हरेक अपने अन्दर झांक कर देखें कि मैं दिन में कितना बारी बाबा को देखती हूँ…!

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बाबा ने सिखाया है, मुरली सुनने के बाद मुरली रिवाइज़ करनी चाहिए। मुरली सुनने के बाद बाबा हमको पैदल लेकर जाता था। अगर कोई सेवा है तो भी कम से कम 10 मिनट शान्त में रह मुरली को रिवाइज़ करके फिर सेवा में लगो। जिसको रिवाइज़ करने का रस बैठा है, वो कार्य करते भी मीठे बाबा के बोल जो सुने हैं, उन्हें अन्दर से भूलते नहीं हैं। याद नहीं करने पड़ते हैं, जिसको और बातें याद करनी पड़ती हैं उन्हें बाबा की याद भूल जाती है, अटपटी बातें, खटपटी बातें याद रहती हैं। कई हैं जो ऐसी चटपटी बातें करते हैं जो सबको अपनी तरफ खींच लेते हैं। खटपटी बातें जिनका कोई अर्थ नहीं है, ऐसी बातों में अपना कितना समय गंवाते हैं, यह अपने आप से पूछो। जिसको मीठे बाबा की बातें दिल में अच्छी लगती हैं, उनके सामने ये बातें कोई करेगा नहीं, यह अनुभव है। हमेशा आकर्षण और उलझन में रहने वालों के आगे यह बातें आती हैं इसलिए बाबा कहते हैं सम्भालो अपने आपको। रोज़ सुबह अमृतवेले यहाँ आने के पहले बाबा की ऐसी मीठी बातें, नई बातें याद करो। तो अमृतवेले नींद नहीं आयेगी। रमणीक बातें, हर्षितमुख बनाने वाली बातें याद करो।
अभी हम छोटे बच्चे नहीं है, छोटे हैं माना अभी बाबा की बातों को धारण करने में छोटे हैं माना बेबी बुद्धि, उन्हें अच्छा लगता है पर कर नहीं पाते हैं। दूसरे हैं बुद्धू, बुद्धि से काम नहीं लेते हैं। बाबा दिव्य बुद्धि दाता है, राइट-रॉन्ग, सच-झूठ, बाबा सब स्पष्ट सुना देता है।
यह बातें जीवन में सदा हैं तो कोई बात कठिन नहीं है। बात आई बात चली गयी, हम बाबा के पास बैठ गये। बाबा हमारा गाइड है, भले कोई पावन बन रहा है लेकिन उनका कोई गाइड नहीं है, बाबा तो हमारा गाइड है। पहली बात बाबा के बने हैं, अगर भूलें करेंगे तो बाबा कहते एडॉप्शन रद्द हो जायेगी। भले बाबा ने चुनके कहाँ-कहाँ से लिया है। पर ऐसी बुद्धि बदल जाती है जो बाबा भी दिल से नहीं निकलता। दिल में कुछ और बात है। मुख्य पहली बात है- दिल से बाबा तभी निकलता है, जब कोई भी बात सुनते-देखते न देखो। सी फादर, फॉलो फादर, यह बात मुझे कभी भूली ही नहीं। हर एक अन्दर जाकर देखें कि मैं दिन में कितना बारी बाबा को देखती हूँ। बाबा के सिवाय और किसी को तो नहीं देखती हूँ। फिर बाबा कहते बच्चे, जो कुछ बात हुई, ड्रामा। फिनिश। इसने रॉन्ग किया, इसने राइट किया, तुमको ये चिंतन करने के लिए किसने कहा है! बुरा किया या अच्छा किया, तुम्हारा क्या जाता है! इसी चिन्तन में मैं मरूं तो मेरा क्या हाल होगा! यह ध्यान रखना चाहिए कि खराब चिन्तन में रहने की आदत है तो जब वो मरेगा तो उसके चिंतन में वही आयेगी क्योंकि मरने की तैयारी हम पहले से कर रहे हैं।
तो व्यर्थ चिंतन में आयेगा इसलिए प्रभु चिन्तन में जो मरे वो वैकुण्ठ रस पाये। जिसको वैकुण्ठ याद होगा वही वाया परमधाम, शान्तिधाम, सुखधाम जा सकेंगे। राज्य पद तो पीछे मिलेगा लेकिन अधिकारीपन का नशा अभी से है। अन्दर से निरहंकारी और अधिकारी हैं। जितनी सत्यता है उतनी नम्रता है।

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