नट जब रस्सी पर चलता है, नीचे खड़े लोग बहुत शोर मचाते हैं, वंस मोर, वंस मोर करते हैं। कोई उसकी तस्वीर खींचता है, कोई उसको उकसाता है और कोई उसकी करामात को बिगाडऩे की कोशिश करता है। फिर भी वो एक रस्सी पर चलते हुए, मुस्कुराते हुए अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ता हुआ कामयाबी को छू लेता है। अगर थोड़ा-भी उसका ध्यान इन सब चीज़ों पर गया तो वो अपने लक्ष्य से भटक जायेगा और असफल हो जायेगा। सब कुछ आस-पास होते हुए भी वो अपना ध्यान अपने संतुलन से हटाता नहीं है, इसीलिए वो कामयाब हो जाता है।
ठीक इसी तरह राजयोगी भी इस संसार में रहते हुए, कार्यव्यवहार में आते अपने सामाजिक, पारिवारिक उत्तरदायित्वों को निभाते हैं, पर उनका ध्यान नट की तरह अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रहता है। राजयोगी अपने सारे कारोबार को करते हुए भी अपना ध्यान परमात्मा पर टिका कर रखते हैं। उनके दिये हुए निर्देश और उनसे होने वाली प्राप्तियों के प्रति सम्पूर्ण ज्ञान उनके ज़हन में होता है। वो ये भलिभांति जानते हैं कि ये समय बहुत ही वैल्यूबल है। इसे यूं ही व्यर्थ नहीं गंवाना। दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हुए भी उनकी बुद्धि की तार परमात्मा से जुड़ी रहती है। वे अच्छी तरह वाकिफ रहते हैं कि मुझे इस समय को झरमुई-झगमुई की बातों में नहीं गंवाना है।
ज्ञान उनकी बुद्धि में ऐसे टपकता रहता है जैसे कि मंदिर में शिवलिंग पर जल की बूंदें, उससे वो अपने मन में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करता है। इस अतीन्द्रिय सुख के रस के सामने बाकी सब रस उन्हें फीके लगते हैं। परमात्म प्रेम में वे इतने ओत-प्रोत हैं जो दूसरे सब निरर्थक लगते हैं। इसी एकाग्रता के कारण वे मन और बुद्धि को साफ और स्वच्छ बनाकर सुख के झूले में झूलते हैं। कैसी भी परिस्थितियां आएं, कैसी भी मुश्किलातें हों, कैसी भी कठिनाई हो, पर वे एकरस की तल्लीन अवस्था को बनाए रखते हैं। अपने परिवार में भले ही अलग-अलग सदस्य के अपने-अपने विचार हैं, अलग-अलग सोच है, अलग-अलग कार्य करने के तरीके हैं, फिर भी वे उनसे घृणा या नफरत नहीं रखते। वे समझते हैं कि हरेक का पार्ट अपना-अपना है। वे अपना रोल अदा कर रहे हैं। जो स्क्रिप्ट जिसके लिए लिखी हुई है, वे यही तो कर रहे हैं। ये ज्ञान उनकी बुद्धि में स्पष्ट रहता है। समाज में, वातावरण में कई घटनायें हो रही हैं, शोर मचा हुआ है, परंतु वे नट की तरह अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते ही जाते हैं। आज देखें, घर में ही व घर से बाहर निकलते ही जैसे कि वातावरण इतना अशांत व असुरिक्षत है जो अपने मन को स्थिर करने में जद्दोजहद करनी पड़ती है। ऐसे वातावरण में राजयोगी जो राजयोग का अभ्यास दिल से करते हैं, कैसी भी परिस्थिति में बाबा(परमात्मा) के दिल का प्यार उन्हें हिम्मत देता है और बैक बोन की तरह उन्हें आगे बढऩे का हौसला देता रहता है। वे तो बस इसी तरह से आगे बढ़ते जैसे मस्त चाल में चलता हाथी, भले ही कुत्ते भौंकते रहें या सब शोर मचाते रहें।
परमात्मा का कहना है कि अभी हमें वो सब कुछ प्राप्त कर लेना है जो दिल में ये कसक न रह जाये कि परमात्मा के मिलने के बाद भी मैं आत्मा अतृप्त रह गई। पाने का कुछ बाकी रह गया। इच्छायें अधूरी रह गईं। मैं आत्मा असंतुष्ट ही रही। तो हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमारे जीवन के सर्व बोझ स्वयं परमात्मा ने हर लिये हैं और उन्हों का कहना है कि बच्चे, जन्म-जन्म तुम बोझ ढ़ोते आये, अब सारा बोझ मुझे दे दो। मैं आपका पिता हूँ, इसी सम्बंध का लाभ उठाओ और आप बेफिक्र हो जाओ।
ये श्रावण मास दान-पुण्य करने का मास है। और ऊपर से बरसात की रिमझिम की भी सीज़न है। ऐसी भीगी-भीगी, सुगंधित हवाओं में हमें अपने मन को एकाग्र कर मनइच्छित फल प्राप्त कर लेना है। जहाँ परमात्मा का साथ हो, ऐसा सुंदर वातावरण हो, उसका लाभ उठाकर एकाग्रता की गुफा में बैठ अपने अंदर कोने-कोने में कमी-कमज़ोरी के छिपे हुए सूक्ष्म किटाणुओं को भी नष्ट करते हुए सम्पूर्णता की ओर तीव्रता से आगे बढऩा है। याद रहे, आज का दिन कल नहीं लौटता। उसी तरह आज जो करना है, इसी वक्त करना है। टाल-मटोल का तकिया लेकर सुस्त नहीं हो जाना है। चुस्त और चौकन्ना रहकर परमात्म वरदानों से अपनी झोली भर लेनी है।