वैजयन्ती माला में आने की युक्ति

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सभी आत्मायें सतयुग से लेकर कलियुग अंत तक इस विश्व के ड्रामा में हीरो एक्टर रहती हैं। धर्म के क्षेत्र में, राज्य के क्षेत्र में बाबा ने साफ कर दिया था। तुम्हारी राजाई त्रेतायुग में समाप्त नहीं हो जाती, कि प्रालब्ध पूरी हो गई। ये द्वापर से भी चलती रहती है।

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि किसी व्यक्ति में सहनशीलता तो होती है लेकिन 60 प्रतिशत होती है। किसी में 80 प्रतिशत होती है। तो जो विजयी रत्न होंगे उनमें भी वो सद्गुण ज्य़ादा होंगे।
एक दूसरा रहस्य सभी को मालूम रहे कि ये जो शिवबाबा के चुने हुए 108 रत्न हैं, दोनों को सभी ने समझ लिया 8 और 100 ये आत्मायें इस भारत में खास जहाँ-तहाँ हैं। एक जगह नहीं विदेशों में भी थोड़ी-थोड़ी हैं। इनका क्या इफेक्ट होगा, जब बहुत ज्य़ादा विनाशकाल होगा, जब जल भी बहुत तूफान करेगा, पाँचों तत्व भी फुल फोर्स से अटैक करेंगे, धरती भी बहुत तूफान करेगी, अर्थ क्वेक्स होंगे, उसमें आपदायें आयेंगी। अग्नि भी जलाकर नष्ट करने लगेगी। उस टाइम जहाँ ये एक-एक महान आत्मा होगी इनके वायब्रेशन्स से आस-पास के अनेक लोग सहारा अनुभव करेंगे, सुरक्षित हो जायेंगे और देह तो सभी को छोडऩा ही है। सहज देह छोड़ेंगे। तो बहुत सारी आत्मायें इनसे जुड़ी होंगी। ऐसे ही एक-एक अष्ट रत्न से भी, कई-कई विजयी रत्न भी जुड़े रहते हैं। ये सभी आत्मायें सतयुग से लेकर कलियुग अंत तक इस विश्व के ड्रामा में हीरो एक्टर रहती हैं। धर्म के क्षेत्र में, राज्य के क्षेत्र में बाबा ने साफ कर दिया था। तुम्हारी राजाई त्रेतायुग में समाप्त नहीं हो जाती, कि प्रालब्ध पूरी हो गई। ये द्वापर से भी चलती रहती है। देखो द्वापर में इतिहास इस बात को दर्शाता है कि भारत जब बहुत बड़ा था, पाँच भागों में बंटा रहता था। तो पाँचों में से हरेक का कभी मगध का राजा होता था, उसको सम्राट की उपाधि दी जाती थी। अनेकों को महाराजाधिराज की उपाधि दी जाती थी। बड़े-बड़े राज होते थे सबके पास। एक तो करना बहुत मुश्किल होता था क्योंकि घोड़ों पर चलना होता था, रथों पर चलना होता था। इतने लम्बे-चौड़े राज को सम्भालना भी कोई सहज काम नहीं होता। तो राजाई चलती आती है।
इन 108 रत्नों में पहली 25 आत्मायें बहुत महान होती हैं। बहुत महान चमकते हुए सितारे, उनका इस सृष्टि चक्र में बहुत अधिक महत्व है। वो भी अनेकों के सहारे बन जाते हैं। उनकी उपस्थिति सेवाओं को भी बढ़ा रही है। क्योंकि सेवाओं की वृद्धि प्युरिटी व ज्ञान की गुह्यता के आधार पर, पालना के आधार पर, जिसने जितने अच्छे वायब्रेशन्स अपने यहाँ बनाये हैं ये सब आधारों से सेवा की वृद्धि होती रहती है। मैं तो साक्षी होकर देखता रहता हूँ जहाँ एक भी विजयी रत्न है, जिसको वहाँ के लोग नहीं जानते। वहाँ सेवा तेजी से बढ़ रही है। लेकिन वो अभी गुप्त रूप से हैं। समय आने पर बाबा उन्हें प्रत्यक्ष करेगा, उनके द्वारा साक्षात्कार करायेगा। तो ये बहुत सुन्दर कार्य चल रहा है। हम सभी को पुरूषार्थ करना है कि माया पर ज़रूर विजयी बनें। विजयी रत्न माना माया पर सम्पूर्ण विजयी। काम वासना पर सम्पूर्ण विजयी, क्रोध पर विजयी, लोभ पर, मोह पूरी तरह समाप्त, अहम तेरा-मेरा ये पूरी तरह समाप्त, इन पाँचों विकारों को छोडऩा जिस पर हम आगे चर्चा करते रहेंगे ये सूक्ष्म साधना की बात है। इसमें योग का बल भी बहुत चाहिए, इसमें ज्ञान का बल भी बहुत चाहिए, मनुष्य का मनोबल भी बहुत चाहिए तो इस कार्य में इन सभी चीज़ों में आगे बढ़ते चलें, जिनको भी विजयी रत्न बनना हो। सभी विकारों पर सम्पूर्ण विजय और विजयी रत्नों को कम से कम आठ घंटा डेली योगयुक्त जीवन तो बिताना ही होगा। और ये बैठकर नहीं करना है।
एक दो घंटा आप बैठेंगे बाकी कर्म करते हुए योगयुक्त जीवन बनायेंगे। ज्ञान चिंतन बहुत अच्छा होगा। तेरे-मेरे के लफड़ों में, टकराव में, झंझटों में ये आत्मायें नहीं रहेंगी। ऐसा पुरूषार्थ जो करेंगे वो विजय माला में आ जायेंगे। बाबा स्वयं अपनी शक्तियां देकर उन्हें तैयार कर रहा है। मन में उमंग तो है ही पर ईश्वरीय शक्तियां भी उनके साथ जुड़ी हुई हैं और ये कार्य आगे बढ़ रहा है और जल्द ही ये सब आत्मायें प्रख्यात हो जायेंगी।

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