आबू रोड, राजस्थान। राजयोगी ब्र.कु. निर्वैर भाई जी, एक ऐसा अमूल्य हीरा जिसे स्वयं पिताश्री ब्रह्मा बाबा ने अपने हाथों से तराशा। एक ऐसा अलौकिक नाम जो हरेक ब्रह्मावत्स की ज़ुबान पर आते ही हृदय में मिठास भर देता। एक ऐसा चुंबकीय व्यक्तित्व जो पहली ही मुलाकात में सबके दिलों पर अमिट छाप छोड़ देता। 20 नवंबर 1938 के दिन पंजाब में होशियारपुर जिले के छोटे से गांव गुरदासपुर में जन्म लेने वाले एक नन्हें से बालक निर्वैर सिंह को देखकर शायद ही किसी को अंदाज़ा हुआ होगा कि एक दिन यह अध्यात्म की ऊँचाइयों को छूकर मानवता की सच्ची सेवा का आधार स्तम्भ बनेगा।
नाम मिला निर्वैर… अध्यात्म में रही रुचि
इनका लौकिक जन्म अकाली घर में हुआ पंजाब में, और नाम मिला निर्वैर। ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आने के बाद जब इन्होंने ये रियलाइज़ किया कि मुझे तो बचपन से ही नाम ऐसा मिला हुआ है कि किसी से वैर ही नहीं है। बस… सबसे प्यार है।
बचपन से ही स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, महात्मा गांधी, डॉ. राधाकृष्णन की किताबें पढऩे वाले ब्र.कु. निर्वैर भाई जी का नाम आज विश्व की महानतम आध्यात्मिक विभूतियों में लिया जाता है। आप ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउण्ट आबू में बतौर जनरल सेक्रेट्री अपनी सेवायें दे रहे थे।
आपने 13 साल की उम्र से ही आध्यात्मिक
पुस्तकें पढऩी शुरु की। विवेकानंद की किताबों के अनुसार आप मेडिटेशन की प्रैक्टिस भी करते थे।
ज़हन में मानव सेवा का भाव रहा
एंग्लो संस्कृत हाई स्कूल मुकेरियां में मैट्रिक करने के पश्चात् आपने डीएवी कॉलेज होशियारपुर से उच्च शिक्षा प्रारंभ की। लेकिन आपका मन तो सेना में जाकर देश की सेवा करने का था। आपका ये सपना पूरा हुआ 20 सितम्बर 1954 को। जब आपने भारतीय नौसेना जॉइन की। वहां दिसम्बर 1958 तक इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ट्रेनिंग पूरी करने के पश्चात् आपने युद्धपोत आईएनएस राजपूत में बड़ी लगन के साथ अपना कार्य प्रारंभ किया। 1961 में आपने गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन विजय में भी हिस्सा लिया।
मेडिटेशन की इच्छा ने कराया परमात्मा का सत्य परिचय
उसी दौरान मुम्बई में सन् 1959 के आरंभ में मेडिटेशन सीखने की इच्छा से आपने एक दोस्त के साथ ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय के कोलाबा सेवाकेंद्र पर जाना शुरु किया। वहां पर आप आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित हुए और अनेकों रूहानी अनुभवों से आपको निश्चय हो गया कि स्वयं निराकार परमात्मा शिव ब्रह्मा बाबा को माध्यम बनाकर सत्य ज्ञान दे रहे हैं। जो चीज़ आप बचपन से ढूंढ़ रहे थे, वो वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान आपको वहां प्राप्त हुआ।
मिला बाबा का पत्र
जल्द ही आपका माउण्ट आबू में ब्रह्मा बाबा के साथ पत्र-व्यवहार शुरु हो गया। तब बाबा ने आपके पहले पत्र का जवाब कुछ यंू दिया था…
”नूरे रतन निर्वैर शेर प्रति याद प्यार। पत्र बच्चे का पाया, हर्ष आया। अब जब बेहद के बाप को पहचाना है, तो उनसे सौ प्रतिशत पवित्रता, सुख और शांति सम्पन्न ईश्वरीय जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त करना है 21 जन्म के लिए। एक दिन बाप और बच्चे अवश्य सम्मुख मिलेंगे। और याद प्यार अपने दोस्तों को देना।”
प्रथम मुलाकात जीवन को बदलने वाली
छ: मास पत्र-व्यवहार के बाद ही 13 जुलाई 1959 के दिन ब्रह्मा बाबा के द्वारा शिव परमात्मा से सम्मुख मिलन मनाने के लिए आपका माउण्ट आबू आना हुआ। आपकी बाबा से प्रथम मुलाकात जीवन को पलटाने वाली थी। उस वक्त दृष्टि लेते हुए बाबा के मस्तिष्क से शिव परमात्मा के ज्योति स्वरूप को आपने स्पष्ट देखा और आपको बेहद अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति हुई। उसी समय आपने दिल ही दिल में बाबा से कहा कि आज से ये मेरा जीवन पूरी तरह आपकी सेवा के लिए रहेगा।
आध्यात्मिक सेवा करने की ब्रह्मा बाबा से मिली ट्रेनिंग
अक्टूबर 1959 से मार्च 1960 तक आपको ब्रह्मा बाबा से मुम्बई प्रवास के दौरान आध्यात्मिक सेवा करने की ट्रेनिंग मिली। बाबा के आदेश पर उसी वर्ष शिवरात्रि के मौके पर आपने सोमनाथ मंदिर में जाकर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी मुलाकात की तथा बाबा द्वारा दी गई सच्ची गीता की पुस्तक और प्रसाद उन्हें भेंट की। साथ ही वहां आध्यात्मिक प्रदर्शनी भी लगाकर सभी को ईश्वरीय ज्ञान से परिचित कराया।
1963 में 25 साल की उम्र में आपने इंडियन नेवी के उज्वल करियर का त्याग कर सेवानिवृत्ति ले ली और प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में ईश्वरीय सेवा के महान कार्य में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
दादी ने मुख्यालय माउण्ट आबू में सेवा की जिम्मेवारी दी
जनवरी 1969 को ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के कुछ वक्त बाद ही तत्कालीन मुख्य प्रशासिका दादी प्रकाशमणि जी ने आपको मुख्यालय में ऑफिस को सम्भालने की जि़म्मेवारी दी। जिस कारण आप 7 मई 1970 को मुम्बई से माउण्ट आबू स्थानांतरित हो गए।
1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ में संस्था का किया प्रतिनिधित्व
1982 में आपने संयुक्त राष्ट्र संघ में संस्था का प्रतिनिधित्व किया और यूएनओ के जनरल सेक्रेट्री से भी मुलाकात की और उन्हें संस्था के विश्वव्यापी सेवाओं से अवगत कराया। उस दौरान आपने दो महीने तक उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका और यूरोपीय देशों में हज़ारों लोगों की आध्यात्मिक सेवा की।
माउण्ट आबू में आपके निर्देशन में 1983 से हर साल विश्व शांति सम्मेलन और बाद में विभिन्न वर्गों के महासम्मेलन आयोजित होने लगे। जिनमें देश-विदेश की अनेक प्रमुख नामचीन हस्तियां शामिल होने लगीं।
बढ़ती सेवाओं में आपकी अहम भूमिका रही
जिस रफ्तार से संस्थान के जनकल्याण की सेवाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थीं, वैसे ही मुख्यालय माउण्ट आबू में आने वाले मेहमानों की तादाद भी हर साल बढ़ती जा रही थी। आने वाले मेहमानों को ठहरने का अच्छे से अच्छा प्रबंध देने के लिए नित नये आवासीय परिसर विकसित करने में आपने अहम भूमिका निभाई। माउण्ट आबू में ज्ञान सरोवर और शांतिवन, गुरुग्राम के पास ओम शांति रिट्रीट सेंटर और हैदराबाद में शांति सरोवर जैसे अति सुंदर और विहंग परिसर आपने अपनी देखरेख में बनवाये।
आपके नेतृत्व में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार
1991 में आप माउण्ट आबू में ग्लोबल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के निर्माण के निमित्त बने। और तब से लेकर आप ग्लोबल हॉस्पिटल के मैनेजिंग ट्रस्टी की जि़म्मेवारी बखूबी निभा रहे थे। बाद में आपके मार्गदर्शन में ट्रॉमा सेंटर, आई हॉस्पिटल, नर्सिंग कॉलेज इत्यादि भी उसमें शामिल होते गए।
सदा सेवा में कुछ नया करते जाना, यही आपका मंत्र रहा
‘जब तक सतयुग की स्थापना नहीं हो जाती, तब तक आराम नहीं करना है’, बाबा के ये महावाक्य सदा आपको उमंग-उत्साह से भरपूर रखते। साइलेंस में रहकर परमात्मा का ध्यान लगाना आपको सर्वोप्रिय था। आपको ईश्वरीय सेवाओं की योजनाएं बनाने का वरदान और महारत प्राप्त थी। सदा सेवा में कुछ नया करते जाना है, यही आपका मंत्र था।
राजयोगी ब्र.कु. निर्वैर भाई जी, रूहानी बगिया के एक ऐसे चेतन फूल थे जिनके दिव्यगुणों की खुशबू से सारा आलम महक जाता। आपका तपस्वी और सेवामयी जीवन, ऊँची सोच रखने और सबको साथ लेकर ईश्वरीय कार्य में अपने गुणों व शक्तियों से सहयोगी बनने की प्रेरणा सदा देता रहेगा।
ऐसे महान तपस्वी राजयोगी ब्र.कु. निर्वैर भाई जी के अव्यक्तारोहण पर हम उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।