मन की बातें – राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

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प्रश्न : मेरा नाम देविका है। मैं बीएसई सेकेण्ड ईअर की स्टूडेंट हूँ। पिछले कुछ सालों से मैं बाइपोलैरिटी एंड मल्टीपल डिसोसिएट आईडेंटिटी डिसऑर्डर इससे मैं सफर कर रही थी। लेकिन चार साल पहले मैंने ब्रह्माकुमारीज़ का प्रोग्राम देखा तो मुझे चमत्कारिक रूप से उसका रिज़ल्ट मिला। मुझे परमात्मा का अनुभव भी हुआ और राजयोग का अभ्यास करने से मेरी डिजीज 99 प्रतिशत तक ठीक हो गई है। अब मेरी प्रॉब्लम ये है कि सात सालों तक मैंने किसी से भी कम्युनिकेट ठीक से नहीं किया है, इस डिजीज में व्यक्ति पूरी तरह से इन्ट्रोवर्ट हो जाता है और लोगों से बात नहीं करता है। लेकिन अब मुझे लोगों से बात करने में थोड़ी हिचक होती है, क्या किया जाये?
उत्तर : जब कोई भी मनुष्य राजयोग का अच्छा अभ्यास करता है ना, अच्छे कहने का हमारा अर्थ है एकाग्र करके, सच्ची लगन से करता है चाहे वो दस मिनट ही कर ले। चित्त शांत हो जाता है और प्रसन्नता से भर जाता है। और जब मन में ये दो चीज़ें आती हैं शांति और खुशी इन दोनों को मिलाकर परम आनंद की अनुभूति होती है। तो आनंद जो है वो ब्रेन के लिए सबसे बड़ा टॉनिक है। जिस ब्रेन को आंनद के वायब्रेशन दे दिये जायें तो वो ब्रेन तो परफेक्ट हो जाता है। राजयोग से ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसलिए जो भी राजयोग का अभ्यास करते हैं वो इन दोनों चीज़ों को बढ़ायेंगे। अशरीरीपन से डीप साइलेंस और अच्छे विचारों से खुशी। योग में सुन्दर विचार और अशरीरीपन यानी विचारों को शांत करना। तो ये दोनों मिलकर स्थिति बनाते हैं परमआनंद की। और इससे ब्रेन को बहुत जबरदस्त खुशी मिलती है।
न जाने ब्रेन में क्या कमज़ोरी हो गई, निगेटिविटी हो गई, कौन-सी चीज़ें डैमेज हो गर्ईं, सेल डेड हो गये, क्या रचना है इसकी वो तो अच्छे डॉक्टर्स ही जान सकते हैं। लेकिन फिर से सबकुछ ठीक होने लगता है। अब रही बात आपके कम्युनिकेशन की, आपको निश्चय ही ये फील होता होगा कि मैंने लोगों से अच्छा कम्युनिकेट नहीं किया तो लोग भी क्या-क्या सोचते होंगे, पहले तो आप इस संकल्प को समाप्त कर दें कि लोग मेरे बारे में क्या-क्या सोचते होंगे। क्योंकि बीमारी ही ऐसी थी क्योंकि सब लोग जानते हैं मानसिक बीमारी होने से मनुष्य का ऐसा ही हाल होता है। इसलिए लोग कुछ नहीं सोचते। बल्कि उनका एक दया भाव, शुभ भाव रहता है कि ये ठीक हो जायें।
आप अभ्यास करें बहुत अच्छे स्वमान का, दूसरों को आत्मा देखने का, एक पॉजि़टिव एटीट्यूड बना लें कि सब हमारे अपने भाई-बहनें हैं। ये संसार बहुत सुन्दर है। सब आत्मायें सब मनुष्य बहुत ही अच्छे हैं और मैं भी बहुत अच्छी हूँ। स्वयं को ये स्वमान दें कि मैं महान आत्मा हूँ। मैं वही देवी हूँ जिसकी मन्दिरों में पूजा हो रही है। मैं शिव शक्ति हूँ, कमज़ोर नहीं हूँ, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। मैं तो विश्व कल्याणकारी हूँ। अपने दृष्टिकोण को थोड़ा ऊपर उठा दें तो सबसे बात करना इज़ी हो जायेगा। जो हिचक-सी मनुष्य को रहती है ना वो धीरे-धीरे बात करना प्रारम्भ करें। हमारे यहाँ सेवाओं में स्पिरिचुअल एग्ज़ीबिशन्स लगाते हैं जहाँ भी आपके सेवाकेन्द्र की ओर लगाई जाये, उसमें हिस्सा लें और सबको चित्र जो होते हैं उनको एक्सप्लेन करें। इससे आपमें जो हिचक है वो खत्म हो जायेगी, ओपन हो जायेगा सबकुछ। और फिर दूसरों से बात करना आपको इज़ी रहेगा। फिर धीरे-धीरे बात करने से मनुष्य स्वत: ही आगे बढ़ जाता है। सीख लेता है कि किस तरह बात करना है और किस तरह नहीं करना है।
प्रश्न : मेरी लडक़ी जो प्रोफेसर है, शादी के दो साल बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। और एक साल बाद ही उसकी एक मात्र बच्ची की भी मृत्यु हो गई। इससे वो बहुत अकेली हो गई है और बहुत ज्य़ादा अशांत हो गई है। वो अब भगवान का नाम भी नहीं सुनना चाहती। भगवान के नाम से उसे चिड़ हो गई है कि भगवान ने उसके साथ ऐसा क्यों किया! मैं पिछले छह महीने से ब्रह्माकुमारीज़ विश्व विद्यालय से जुड़ी हुई हूँ। कृपया बतायें कि मैं कैसे अपनी बेटी को समझाऊं, उसके चित्त को शांत करूं?
उत्तर : मैं यहाँ अपने सभी दर्शकों को कहूंगा कि भगवान किसी से कुछ भी छीनता नहीं है। वो तो दाता है। और ये हमें जानना चाहिए कि हर मनुष्य के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसके जि़म्मेदार उसके कर्म ही हैं। लेकिन ये बात सुनकर भी बहुत परेशान होने की ज़रूरत नहीं कि मैंने ऐसे क्या पाप किए हैं जो मुझे ये सब भुगतना पड़ा है। मैं संसार में अकेली हो गई हूँ। इसकी भी ज़रूरत नहीं। ज़रूरत ये है कि मैंने ऐसे कर्म किए हैं, मुझे ये बुरे दिन देखने पड़े। अपने कर्मों को स्वीकार करके अब ये सोचेंगे कि अब इन दिनों को मुझे कैसे व्यतीत करना है। उनके लिए ये बहुत अच्छी बात है कि वे राजयोग के मार्ग पर आ जायें। भगवान को गाली देने से तो कुछ होगा भी नहीं। क्योंकि जैसा मैंने कहा कि वो तो सुखों का दाता है। अभी तो उनके लिए ये ज़रूरी है कि वे अपने चित्त को शांत करें। क्योंकि जो हो गया वो तो हो गया। पति भी वापस नहीं आ सकता, और बच्ची भी वापस नहीं आ सकती। अगर भगवान साक्षात्कार करा दे उनको कि ऐसा तुम्हारे साथ क्यों हुआ, जैसे धृतराष्ट्र ने पूछा श्री कृष्ण से कि वासुदेव मेरे सौ पुत्र मारे गये, मैंने ऐसा क्या किया था? क्या पाप किया था् तो उसे दिव्य दृष्टि देकर साक्षात्कार करा दिया कि पिछले जन्म में तुमने ये किया था। सौ पक्षी पेड़ पर रहते थे तुम्हारे घर के आंगन में, तुमने एकसाथ सबको मार दिया था। तुम्हें वहां श्राप मिल गया था, मेरे सौ पुत्र मारे हैं तुम्हारे भी सौ पुत्र मरेंगे। तो उसका चित्त ये बात सुनकर शांत हो गया कि मेरी करनी का फल मुझे मिल गया है। लेकिन सभी को साक्षात्कार तो होते नहीं। ईश्वरीय ज्ञान मार्ग ही उनके लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। उसपर वे चलें और अपने चित्त को शांत करें। क्योंकि उनकी लाइफ की एक लम्बी यात्रा है। अभी वे सम्भलें और अपने को पॉजि़टिव करें। और अपना एक मार्ग चुनें चाहे रिमैरिज की बात हो, चाहे ज्ञान-योग के मार्ग पर चलकर अपने मन को खुशी से भरें, शांति से भरें। और अपने भविष्य को बहुत सुन्दर बनायें।
इसमें आपको अपनी बेटी को योगदान देना है। पहले तो योग करें आप सवेरे उठकर कि सर्वशक्तिवान से शक्तियों के वायब्रेशन्स मुझे आ रहे हैं। और फिर अभ्यास करें कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। फिर जब आपकी बेटी सोई हुई हो तो आप दस मिनट उसको पॉवरफुल वायब्रेशन्स दें कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, मुझसे शक्तियों की किरणें निकल कर उसे जा रही हैं। संकल्पों को रिपीट करते रहें और किरणों को जाते हुए देखते रहें। फिर उसे आत्मा देखकर उससे बात करें मन से और ये बात करें कि तुम बहुत अच्छी आत्मा हो, तुम तो देव कुल की आत्मा हो। जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ अब उसे स्वीकार कर लो क्योंकि ये हो गया है। अब तुम्हें आगे बढऩा है। भगवान तुम्हें बहुत प्यार करता है। वो तुम्हारा सच्चा हितैषी है। वो परमपिता है। पिता अपने बच्चों को कष्ट नहीं दिया करता। ये जो कुछ हुआ ये किसी कर्मों का प्रभाव रहा होगा। इसे तो भूलना ही पड़ेगा। अब तुम्हें अपना जीवन बहुत सुन्दर बनाना है। अब इस दुविधा से, इस निगेटिविटी से, इस उदासीनता से बाहर आ जाओ। तुम बहुत अच्छी हो, तुम बहुत अच्छी हो। तो ये गुड वायब्रेशन्स 21 दिन तक करना है।

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