्हा यादगार होगा। ऐसा कोई भी प्रतीक जो आपको दिखाया जाता है वो आपसे कुछ कहना चाहता है। नहीं तो ऐसे व्यक्तित्व को तो आप नहीं देख पायेंगे ना! ये सिर्फ कहने की बात नहीं है, सोचने और समझने की बात है कि कोई भी बच्चा अगर आपके घर में ऐसा पैदा हो तो क्या आपको ये स्वीकार होगा? सोचनीय विषय है ना! ये कोई तर्क नहीं है। ये केवल प्रतीकात्मक है। तो इसलिए आप इसको अपने जीवन में उतारें तो जीवन में श्री-गणेश होगा ही होगा।

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