हमें वो करना है जो हमारे और दूसरों के लिए सही है
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि अगर घर के सारे लोग उस बात के बारे में सोचना बंद करते हैं तो उसके साथ हुआ जो कुछ धीरे-धीरे वो भी भूल जायेगा। बोलना भी बंद करना है, साथ-साथ सोचना भी बंद करना है। अभी उस बात पर फुल स्टॉप लगाओ, उस टॉपिक पर बात नहीं करो। बहुत हो चुका। प्रॉब्लम को छोड़ सॉल्यूशन की तरफ चलें।
अब ये होना चाहिए कि अब मेरी थॉट किस डायरेक्शन में चलनी चाहिए। इसको कहेंगे समाधान की तरफ चलना। समस्या के बारे में… ज्य़ादातर हमारी बातचीत किसके बारे में होती है? और जो समाधान है, कोई भी समस्या का समाधान बाहर नहीं होता है पहले। इसलिए समाधान को बाहर नहीं ढूंढना। आप ये करोगे तो ठीक हो जायेगा, आप ये बोलोगे तो ठीक हो जायेगा। आप उनको जाकर ये कहो। कुछ नहीं ठीक होगा क्योंकि अभी अन्दर पहले ठीक नहीं किया है, और जब तक अन्दर नहीं ठीक किया तो आप बाहर कितना भी कोशिश करो ठीक करने का, एनर्जी कौन-सी जा रही है? तो कोई भी प्रॉब्लम में पहला स्टैप सॉल्यूशन।
मुझे अपनी सोच को इस टाइम चेक करना है। अगर बेटी घर आकर बोल रही है कि ये-ये इन्होंने किया, ऐसा-ऐसा हुआ लेकिन वो भी उनके बारे में कैसा सोच रही है अभी? वो रिश्ता नहीं जुड़ सकता। ठीक है उन्होंने ऐसा किया, बस अभी समझ में आ गया कि उन्होंने क्या किया। बहुत ज्य़ादा नहीं एक्सप्लेनेशन चाहिए। अब क्या करना है? लेकिन जो दर्द में आता है ना ये रिस्की बहुत है। जो दर्द में आता है ना वो क्या चाहता है कि वो सबको अपना दर्द सुनाये। दर्द बांटना नहीं कभी किसी का भी। हम ये शब्द यूज़ क्यों करें? हम अपना दर्द बांटें, बांटें मतलब? मेरा हाफ आप ले लो। आप मेरा दर्द बांटों इससे मैं क्यों न आपकी स्टेेबिलिटी बांट लूं। दर्द बांट रहे हैं बैठ के सारा दिन। इसलिए अगर कोई भी अपनी वो बातें आके सुनाता जाये, सुनाता जाये उसको पाँच-दस मिनट से ज्य़ादा नहीं देना सुनाने के लिए। क्योंकि बातें वो ही होती हैं सारी। फिर वो आये, फिर उन्होंने ये कहा, फिर वो बैठे, फिर उसने ऐसा बोला… और कुछ नहीं निकलेगा उसमें से, आप गोल-गोल घूमते जायेंगे। और फाइनली वो सारा सुनने के बाद आप कहते हैं ओके। अब, अब क्या सोचना है? ये आप चूज़ करेंगे कि कितनी देर वो कन्वर्सेशन सुननी है।
जो अपना दर्द सुनाने आता है मालूम है वो क्यों सुनाता है? क्यों लोग सुनाते हैं अपनी प्रॉब्लम औरों को? क्योंकि वे अप्रूवल चाहते हैं कि हाँ बच्चे मुझे समझ में आ गया कि तेरे सास-ससुर तो सच में बहुत खराब हैं। हैं ना? देखो मैं बोल रही थी ना कि वे ऐसे हैं। उस समय हमने उस बच्चे का नुकसान कर दिया। हमारे सामने जैसे भाई-बहनें आते हैं ना अपनी प्रॉब्लम लेकर तो वे सिर्फअप्रूवल चाहते हैं। हाँ-हाँ आपके साथ ऐसा हुआ, उनके साथ ऐसा करना चाहिए, क्योंकि वे कहते हैं कि कोई सॉल्यूशन दो ना मेरे हस्बैंड कैसे चेंज हों, कोई सॉल्यूशन दो ना मेरा फलां, फलां कैसे चेंज हो। अगर फलां-फलां को चेंज करना है तो फिर उनको लेकर आना था। उनको तो लेकर नहीं आते, मेरे को सॉल्यूशन दे दो ताकि वो चेंज हो जाये। अब स्पिरिचुअलिटी तो यही सॉल्यूशन देगा कि उनको तो चेंज करना नहीं है।
तो फिर हम उनसे बात करते हैं कि क्या आप जानते हैं कि आपको ऐसा-ऐसा चेंज करना है? वे हमें पसंद नहीं करते। कहते कि आप कैसे लोग हो, प्रॉब्लम मुझे हो रही है, तंग वो कर रहे हैं, और आप कहते हैं कि मुझे चेंज करना होगा, रॉन्ग। आप सही व्यक्ति नहीं हैं। क्योंकि उस समय वो किसलिए आए थे, सिर्फ अप्रूवल। हरेक जो दर्द में है उसको सिर्फ और सिर्फ अप्रूवल चाहिए कि मेरा दर्द जस्टिफाइड है। अगर आप उनके शुभचिंतक हैं तो चाहे बात कितनी भी बड़ी हो, बात जस्टिफाइड है, आपका दर्द जस्टिफाइड नहीं है। तो कभी भी उनके दर्द को जस्टिफाइ नहीं करना। क्योंकि जैसे ही आपने किसी के दर्द को जस्टिफाइ कर दिया, उसको अप्रूव कर दिया अब वो बिल्कुल कोशिश नहीं करेगा उससे बाहर निकलने का। क्योंकि उसे पब्लिक अप्रूवल मिल चुका है कि मैं सही हूँ। अगर हम उनके फैमिली हैं तो हमारा रोल है कि हाँ-हाँ ठीक है उन्होंने किया लेकिन आपको उनके बारे में अब कैसा सोचना है ताकि ये रिश्ता ठीक हो जाये। और अपना फोकस हमेशा उनकी विकनेस से हटाकर उनकी स्ट्रेंथ पर ले जाओ।