काम पर विजय होती जायेगी तो क्रोध भी शांत होता जायेगा। चित्त शांत और निर्मल होता चला जायेगा। क्रोध की अग्नि बुझती चलेगी। लेकिन इसपर भी काम अवश्य करना है।
भगवान के बच्चे बनने के बाद, सम्पूर्ण ज्ञान ले लेने के बाद और जीवन का एक सम्पूर्ण लक्ष्य मिलने के बाद बहुत उमंग-उत्साह में रहने वाली आत्मायें ये संकल्प करती हैं कि हम विजयी रत्न बनें। जब इस मार्ग पर आ गये, जब हमने सर्वस्व भी त्याग कर दिया, विषय-विकारों से भी मुख मोड़ लिया, संसार की सुख-सुविधाओं से भी मुख मोड़ लिया तो क्यों न हाइएस्ट अचीवमेंट हो? सबकुछ प्राप्त कर लें भगवान से। सतयुग की, स्वर्ग की राजाई ले-लें। तो इसमें परीक्षाएं भी होंगी। क्योंकि जितना बड़ा पद उतनी बड़ी परीक्षा। सिम्पल नियम है- कम्पटीशन उतना ही बड़ा होगा। इंटरव्यूह भी होगा, बहुत कुछ चेक किया जायेगा। अब भगवान राजाई देगा तो परीक्षा तो अच्छी लेगा। मजबूत तो बनायेगा। कमज़ोर आत्माओं को तो राजाई नहीं मिलेगी और न दी जा सकती है। नहीं तो उनका राज्य छिन जायेगा।
तो शिव बाबा अपने बच्चों को राजाई लायक बनाने के लिए बहुत अच्छी-अच्छी चीज़ें सिखाते हैं इसलिए राजयोग की डेफिनेशन ये भी है राजयोग अर्थात् स्वर्ग की राजाई प्राप्त करने की ट्रेनिंग, उसकी एजुकेशन, तो हमें माया को सम्पूर्ण रूप से जीतना है। काम पर विजय होती जायेगी तो क्रोध भी शांत होता जायेगा। चित्त शांत और निर्मल होता चला जायेगा। क्रोध की अग्नि बुझती चलेगी। लेकिन इसपर भी काम अवश्य करना है। जैसे काम जीतने के लिए सब्कॉन्शियस माइंड के लेवल पर हमने कुछ सुझाव रखे।
क्रोध को जीतने के लिए भी कुछ ऐसी ही बातें हैं। सवेरे उठें, उठते ही शिव बाबा को गुड मॉर्निंग करें। और संकल्प करें कि मैं भगवान की संतान बहुत शक्तिशाली हूँ, विजयी रत्न हूँ, क्रोध मुक्त हूँ, शांत हूँ, शांत स्वरूप हूँ, बहुत गहरी फीलिंग दें अपने आपको। कई क्रोध को बहुत जीत लेते हैं लेकिन अचानक फिर निकल आता है। इमर्ज हो जाता है। हमें इस क्रोध को जड़ से नष्ट करना है। इसके लिए योग की अच्छी साधना भी हो, हम शांति के वायब्रेशन शांति के सागर से लेते रहें। और साथ में लक्ष्य बना लें कि मुझे क्रोध सम्पूर्ण रूप से छोड़ देना है। क्योंकि जब तक मनुष्य का अपने ऊपर ध्यान नहीं रहता तब तक भी उसे क्रोध आता है। कईयों का क्रोध ऐसा होता है कि आया और शांत हो गया। लेकिन कईयों का क्रोध ऐसा होता है एक बार आ गया तो उसका इफेक्ट सारा दिन चलता है। व्यवहार बदला रहता है, बच्चों से डांट-डपट होती रहेगी, पत्नी से झगड़ा होता रहेगा। जिसे भी क्रोध आयेगा उसके साथ ये होता रहेगा।
पहले हम हमारी जो क्रोध की नेचर है उसपर विजयी बनें। धीरे-धीरे फिर क्या होगा, क्रोध आ भी गया तो जल्दी शांत होगा। क्रोध ना आये इसकी अवेयरनेस रहेगी कि मुझे क्रोध से मुक्त होना है। याद रहेगा शिव बाबा मेरा परमपिता शंाति का सागर, सुख दाता यदि वो मुझे देखेगा कि ये तो क्रोध के सागर बने हुए हैं, इनके बोल तो बड़े खराब हैं, दु:खदायी बोल हैं, बाबा कहा करते थे कई बच्चों के क्रोध की आवाज़ वतन तक भी पहुंचती है। कई बच्चों के मुख से धुंआ निकलता है, निकलनी चाहिए दुआएं। तो देखो बाबा को भी तो प्रिय नहीं हैं ऐसी आत्मायें। मुझे प्यार के सागर का प्यार जीतना है, मुझे उसकी दुआओं का पात्र बनना है। वो जीवन में सदा मुझे मदद करे ऐसा मुझे अधिकार ले लेना है उससे। तो मुझे चित्त को शांत करना है। उसका आज्ञाकारी बच्चा बनना है। इस तरह चिंतन करेंगे और ये चिंतन हमें बहुत मदद करेगा। फिर अगर हो जाये थोड़ा बहुत तो फिर भी परेशान नहीं होना। जल्दी से जल्दी उसकी इफेक्ट को समाप्त करेंगे। बाबा से क्षमा याचना करेंगे। स्वीट हो जायेंगे फिर से।
साथ में उन कामनाओं को भी छोडऩा होगा जिनके पूरा ना होने पर क्रोध आता है। बच्चा ठीक से पढ़ता नहीं, आज भोजन अच्छा नहीं बना। आज कोई काम बिगड़ गया। किसी ने आज्ञा नहीं मानी, किसी ने दुव्र्यवहार कर दिया। क्रोध आयेगा लेकिन इनपर भी विजयी होना है। अपने चित्त को शांत रखना है। और आप एक चीज़ अनुभव करेंगे जैसे हमारी मनोस्थिति ऊंची होती जायेगी, हमारा चित्त शांत होता जायेगा, जैसे-जैसे हम स्वमान में स्थित होते जायेगे तो फिर ये सब बातें हमारे सामने आयेंगी ही नहीं। बच्चों को थोड़ा कहेंगे वो आज्ञा मानेंगे, नौकरों से काम करा रहे हैं सहज भाव से अच्छा करेंगे। सब कुछ परफेक्टली, सक्सेसफुली होता रहेगा।