अगर पेरेंट्स ने बचपन में बहुत बार ये सोचा होता है कि ये स्लो है, ये स्लो है, ये कुछ नहीं कर सकता है। ये तो गिरा ही देता है। इसके हाथ से तो चीज़ ही टूट जाती है। ये पढऩे अभी बैठेगा लेकिन अभी वो उठ जायेगा। ये एकाग्रता से नहीं सकता है। ये लाइन उस बच्चे के लिए एक लेबल बन जाती है। हमारे ऊपर जो लेबल्स लगते हैं वो मैजोरिटी लेबल्स बचपन में लगते हैं। और वो भी हमारे पेरेंट्स हम पर लगाते हैं। और उन लेबल्स को हम अपनी आइडेंटिटी(पहचान) बना लेते हैं। हम तीस, चालीस, पचास साल के हो जाते हैं लेकिन हममें से कई अपने लेबल्स को बदलते ही नहीं हैं। क्योंकि हमें लगता है कि यही हम हैं। हमें किसने बताया कि यही हम हैं? हमारे पेरेंट्स ने।
मेरे पेरेंट्स ने कहा कि हम ऐसे हैं, तो हम ऐसे हैं। ये व्यक्तित्व बन जाता है बच्चे का। इसलिए पेरेंट्स की बहुत बड़ी जि़म्मेदारी है कि अपने बच्चे पर हमेशा पॉजि़टिव लेबल्स लगायें। वो पॉजि़टिव लेबल्स लगायें जो आप चाहते हैं कि वो बने। मान लीजिए, उदाहरण के लिए आपका बच्चा थोड़ा स्लो है, और थोड़ा स्लो भी किसके रेफ्रेन्स में आप देख रहे हैं? किसी और के रेफ्रेन्स में आप देख रहे हैं। लेकिन फिर भी समझो कि थोड़ा स्लो है, टाइम लगाता है अपनी हर चीज़ करने में, इधर से उधर कुछ करना है, बीच में रूक जाता है, बैठ जाता है। ओके है थोड़ा स्लो। लेकिन संकल्प से सिद्धि होती है। मतलब बार-बार अगर हम ये सोचेंगे, बोलेंगे, उसको बोलेंगे, उसके बारे में औरों को बोलेंगे, मतलब परिवार अगर आपस में डिसकस करेगा कि ये बड़ा स्लो है, इसका बड़े होकर क्या होगा? ये पढ़ाई कैसे करेगा? ये औरों के साथ कम्पीट कैसे करेगा? ये अगर हम सोचेंगे, आपस में बोलेंगे, करेंगे तो वो बच्चे का लेबल बन जायेगा। और वो बच्चा जीवन भर अपने लिए संकल्प करेगा। नहीं, मुझसे जल्दी नहीं होता, आई एम स्लो। वो लेबल उसने एक्सेप्ट कर लिया।
अब यही कि हम बच्चे पर क्या लेबल लगा सकते थे? हम बच्चे पर लेबल लगायें कि आप बहुत परफेक्ट हैं, आप हर चीज़ परफेक्टली कर सकते हैं, एक्यूरेट है आपका हर कर्म, आप देखो आपने कितनी जल्दी ये कर लिया, चाहे उसने स्लो ही किया हो। उसका कर्म स्लो है, हम उसको वायब्रेशन्स स्लो वाले नहीं देंगे। क्योंकि अगर वायब्रेशन्स में स्लो शब्द दे दिया तो वो वायब्रेशन्स को एब्ज़ॉर्ब करके उसका कर्म हमेशा स्लो रह जायेगा या और स्लो बन जायेगा। क्योंकि संकल्प से सिद्धि। वो जो दिख रहा है वो नहीं सोचना और बोलना। जो देखना चाहते हैं वो सोचना और बोलना है।
ये हमें स्पिरिचुअलिटी और मेडिटेशन सिखाती है। परमात्मा हमारी पालना कैसे करते हैं, वैसे ही हमें अपने बच्चों की पालना करनी है। परमात्मा हमें क्या कहते हैं तुम शान्त स्वरूप आत्मा हो। तुम प्रेम स्वरूप आत्मा हो। तुम पवित्र आत्मा हो। हम होते कहाँ हैं, लेकिन परमात्मा कहता है। हम पढ़ते हैं, सुनते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं। मैं शान्त स्वरूप हूँ, मैं पवित्र हूँ, मैं शक्तिशाली हूँ। और धीरे-धीरे बनना शुरू हो जाते हैं। तो जैसा परमात्मा हमारी पालना करते हैं वैसे हमें अपने बच्चों की पालना करनी है। आप शक्तिशाली आत्मा हो, आप एक्यूरेट आत्मा हो, आप ईमानदार आत्मा हो, आप क्लीन हो, आप पंक्चुअल हो। ये नहीं बोलना कि तुम तो हर जगह लेट पहुंचते हो। तुम तो टाइम पर तैयार ही नहीं होते हो। संकल्प से सिद्धि हो जायेगी। पेरेंट्स के कहे हुए शब्द, पेरेंट्स की क्रियेट की गई सोच, बच्चे के संस्कारों पर बहुत डीप प्रभाव डालती है। और उससे बच्चे का भाग्य बनता है। अगर पेरेंट्स अपने संस्कारों की पालना कर ले तो बच्चों की पालना तो अपने आप उस वायब्रेशन में होने लग जाती है।
बच्चों पर लेबल हमेशा हाइएस्ट वायब्रेशन्ल फ्रिक्वेंसी का होना चाहिए। हमेशा प्युअर, पॉवरफुल, पॉजि़टिवली लेबल होना चाहिए। बच्चों को कभी कम्पटिशन का संस्कार नहीं डालिए। थोड़ा-सा डिफिकल्ट लग रहा होगा इस समय, क्योंकि बचपन से सीखते आए ना कि लाइफ इज़ द कम्पटिशन। लेकिन कम्पटिशन का संस्कार बच्चे को पूर्ण रीति से उभरने नहीं देता। लेकिन बच्चा हमेशा अपने आप को दूसरों की रेफ्रेंस में ही देखता है। लाइफ एक कम्पटिशन नहीं है। वो बच्चा जो आपके घर आया है वो अपने कर्म, संस्कार और भाग्य लेकर आया है। वो सिर्फ और सिर्फ अपनी रेफ्रेंस में आगे जा सकते हैं। लेकिन अगर हम दूसरों के साथ उनका कम्पटिशन करते हैं, या हम सिखाते हैं उनको कम्पटिशन, तो हम उनके अन्दर ईष्र्या का संस्कार, सुपीरियर(श्रेष्ठ अनुभूति) फील करने का संस्कार, इनफीरियर(हीन भावना) फील करने का संस्कार, इगो का संस्कार, ये संस्कार हम उनको सिखाते हैं। क्योंकि हम कहते हैं कि आपको उनसे आगे जाना है। हमें उनके अन्दर ये संस्कार डालने हैं कि आप अच्छे तब हैं जब आप अच्छा अचीव करते हैं। लोगों से ज्य़ादा अचीव करते हैं। ये नहीं हैं पेरेंटिंग। पेरेंटिंग अर्थात् आप बहुत प्युअर हैं, आप बहुत पॉवरफुल हैं। और अब आपको अपनी प्युरिटी को, अपनी पॉवर को, अपनी विशेषताओं को और आगे, और आगे बढ़ाना है। जितना सॉल को, आत्मा को स्ट्रॉन्ग बनायेंगे उतनी उनकी क्षमतायें बढ़ती जायेंगी।