बाबा के आगे बड़ी बात भी छोटी हो जाती

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अगर मैं सावधान रहूँगी, मन को साफ रखूंगी तो खुश रहेंगे। तो समस्या कभी नहीं कहो, पेपर भले कहो। बाबा से बड़ी बात कोई होती नहीं है। वो सर्वशक्तिवान बाबा हमारे साथ बैठा है, उसके आगे यह क्या है? बड़ी बात भी छोटी हो जाती।

मूल बात है हम स्वराज्य अधिकारी के स्मृति स्वरूप में रहते हैं? बिन्दु लगाते क्वेश्चन मार्क या आश्चर्य की मात्रा तो नहीं लग रही है? तो यह हमारा पुरूषार्थ होना चाहिए। भृकुटि के बीच में आत्मा तख्त पर बैठी है, तख्त पर बैठने वाले का ऑर्डर मानना चाहिए ना! राजा हो और उसका माने कोई भी नहीं तो कौन मानेगा राजा है? तो केवल सुबह-शाम नहीं, पर बीच-बीच में और जब बहुत बिजी हो उस समय चेकिंग करते रहो। उस समय हम अपनी कन्ट्रोलिंग पॉवर को देखें। और बातों में अटेन्शन देने के बजाय इसमें समय सफल करें तो बहुत अच्छा है। अगर हम मजबूत हैं तो हमें कोई हिला नहीं सकता है। अचल-अडोल। अभ्यास और चेकिंग, यह दो शब्द ज़रूर याद रखना। अपने को ऑर्डर पर चलाने की आदत होगी तो ऑटोमेटिकली आदत पड़ेगी। हम अपने को ऑर्डर में नहीं चला सकते हैं तो मेरे साथी कैसे ऑर्डर में चलेंगे? इसलिए हमको यह बहुत अटेन्शन देना पड़ेगा और सिर्फ चेकिंग से काम नहीं चलेगा, चेकिंग के साथ चेंज भी चाहिए, नहीं तो दिलशिकस्त होंगे।
बहुत बिजी थे, बहुत झगड़े हो गये, बहुत सेवा थी ना, इस तरह से अलबेलापन आ जाने से चेकिंग करना रह जाता है। लेकिन अभी तो झगड़े भी होंगे, सेवा भी होगी, यह होना ही है। अगर मैं सावधान रहूँगी, मन को साफ रखूंगी तो खुश रहेंगे। तो समस्या कभी नहीं कहो, पेपर भले कहो। बाबा से बड़ी बात कोई होती नहीं है। वो सर्वशक्तिवान बाबा हमारे साथ बैठा है, उसके आगे यह क्या है? बड़ी बात भी छोटी हो जाती। तो पेपर हमेशा आगे बढ़ाता, अगर पढ़ाई ठीक पढ़ रहे हैं तो पेपर में पास होंगे और आगे की क्लास में जायेंगे। अनुभव के आधार से बच जायेंगे, यह है अनुभव का क्लास आगे बढऩा। तो अनुभव सबसे बड़ी अथॉरिटी होता है। आत्मा, परमात्मा और ड्रामा… इन तीन बातों के अनुभव मूर्त बनो। इन तीनों में से एक भी कम होगी तो गड़बड़ होगी, इन तीन चीज़ों का पाठ पक्का चाहिए और अनुभव करते जाना चाहिए, इस अथॉरिटी से कभी कोई भी प्रॉब्लम हो, बाबा की मदद से सहज हो सकता है। हमारी एक आशा है कि आप सब यहाँ कन्ट्रोलिंग पॉवर को पै्रक्टिकल में लाकर देखो और बातों में नहीं जाओ और बातें तो यहाँ करनी ही नहीं हैं। सभी बातों से किनारा करके अभ्यास करो, मैं आत्मा रूप में स्थित हो सकती हूँ? चलते हुए भी मैं आत्मिक रूप में स्थित हूँ? आत्मा करावनहार टांगों को चला रही है। मैं करावनहार आत्मा हूँ, यह कर्मेन्द्रियां करने वाली हैं। इसका अनुभव बार-बार करो। एक सेकण्ड चेक-चेंज, चेक-चेंज, यह प्रैक्टिस करेंगे तो फिर आपका जो चाहते हैं योग लगे, योग माना क्या! बाबा की याद। बाबा की याद से तो ताकत ही मिलती है ना, तो वो प्रैक्टिकल अनुभव होगा।

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