शुद्घ वृत्ति ही हमारी श्रेष्ठ कृत्ति का आधार बनती है…

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कोई हमारा बहुत सहयोगी है, वह मेरे सामने आयेगा तो मेरी उसके प्रति दृष्टि ऑटोमेटिकली प्यार की जायेगी और उसकी चाल-चलन, सम्बन्ध -संपर्क सब अच्छा लगेगा।

कई ऐसे होते हैं जो कोई बड़ा प्रोग्राम करने के बाद थोड़ा थक जाते हैं। मन भी थक जाता है, तन भी थक जाता है तो धन भी खत्म हो जाता है। फिर सोचते हैं कि हमारी पॉवर कम हो गई, सेवा तो की लेकिन पॉवर कम हो गई। क्यों पॉवर कम हो गई? क्योंकि उस समय बुद्धि इतनी बिज़ी थी कि उसमें कर्म कॉन्शियस हो गई। उसमें बाबा की आज्ञाएं भी भूल जाते हैं। फिर सेवा में जब एक-दो में सम्पर्क-सम्बन्ध बढ़ता है तो जो 63जन्मों से बुराई देखने की आदत है, वह फिर इमर्ज हो जाती है। लेकिन बाबा ने कहा है वह देखो ही नहीं। सी नो इविल, टॉक नो इविल… यह स्लोगन याद रखो। हमारी वृत्ति में कभी अशुभ भावना, अशुभ कामना आवे ही नहीं। तो देखो आपकी अवस्था बहुत अच्छी रहेगी।
जैसे चन्द्रमणि दादी, उनकी विशेषता क्या रही? वह न्यारी रहती थी, कितना भी कोई किसी की ग्लानि करके जावे तो भी दादी उसे उसी दृष्टि से नहीं देखेगी। तो देखो कितना सबके दिलों में छाप लगा दी। तो हम सबको भी शरीर तो एक ना एक दिन छोडऩा ही है। हम जायेंगे तो हमारी क्या महिमा करेंगे? ऐसे तैयार हैं? सब कहें वाह! फलानी तो बहुत अच्छी थी, मेरे प्रति तो सदैव प्यार रखा या एक कहेगी बहुत अच्छी और दूसरी कहेगी नहीं मेरे से तो अच्छी नहीं थी। यह सर्टिफिकेट नहीं मिले ना। इसीलिए अपनी वृत्ति को चेक करो। अगर वृत्ति हमारी ठीक है तो बाप समान बनना

बहुत सहज है। शिवबाबा के लिए हमेशा महिमा में कहा जाता है- न्यारा और प्यारा। सिर्फ प्यारा नहीं है न्यारा भी इतना है, प्यारा भी इतना है, इसीलिए शिवबाबा सबको प्यारा लगता है। अगर किसको प्यार ज्य़ादा करे, किसके प्रति शुभ भावना रखे, किसके प्रति नहीं रखे तो सभी प्यार नहीं करेंगे। लेकिन बाबा विश्व का प्यारा है। क्योंकि न्यारा भी इतना है तो प्यारा भी इतना है। तो हम लोगों का भी इस पर विशेष अटेन्शन हो। किसी के प्रति भी अपनी सब्कॉन्शियस में भी थोड़ा कुछ भरा हुआ न हो।
सेवा तो हमें करनी ही है, सबके सम्बन्ध-सम्पर्क में आना ही है। किनारा नहीं करना है, किनारा हम कर नहीं सकतेे हैं। ब्रह्मा बाबा को देखो व्यक्त से अव्यक्त बने फिर भी किनारा किया? वतन से भी बाबा हम बच्चों को देखता रहता है, अनुभव कराता रहता है। किनारा किया क्या? तो हम कैसे किनारा कर सकते हैं! तो यही एक प्वाइंट बुद्धि में रखते हुए अपनी वृत्ति को शुद्ध कर लो। अगर वृत्ति हमारी शुभ हो गई तो दृष्टि, सृष्टि, कृति यानी प्रैक्टिकल लाइफ – यह सब ठीक हो जायेंगे। एक-एक को अलग नहीं करो। आज दृष्टि को ठीक करूं, फिर वृत्ति को ठीक करूं, फिर सृष्टि को ठीक करूं… ऐसे एक-एक में इतना समय लगायेंगे तो संगम इसी में बीत जायेगा। इसीलिए एक फाउण्डेशन है वृत्ति। वृत्ति जैसी भी होगी वैसी हमारी दृष्टि होगी। कोई हमारा बहुत सहयोगी है, वह मेरे सामने आयेगा तो मेरी उसके प्रति दृष्टि ऑटोमेटिकली प्यार की जायेगी और उसकी चाल-चलन, सम्बन्ध-सम्पर्क सब अच्छा लगेगा। तो वृत्ति के ऊपर बाबा हम सबका विशेष अटेन्शन खिंचवा रहे हैं। वृत्ति से हम सेवा भी कर सकते हैं, वायुमण्डल बना सकते हैं और अपनी अवस्था भी अच्छी रख सकते हैं। इसमें डबल फायदा है। सेवा की सेवा और साथ-साथ स्व परिवर्तन। तो वृत्ति को शुभ, श्रेष्ठ बनाओ।

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