छोटी-मोटी अवज्ञाओं से कैसे अपने को बचायें

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आज पता नहीं क्यों मैं उदास हूँ, आज मुझमें खुशी नहीं है, आज मेरे में उमंग-उल्लास नहीं है, क्या कुछ करूं, जैसे-वैसे वैराग्य होता है, उल्टा वैराग्य। बेचैनी क्यों है? ऐसी सोच चलते-चलते कभी-कभार आती है। ऐसा क्यों होता है, इसको जानने की कोशिश करते हैं।
कई बार संगठन में कोई जो हमारे से बड़े और आदर्श होते हैं जिन्हें हम महारथी कहते हैं, वो कोई गलती कर रहे हैं और हम उन्हें देखते हैं तो हमारे मन में विचार आता है कि महारथी भी ये गलती कर रहे हैं! लेकिन ये भी तो हमें समझना चाहिए कि जब वे गलती कर रहे होते हैं तब भला वे महारथी हैं? नहीं ना। इस संदर्भ में परमात्मा ने हमें बहुत स्पष्ट और बार-बार बताया है, ध्यान खिंचवाया है, फॉलो फादर न कि फॉलो ब्रदर-सिस्टर। जिस समय महारथी गलती करते हैं, उस टाइम वो परवश हैं, महारथी थोड़े ही हैं। ऐसी परिस्थिति में हमारी भी तो नासमझी में, अजागरुकता में बाबा ने जो बताया है वो बात याद नहीं रहती कि क्रफॉलो फादरञ्ज करना है। और हम भी गलती के वश हो जाते हैं। और हमारा भी सूक्ष्म में पाप बन जाता है, पुण्य तो नहीं होता ना। और हम उस परिस्थिति को अपने ज़हन में बसा लेते हैं और उनसे किनारा करने की कोशिश करते हैं और कई बार उनसे कनेक्शन नहीं रखने की मन ही मन सोच लेते हैं। फिर ये चक्र उल्टा ही चलने लगता। संगठन में दाने से दाना मिलकर माला बनती है ना। हम माला के मणके तो बने लेकिन माला में आना है तो कनेक्शन तो दाने से दाने का होगा ही, ये भी भूल जाते हैं।
गलतियां किसी से भी हो सकती हैं, ऐसे में परमात्मा की शिक्षा हमें याद आनी चाहिए कि भले उनमें 99 गलतियां हैं लेकिन एक तो विशेषता होगी ना। उस विशेषता को देखना है न कि गलती को। आपने देखा होगा कि गुलाब के पौधे होते हैं तो उसमें फूल भी होते हैं तो कांटे भी होते हैं लेकिन हम किसको देखते हैं, कांटे को या गुलाब को! गुलाब को हाथ में उठायेंगे ना! तो बाबा की ये शिक्षा है कि क्या दृष्टि रखो, कैसे देखो और हमेशा शुभ कामना की दृष्टि हो, ये बाबा का डायरेक्शन है। ऐसे दिनभर में न जाने कितनी हम बाबा की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं! भगवान की अवज्ञा करना, ये किस खाते में जायेगा? पाप के या पुण्य के? अगर साक्षी होकर देखें तो एक दिन में भी ऐसी छोटी-मोटी न जाने कितनी सारी अवज्ञाएं निकल आयेंगी। इन छोटे-छोटे पाप का प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता रहता है। जिस कारण ये बोझ कभी न कभी हमारे किसी दिन पर हावी होता है और हमें लगता है कि मैंने तो कोई गलती की नहीं, मेरा तो चार्ट भी अच्छा है, मैंने किसी को दु:ख भी नहीं दिया फिर भी मैं उदास क्यों हूँ! खुशी क्यों नहीं है! इसलिए बाबा कहते, हमेशा बाबा की याद में रहकर कर्म करो। जो बाबा ने हमें सावधानियां दी हैं, शिक्षायें दी हैं, उनका मनन-चिंतन कर स्पष्ट अपनी बुद्धि में बिठायें ताकि हम ऐसे पाप के प्रभाव के बोझ से बच सकें। हाँ, दूसरा एक कारण पूर्व जन्म का भी हो सकता है जो हमें याद भी नहीं है। पिछले अनेकों जन्मों में न जाने हमसे कितनी गलतियां, अवज्ञायें हुई होंगी जिसका भी तो प्रभाव हमारे मन पर पड़ेगा ना।
कोई भी कार्य करते हैं तो हमें कैसे करना, मन में क्या भाव रखना, कैसे देखना और कैसे सोचना, ये सब बाबा हमें रोज़ डायरेक्शन देते हैं, याद दिलाते हैं और भिन्न-भिन्न तरीके भी बताते हैं, उनका चिंतन और मनन करना बहुत आवश्यक है। बिना चिंतन और मनन हमें स्पष्ट नहीं होगा और हम स्वच्छ भी नहीं होंगे। तब सही वक्त पर हमारी निर्णय शक्ति काम नहीं करेगी क्योंकि स्पष्ट नहीं हैं। अब बाबा कहते हैं, अब ऐसे बोझ से अपने को बचाना है क्योंकि हम विश्व के आधारमूर्त और विश्व-कल्याण के निमित्त हैं लेकिन अगर हमने ज्ञान के प्रकाश को अपने मन और अपनी बुद्धि में नहीं रखा तो भीतर अंधकार हो जायेगा और अंधकार में हमारे से ऐसे काम होते रहेंगे और हमें ठोकरें लगती रहेंगी। हम न खुद उससे बच पायेंगे और न दूसरों को बचा पायेंगे।

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