ब्रह्माकुमारी संस्था, ब्रह्माकुमारी मिशन को कुछ लोग अच्छा बताते हैं। जबकि कुछ लोग इस संस्था पर सवाल भी उठाते हैं। कुछ लोगों का कहना यह है कि सदियों से जो हिंदू वैदिक मार्ग पर चल रहा है, इस संस्था का उद्देश्य उसे भटकाना है। जबकि कुछ लोगों का मानना यह है कि इस कलियुग से सतयुग की और ही ब्रह्माकुमारी संस्था, ब्रह्माकुमारी मिशन लोगों को लेकर जाएगा। अब साधु-संत इस संस्था के बारे में, इस मिशन के बारे में क्या सोचते हैं, आज हम जानेंगे दिव्य शक्ति अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर संत कमल किशोर जी से…
ब्रह्माकुमारी मिशन क्या करता है?
आज पूरी दुनिया को डिप्रेशन से, मानसिक अवसाद से निकालने का कार्य कौन करते हैं? यह ब्रह्माकुमारी आश्रम वाले करतेे हैं। ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियां करते हैं। मानव के मनोबल को ऊंचा उठाने के लिए, उसमें नैतिक साहस भरने के लिए, नैतिकता डालने के लिए, उसका आचरण शुद्ध करने के लिए यह भी अपनी तरह से सेवा कर रहे हैं। यह काम बहुत ऊंचा है और बड़ा भी।
रिपोर्टर:- सबसे पहले तो मैं जानना चाहूंगा कि ब्रह्माकुमारी मिशन आखिर है क्या? और क्या आप भी कभी ब्रह्माकुमारी मिशन में, इनकी संस्थाओं में गए हैं? आपने क्या महसूस किया है?
संत: ब्रह्माकुमारीज़। पहले तो यह जान लें कि ये शब्द ब्रह्मकुमारी नहीं है ब्रह्माकुमारी है। दूसरी चीज़ आपने पूछा कि हम संत होने के नाते क्या कभी वहां पर गए हैं? हम संत होने के नाते बहुत सारे संतों से आमतौर पर मिला करते हैं। वैसे अगर संत लोग एक-दूसरे से ना भी मिलें, तो भी भीतर से एक-दूसरे से हम लोग मिले हुए होते हैं। क्योंकि संतों की सोच एक जैसी होती है। मानवता के भले की सोच होती है। जैसे आपने कहा कलियुग से सतयुग की ओर ले जाने वाली सोच होती है। पाप से पुण्य की ओर ले जाने वाली सोच होती है। क्रोध से प्रेम की ओर ले जाने वाली सोच होती है। यह सोच हर संत की होती है। इसलिए एक-दूसरे के साथ संत आपस में मिले हुए होते हैं। हम ब्रह्माकुमारी आश्रम में गए हैं। जाते रहे हैं। और यहां तक कि इनके हेड क्वार्टर माउण्ट आबू में चार बार जा चुके हैं। और हर बार एक नया अनुभव लेकर आए हैं। इनकी मुख्य प्रशासिका दादी प्रकाशमणि जी से मिले हैं, दादी रतन मोहिनी जी से हम मिले हैं। और बाकी दीदी-दादी से अभी भी हमारी मुलाकात अक्सर होती रहती है। तो बहुत अच्छा लगता है। आपने ब्रह्माकुमारी मिशन क्या है? साथ में आपने ये भी कहा है कि क्या वैदिक धर्म के यह विपरीत चलते हैं?
नहीं। ऐसी बात नहीं है। यह वैदिक धर्म के कहीं भी विपरीत नहीं चलते हैं। समझ-समझ का फर्क है। जैसे एक गिलास हो, गिलास में पानी आधा भरा हुआ हो। एक आदमी कहता है नहीं यह आधा भरा हुआ है। दूसरा कहता है नहीं आधा खाली है। संतों की सोच थोड़ी अलग होती है। संत कहते हैं कि गिलास पूरा का पूरा भरा हुआ है। क्योंकि उनकी सोच सकारात्मक होती है। पूरा का पूरा भरा हुआ गिलास है। क्रक्रआधा पानी से, आधा हवा सेञ्जञ्ज यह सोच होती है। जिन लोगों ने जिस दृष्टि से देखा, अपनी दृष्टि से देखा और उसका अपना अर्थ निकाल दिया। तो वह यह कह सकते हैं कि हां ये वैदिक धर्म के विरूद्ध चलते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। अब मैं आपको एक छोटा-सा उदाहरण देता हूँ, कि ब्रह्माकुमारी आश्रम में यह कहा जाता है कि लोगों की जो धारणा बन गई कि जितने भी वहां पर लोग काम करते हैं, जाते तो पति-पत्नी के तौर पर मान लीजिए कि पति-पत्नी वहां पर गये इनके आश्रम में और वहां भाई-बहन बनके रह जाते हैं। यह भी एक मिसकन्सेप्शन(गलतफहमी) है। जब हम एक प्रजापिता ब्रह्मा जिसने हमें सृजित किया है, बनाया है। भगवान शिव ने बनाया है हमें, वो हमारे परमपिता हैं। उन्होंने हमें बनाया है तो हम आपस में क्या हुए? आत्मिक रूप से क्या हुए? भाई-बहन हुए या नहीं हुए, या भाई-भाई हुए या नहीं हुए। वही तो वे कहते हैं। समझ का फेर है बाकी और कुछ भी नहीं है।