किसी बच्चे से अगर ये पूछें कि दस सिर वाला कौन? तो तुरंत ही उत्तर दे देगा। आप भी जानते हैं ये। लेकिन क्या ऐसे मनुष्य का जन्म हुआ होगा! अगर हाँ, तो क्या आज उसका कोई प्रमाण है! ज़रा सोचिए दस सिर वाले मनुष्य का जन्म माँ के गर्र्भ से कैसे होगा? संभव ही नहीं। लेकिन फिर भी हर साल हम उसको जलाते हैं, हर साल उसका बुत बड़ा करके जलाते हैं। लेकिन दशकों से जलाते आने पर भी वो आज भी मरा नहीं बल्कि और ही बड़ा होता जा रहा है। तो आइए जानें… वो कौन है और कहाँ है… ये ढूंढने पर ही हम उसे हरा भी सकेंगे और जला भी सकेंगे।
रामनवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, शिवरात्रि आदि त्योहार श्रीराम, श्रीकृष्ण और भगवान शिव के पुनीत नामों को लिए हुए है। परंतु दशहरा और विजयदशमी त्योहार के नाम में ‘राम या रावण’ का नाम न होकर ‘दश’ शब्द पर अधिक ज़ोर है। इसका कोई कारण तो होगा ही। आज अधिकतर लोग इस ‘दश’ शब्द के महत्व के बारे में जानते हैं कि रावण के दस शीष थे। इसलिए रावण के वध से सम्बंधित त्योहार का नाम ‘दशहरा’ है। परंतु क्या आपकी अंतरात्मा यह गवाही देती है कि रावण के दस मुख थे! दस मुख वाला कोई व्यक्ति माता के गर्भ से जन्म ही कैसे ले सकता है! या जन्म लेकर इतने काल तक कैसे जि़न्दा रह सकता है! दस मुख वाला एक विशालकाय व्यक्ति तो लोगों के लिए सदा एक अजायबघर अथवा चिडिय़ाघर की चीज़ अथवा एक डरावना हौआ ही बना रहता होगा। फिर उसकी हत्या को रावण हत्या या रावण वध न कहकर ‘दश-हरा'(दशहरा) ही क्यों कहा गया?
क्या ऐसा भी कोई मनुष्य हो सकता है!
यदि रावण दस मुख वाला व्यक्ति था तो भला वो खाता किस मुख से होगा, वो बात किस मुख से करता होगा, क्या उसके बीस कान होंगे, या कान केवल दो ही रहे होंगे? वो किन कानों से सुनता होगा, किन आँखों से एक व्यक्ति विशेष की ओर देखता होगा और सोचता किस मस्तिष्क से होगा? अगर आज भी हम कोई जुड़वा बच्चा देखते हैं तो न केवल उसके दो मुख होते हैं बल्कि वे दो ही व्यक्ति होते हैं। उनके सोच-विचार भी अलग-अलग होते हैं। तब दस सिर परंतु एक धड़ अथवा एक शरीर वाला व्यक्ति भला एक ही मन वाला कैसे होगा! क्या उसके शेष 9 मस्तिष्क, 18 आँखें बेकार रहे होंगे? ऐसे प्रश्नों पर विचार करने पर कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इस बात पर निश्चय ही नहीं कर सकता कि कभी लंका का कोई राजा दस मुख वाला व्यक्ति था। न ही आज लंका के लोग अपने इतिहास में कोई ऐसा व्यक्ति हुआ मानते हैं।
‘रावण’ रुलाने वाला… दु:ख देने वाला
तब प्रश्न उठता है कि रावण को ‘दशानन’ कहा गया है, इसका कोई तो आधार होगा ही। दशानन कहने का कारण तो कोई ज़रूर है। परंतु वह तभी समझ में आ सकता है जब रावण को कोई हड्डी-मांस वाला व्यक्ति न मानकर, कोई व्यक्ति वाचक नाम न मानकर हम इस शब्द के आध्यात्मिक अर्थ पर विचार करें अर्थात् ‘रावण’ शब्द का क्ररुलाने वालाञ्ज ऐसा जो अर्थ है उसको ध्यान में रखते हुए रावण शब्द को माया का वाचक मानें क्योंकि ‘माया’ अथवा मनोविकार ही आत्मा को दु:ख दिलाने तथा रुलाने का कारण बनते हैं।
दस शीष का आध्यात्मिक अर्थ
गीता में भगवान के महावाक्य हैं कि हे वत्स, काम, क्रोध और लोभ नर्क के द्वार हैं। अब यदि इस वाक्य के शब्दार्थ को लेकर कोई यह मान ले कि नर्क किसी बिल्डिंग अथवा नगर का नाम है और काम, क्रोध आदि सचमुच उसके कोई द्वार अथवा फाटक ही हैं तो यह उसकी भूल होगी। क्योंकि वास्तव में काम, क्रोधादि कोई लोहे व लकड़ी के द्वार नहीं हैं बल्कि यहां ‘द्वार’ अर्थात् रूलाने वाली माया के दस ‘मुख’। कहने का भाव है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, छल, हठ और आलस्य। ये दस माया के मुख्य रूप हैं। रावण के दस मुख कहने का भाव यही है कि मनुष्य ऊपर बताये दस विकारों में से किसी भी विकार के अधीन होकर बोलता, सुनता, देखता, विचारता या स्मरण करता है तो मानो कि वो रोने का साधन जुटाता है, वह ‘असुर’ है। क्योंकि गीता के भगवान ने इन विकारों को ‘आसुरी लक्षणों’ में गिनाया है।
विकारों पर विजय का प्रतीक ‘विजयादशमी’
जैसे रावण को ‘दशानन’ कहते हैं। माना ये दस विकार-समूह अथवा दस रूप वाली माया का प्रतीक है। वैसे ही कुम्भकरण समस्त चेतनाओं की अवहेलना, न सुनने का अथवा अति-निद्रा का वाचक है। मेघनाद, मेघ की गर्जना के समान वचन अर्थात् निरर्थक अथवा भयप्रद बोलने का, स्वभाव की कठोरता, कटुता अथवा क्रूरता, दोषारोपण, मारीच, मिथ्याचार, भ्रान्ति, कुचाल अथवा धोखे का प्रतीक है। इन्हीं अर्थों को लेकर ही मनुष्य राम कथा का वास्तविक अर्थ जान सकता है। और रावण माया पर विजय प्राप्त करके सच्चा दशहरा मना सकता है।
दशहरे के पूर्व नवरात्रि के नौ दिन नवधा-तपस्या द्वारा शिव की शक्ति धारण कर स्वयं में निहित विकारों पर विजय प्राप्त करने के रूप में दशहरा मनाते हैं, जिसको विजयादशमी भी कहते हैं।