किसी भी काम की शुरूआत एक मिनट की शांति या मौन के साथ करें, जैसे दिन की शुरूआत, दफ्तर की कोई मीटिंग, खाना बनाने की शुरूआत या बच्चों की पढ़ाई भी…। आप भले ही छोटा-सा भी काम शुरू करें, लेकिन उस कार्य की सफलता का संकल्प लेकर इसे शुरू करें। कहा भी गया है कि अगर शुरूआत सही हुई तो कार्य अच्छी तरह से होना ही है। लेकिन कभी-कभी हम शुरूआत में संकल्प ही कुछ और कर लेते हैं। आप एक दिन साक्षी होकर देखें, अहसास होगा कि जाने-अनजाने में हम कितनी ही चीज़ों की शुरूआत गलत संकल्प के साथ करते हैं। घर से निकलने से पहले ही सोच लेते हैं कि रास्ते में ट्राफिक मिलेगा ही! वहां तो ऐसा होगा ही! ये तो होता ही है! पिछली बार भी ऐसा हुआ था। और हम ऐसे विचार क्यों मन में लाते हैं? क्योंकि पिछली बार के हमारे अनुभव ऐसे थे। लेकिन इस बार वही सोचकर या दोहराकर आपने उसके होने की संभावना को फिर से बढ़ा दिया। फिर अगर इस बार भी ऐसा हुआ, तो आपका गलत दिशा में विश्वास दृढ़ होता जाएगा। आपके साथ पिछली बार कुछ भी हुआ हो, या बार-बार क्यों न हुआ हो, लेकिन जब शुरूआत सकारात्मक संकल्प के साथ करेंगे तो परिणाम आपके पक्ष में होंगे। जब हम अपने चित्त को साफ करके, अच्छे संकल्प के साथ एक मिनट खामोशी में बैठकर कोई काम शुरू करते हैं तो सकारात्मक ऊर्जा के साथ काम की शुरूआत होती है और इससे परिणाम भी हमारे पक्ष में आते हैं।
इसे एक उदाहरण से और समझते हैं। आप घर से निकले, आपको कहीं पहुंचना है। लेकिन आप पहले ही दस मिनट देरी से निकले हैं। इस स्थिति में निकलने से पहले ही विचार मन में आ गया कि देर हो गई है, अब तो वक्त पर पहुंचना बहुत मुश्किल है। और इस तरह हमने मन की स्थिति को कमज़ोर कर दिया। अब अगर आप वक्त पर भी गंतव्य पहुंच गए तो भी स्थिति ठीक नहीं है, तो काम पर भी असर पड़ेगा। इसके विपरीत, अगर चलने से पहले मन में विचार किया कि हम समय पर पहुंच जाएंगे। इससे मन में व्यर्थ के विचारों पर पूर्ण विराम लग जाएगा। मन की स्थिति स्थिर हो जाएगी। इस एक विचार से आप समय पर पहुंचेंगे ही। नहीं भी पहुंचे, तब भी मन की स्थिति ठीक रहेगी।
कल्पना करिए, घर में सबको भूख लगी है, लेकिन बनाने के लिए कोई तैयार नहीं है। ऐसे में बाहर से खाना मंगाने की नौबत आ जाएगी। आज के दौर में भी वही हो रहा है, हम भी खुशी और शांति बाहर से मांग रहे हैं। घर में खुशियों के लिए एक-दूसरे की ओर ताकते हैं। नहीं मिलती तो बाहर देखते हैं। नतीजतन ये खरीदो-वो खरीदो। इधर जाओ, उधर जाओ। लेकिन क्या इससे सच्ची खुशी और शांति मिलने की गारंटी है?
माता-पिता अपने बच्चों के लिए नकारात्मकता नहीं भेजते। लेकिन जब वह किसी बात से व्यथित हो जाते हैं, तो प्यार अवरूद्ध हो जाता है। एक समय पर एक ही ऊर्जा जा सकती है। उतनी देर आपसे नकारात्मक ऊर्जा बच्चे तक पहुंच रही है। आप सोचें कि आप दु:खी, चिंतित, व्यथित होंगे तो बच्चों को किस तरह की ऊर्जा जाएगी।