साक्षात्कारमूर्त बनने के लिए एक-दूसरे को उसी भाव से देखें

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एक दिन बाबा ने कहा- बच्चे, तुम्हें कभी यह अनुभव होता है कि मेरे भक्त मुझे पुकार रहे हैं और मैं साक्षात्कार मूर्त बन साक्षात्कार कराने जा रही हूँ? इसमें बाबा के कहने का भाव यही है कि बच्चे तुम्हें देवी व देवता, साक्षात्कार मूर्त रहना है, हम भक्तों को साक्षात्कार कराने वाली मूर्त हैं। जब सदैव अपने को मूर्त समझेंगे और एक-दो को ऐसे दृष्टि देंगे-लेंगे तो देखेंगे कि प्रवृत्ति में हम कम्बाइंड लक्ष्मी-नारायण की जोड़ी हैं। सदैव एक-दो को देखो यह श्रीनारायण है, हम श्री लक्ष्मी हैं, परन्तु ऐसे नहीं हम ही भविष्य में फिर जाकर जोड़ी बनें। दो को बाबा ने सैम्पल इसलिए बनाया है कि आप हरेक चर्तुभुज हो, चारों अलंकार शंख, चक्र, गदा, पद्य साथ रहें। इन चारों अलंकारों के बीच बाबा ने जो चार सेवाएं दी हैं उन चारों सेवाओं को आप अपनी भुजाओं में सहज ले सकते हो। अपना सदैव लाइट का चक्र चलता रहे, मुरलीधर की मुरली बजाते रहो अर्थात् शंख बजता रहे। ज्ञान की गदा से विकारों को समाप्त करो तो पद्य समान बन जायेंगे। यह प्रवृत्ति का सैम्पल है अलंकार वाली प्रवृत्ति हो मेरी-तेरी नहीं। ऐसे अलंकारधारी रहेंगे तो प्रेम और शान्ति रहेगी। कई बार प्रेम में अटैचमेंट हो जाती है। कई कहते हैं प्रेम से तो रहना है। फिर प्यार में आ जाती है ममता। यह भी गुप्त माया है। प्यार से रहना है यह तो समझा, परन्तु प्यार में ममता है इस माया को नहीं समझा। बाबा ने कहा है प्रेम से रहो माना संस्कारों का टक्कर न हो। विचारों में जब अन्तर होता है तो मन में होता है टक्कर। जब आप दोनों साथ-साथ चलते तो श्रीमत को सदा सामने रखो। घर का वातावरण शान्त परन्तु कई बार घर में अशान्ति होती तो इसके लिए समझते पति की जो मत है वही श्रीमत है। हम उस पर चलेंगी तो शान्ति रहेगी। वह समझते श्रीमती की ही श्रीमत है। कहते क्या करें न चलें तो आँख दिखायेगी। लेकिन श्रीमत है हमारी मुरली। मुरली में बाबा ने जो डायरेक्शन दिये हैं उसके अनुसार हमारा कदम है तो पदम हैं इसके लिए स्नेह से भले रहें परन्तु न्यारे।
आपस में दो साथ रहते तो कभी-कभी एक-दूसरे को दिल का हाल-चाल सुनाते, दूसरों की बात साथी को सुनाते। एक-दो की बातें सुनते-सुनते परचिन्तन का चक्र चलने लगता। बाबा ने आपको इसलिए प्रवृत्ति नहीं दी है कि बातों का चक्र रिपीट करो। अगर एक की कमी दूसरे को सुनाई तो उसमें भी कमी का भाव भर दिया। उसके अन्दर भी नफरत का भाव आ जाता। जोड़ी इसलिए नहीं है कि दिल का, तेरे-मेरे का, वायुमण्डल का चिन्तन करो। इसीलिए बाबा ने मन्त्र दिया है शुभ चिन्तन में रहो, शुभचिन्तन करो।

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