राजाई पाने का आधार राजयोग

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स्वमान जितना-जितना बढ़ता जायेगा, अभिमान नष्ट होता जायेगा। हम सबकी दृष्टि में सम्मानीय होते जायेंगे। तो ऑटोमेटिक होने दो इसको। सम्मान मांगने की ज़रूरत नहीं।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि आप एक चीज़ अनुभव करेंगे जैसे हमारी मनोस्थिति ऊंची होती जायेगी, हमारा चित्त शांत होता जायेगा, जैसे-जैसे हम स्वमान में स्थित होते जायेंगे तो फिर ये सब बातें हमारे सामने आयेंगी ही नहीं। बच्चों को थोड़ा कहेंगे वो आज्ञा मानेंगे, नौकरों से काम करा रहे हैं सहज भाव से अच्छा करेंगे। सब कुछ परफेक्टली, सक्सेसफुली होता रहेगा।
तो मनोस्थिति का बहुत बड़ा महत्त्व है। हम चेक कर लें, क्रोध में आकर हमारी वाणी कड़वी ना हो जाये। नहीं तो पश्चाताप होता है। क्रोध के लिए प्रसिद्ध है, क्रोध की शुरूआत मूढ़ता से होती है और अंत पश्चाताप से। मूढ़ता माना बुद्धि में विकृति आ जाती है। बुद्धि का नाश करता है क्रोध। और जब अंत में क्रोध शांत होता है तो मनुष्य को पश्चाताप अवश्य होता है कि मैंने ये-ये सब बोल दिया, गलती कर दी, ये ठीक नहीं किया, मन भी खिन्न होता है, शांति और खुशी भी नष्ट हो जाती है। ऐसे ही हमें लोभ पर ध्यान देना है। अब तो हमें शुद्ध लोभ रखना है और वो भी भगवान से सबकुछ प्राप्त करने का। संसार में तो लोग धन-सम्पदा के पीछे भाग ही रहे हैं। लेकिन सच्ची सुख-शांति-खुशी ये सब नहीं मिल रहा। किसी का धन बीमारियों में जा रहा है, किसी का और कहीं जा रहा है। धन डर भी पैदा कर रहा है। तो हमारे मन में ये जो बहुत सारी इच्छायें उठती रहती हैं उनको भी थोड़ा शांत करना है। सबकुछ बाबा से लेना है। अतीन्द्रिय सुखों में रमण करना है। ये सुख, ये परमआनंद है। इससे मन स्वत: ही संसार के रसों से मुक्त हो जाता है। संसार में भी रस तो हैं लेकिन उन रसों के पीछे हमारी बुद्धि न भागे। एक तो है जबरदस्ती उनको रोकना, दूसरा है ज्ञान बल से उनको रोकना। लेकिन तीसरा है ईश्वरीय आनंद प्राप्त करते हुए उनको स्वत: ही समाप्त कर देना। ये बहुत सुन्दर स्थिति है। हमें मोह पर भी विजय प्राप्त करनी है। आत्मिक भाव रखते हुए हमें, अहंकार योगियों का परम शत्रु है इसको भी जड़-मूल से उखाड़ देना है। मैंपन, मैं ही राइट हूँ, मेरी ही मानी जानी चाहिए। मुझे पहले अधिकार मिलना चाहिए। मेरे पूछे बिना कुछ नहीं करना चाहिए। इस तरह का अभिमान मनुष्यों के अन्दर बहुत रहता है। तो इन सब पर विजयी होने का लक्ष्य रखेंगे। स्वमान जितना-जितना बढ़ता जायेगा, अभिमान नष्ट होता जायेगा। हम सबकी दृष्टि में सम्मानीय होते जायेंगे। तो ऑटोमेटिक होने दो इसको। सम्मान मांगने की ज़रूरत नहीं। वो परछाई की तरह हमारे पीछे-पीछे आयेगा। परचिंतन पर ध्यान दें। उन सूक्ष्म कमज़ोरियों पर ध्यान दें जिससे हमारी शक्तियां नष्ट होती हैं। विशेष रूप से आलस। ये भी ज्ञान-योग के पथ पर चलने वालों का एक सूक्ष्म शत्रु है। योग्य होते भी मनुष्य को कुछ करने नहीं देता है। सवेरे उठकर परम सुख लेने नहीं देता है। कार्यों में भी ठंडाई आ जाती है। तो हम आलस का भी त्याग करेंगे। वैर भाव को क्षमा भाव में बदलेंगे। अपने जीवन को सुखदाई बनायेंगे तो विकारों की जो छाया है, काली छाया, वो हटती जायेगी। हम निर्विकारी बनकर विजय माला के चमकते हुए मोती बन जायेंगे।

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